पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/२१६

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वायुविज्ञान जिस धुर्णितघायुमें धूलिध्या उत्पन्न होता है. यह | इस विषयमें मन लगाया। युरोपीय सहन हो वानिया समुद्रमें प्रयाहित होने पर ऊपर जलको उठा कर जल- प्रिय है । जलपी वाणिज्य करने पर मेघ, पृष्टि, मांधी, स्तम्भ उत्पन्न करता है। समुद्र में जहां जालस्तम्भ उत्पस तुझान, वायुफो गति आदिका परिज्ञान विशेष प्रयोजनीय. होता है उसके ऊपरी भाग मेघ रहता है। पहले प्रयल है। सन् १५५३ ई० में टस्कानीफे प्रेएड ड्यूक द्वितीय घूर्णितयायु उपस्थित होकर यहांका जल आलोड़ित करता फार्डिनएडने वैज्ञानिक पण्डित लुइगी एएटीनरोके (1.nigi है और चारों ओरको तरङ्ग उस स्थानफे मध्य भागमें | Antinory ) तत्त्वावधान में इटली में इसके सम्बन्धमें ... द्रनगसे पहुंचती है। उससे प्रभूत जल और जलीय एक कार्याविभोग खोला। इसके वाय १६वीं शताम्दीम याप शीघ दी राशिफ्त होता और याप्पमय एक शुण्डा जगत्फे सब खण्डोंके. तध्यसंग्रह करनेका विशाल मायो- कार स्तमा उत्पन्न हो कर ऊपरको उठने लगता है। जन हुना, उस समय इसके सम्बन्धमें और विषयों पर मेघाँसे भी एक शुएड निकल कर उसमें मिल गया उत्तम गयेपणा हुई थी। रात्रिकालमें सौरपार्थिव ताप- ६. पेमा दो अनुमान होता है। जहां दोनों शुण्डों. का विकिरणातिशय्य, दिवाभागमे सौरकिरण विधि का सयोग होता है, उसका विस्तार दो तीन फीटसे | रणाधिपय, नभोमण्डलकी ज्योतिर्मय दृश्यायला, पाय : यधिक न होता। सुना जाता है, कि जब शुण्डाकार स्तरको धूलिकणा और उसका रासायनिक उपादान स्तम्भ दिखाई देता है, तब आपाज होती है। मादि बहुतेरे विषयों पर गवेषणा करनेके निमित्त नाना सब जलस्तम्भ समानरूपसे लम्ये नहीं होते । इनकी प्रकारके यन्तीका आविष्कार भायश्यक हो गया। इसी लम्बाई लगभग १७५० हाथ तक हुआ करती है । इसका अभायकी पूर्ति के लिये हो यशानिकगण विशेष परिश्रम पाचदा जैसा घमा दिखाई देता है, वैसा मध्यभाग) भोर घुद्धिकौशलसे कई पर्तमान यन्तीका गाविष्कार नहीं दिखाई देता। इससे मालूम होता है, कि यह शून्य किया है। यहां अतीय प्रयोजनीय तथा प्रधान प्रधान गर्भ अर्थात् पोला है। यह स्तम्भ प्रायः पक हो जगह यन्त्रको नामावली दी जाती है- स्थिर नहीं रहता। यायुको गतिके अनुसार उसी। (१) थारमोमिटर ( Thermometer) याय फे उत्ताप ओर चला जाता है। यदि उसका ऊपरी भाग और और शैत्यका परिमाण नापने के लिये दी इस पन्त्रको भधोभागका घेग समान न रहे, तो क्रमशः घद विछिन्न | सृष्टि हुई है। हो जाता है। उस समय उसमे जो चापराशि रहती। (२) वारोमिटर (Uarometer)-इस यन्त यायुका है, यद छिन्न-भिन्न हो कर या तो यायुमें मिल जाती भारित्य निणोंस दोता रहता है। किन्तु इसके द्वारा या समदमे याके रूपमे गिर कर मिल जाती है। इसका पहुन पाते मालूम होती हैं । इससे मेघ, पृष्टि मोर मांधी यह भी निश्चय नहीं, कि यह कय तक रहता है । कभी तूफान सम्बन्ध भनेक तथ्य मालूम हो सकते हैं। कभी तो यह उत्पन्न होने दायिनष्ट हो जाता और कभी जिन सय तरल पदार्थों का गुयत्य यिमिणीत हुभा है। एक घण्टा सा भी स्थायो रदता । जनस्तम्भ देखो। उनके किसी पदार्थसे ही यह पारोमिटर तेपार को पायुमयशतके (यविध सध्यपरिशापक पन्त्रा सकता है । जल, ग्लिसरिन भोर पारद अनेक समय पारी- पागुमएडस.फे. शीतोष्णतामानानर्णय, माईता पम्यां मिटरफ बनाने में ज्यवाहत होते है। किन्तु पारा दी इमफे यक्षपा, पाययाप गुयस्य और चाप निर्णय, या प्रयादका बनाने में साधारणतः व्ययाहत होता। सन् १६४३१०. दिशानिर्देश, इसकी गतिविधिका निर्णप, पृष्टि और में गैलिलिओका छात्र टेरोसला ( Terricellc) ने था. तुपार मपातका परिमाण-निर्णय, मेघका प्रकारमेह, मिटरका नायिकार किया एनिरापेस पारोमिटर (Ane. परिमाण और गतिनिदेश आदि पन्नों पर ध्यावहारिक roid arometer ), याटर पारोमिटर और ग्लेसरिन गिरिरपलनी यिनको उम्नति निर्भर कर करती है। पारोमिटर नामसे तीन प्रकार पारोमिट का उल्लेख १५५३६० प्रारम्मसे ही यूरोप में कितने दो मनोपियोंने दिखाई देता है।