पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/२३१

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वारुणी ; . २०१ एक पुतका नाम । (भारत १॥६५॥४०) ४ भृगु । ५ सह्याद्रि | दशोमें शतभिषा नक्षत्र का योग न हो, तो भी यह तिथि पर्णित एक राजाका नाम । (सह्या० २१३८) ६ एक जन- यारणी कहलाती है। नक्षत्र का योग होनेसे तो यह और पदका नाम 1 ७ दंतेला हाथो । ८ वामण वृक्ष, धायनका भी पुण्यप्रद होती है। इस दिन यदि शनियार पड़े, तो पेड़। उसे महायारणी और उस शनियारमें यदि कोई शुभ घायणी (सं० स्त्री०) वरुणस्येयं ( तस्येदं । पा ४२१२०)। योग दो, तो उसे महामहावारणी कहने हैं। यह यायणी ' इत्यण डो। १ सुरा, शराय ! कई प्रकारको मदिराका अतिशप पुण्य तिधि है, इस कारण इस तिधिमें स्नान नाम पारुणो है । जैसे-पुनर्नया ( गदहपुरना )को पीस और दान करनेसे अशेष पुण्य होता है। घायणी और कर बनाई हुई, ताड़ या खजूरको रससे बनी हुई, साठी महावारुणोमें पिशेषता यह है, कि वारणी तिथि धानके चायल मोर हड़ पोस कर बनाई हुई। गङ्गास्नान करनेसे सौ सूर्यग्रहण कालीन गङ्गास्नानका ___ मनुने लिखा है, कि द्विज यदि अज्ञानपूर्वक पारुणो | फल, महावारुणीमें गङ्गास्नान करनेसे कोटि सूर्यप्रहण मदिरा पीये, तो उसको फिरसे उपनयन संस्कार द्वारा कालीन गडास्नानका फल तथा महामहावारुणीम स्नान विशुद्ध हो लेना चाहिये, परन्तु शानपूर्वक पाग करनेसे करनेसे त्रिकोटिकुलका उदार होता है । यारणी नक्षव. उसके मरने के बाद प्रायश्चित्त करना होता है। योग हो प्रधान है। शास्त्र में लिखा है कि उदय गामिनी . . . ( मनु ११३१४७ ) मद्य शब्द देखो। तिथि हो गादरणीय है, किन्तु यह त्रयोदशी यदि उभय - २ मदिराको गधिष्ठानो देवो । ३ वरुणकी स्त्री, घर दिन लब्ध हो तथा जिस दिन नक्षतका योग पड़ता हो जानो । ( भारत० २६६ ) ४ एक नदीका नाम 1 ! उसो दिन यारणा होगी। उदय या महागामिनी होनेके (रामा० २७०११२ ) ५ पश्चिम दिशा । पक , कारण कोई विशेषता न होगी। यहां तक कि, यदि गत. एक दिशाके एक एक अधिपति हैं। पश्चिम दिशाके को भी वह नक्षत्र पड़ता हो, तो उसी समय वाराणी. मधिपति धरुण हैं, इसीसे पश्चिम दिशाका नाम पाणी स्नान होगा। फल नक्षत्रानुसार पाराणी स्थिर करनी हुआ है। ६ उपनिषद् विद्या जिसका उपदेश यरुणने होती है। यदि नक्षत्रका योग न हो, तो तिथिके सम्यग्धमें किया था। "मानन्देन जातानि जीवन्ति आनन्द प्रात्पमि जो व्यवस्था है, उनके शनुसार होगी। संविशन्तीति" "सेवा भायो वारणी विद्या " ! पारणोमें गङ्गास्नान करते समय यामणी, महा. । तैत्तिरीयोपनि० ३६) यारुणो, महामहायारणी जिस पार जैमा योग हो उसका ७ अश्वको छायाधिशेष, घोड़े को एक चाल 14 उल्लेख कर सङ्कल्प करके स्नान करना होता है। शत. शतभिषा नक्षत्र । गएडा , गांडर दूव । १० स्वनाम. मिपा नक्षत्र विता कर खियोंको कभी भी रनाम न करना पपात वृक्ष । कोहण देशमें इसे फरयारणी कहते है ।। चाहिपे, करनेसे व दुर्भगा होती हैं। शूद, पैश्य मौर क्षत्रियः ११ हस्तिनी, दधिना। १२ इन्द्रयारणी लता, दारुनको के लिये मो त्रयोदशी, तृतीया मीर दामों में स्नान करना निपिद्ध, किन्तु यह कार स्नानपर है. घायणोस्नान येल। १३ भूम्यामलको, मुई भायला। १४ मदादम्तो, नागयेन । १५ पृन्दापन एक कदम्बका रस जो चरणको निषित नहीं है। रुपासे बलरामजी के लिये निकला था। १६ कदम्यके पके पारणोम गङ्गास्नान करनेका मला इस प्रकार ६:-'चले मासि पृणेपक्षे त्रयोदश्यां तिथी 'यामप्पां' हुए फलोसे बनाया हुआ मय । १७एक पर्य जो उस समय माना जाता है जब चैत। 'मक्षावारुपयां' 'महामहायारुपयां' (जिम धार जैसा योग महानेको कानगोदशीको शतभिषा नक्षत पड़ता है। हो) गहाया स्नानमई करिष्ये' फामना माया हो, कर सकते है, पर साफे विधानानुमार नामगोलाद. यायणका अर्थ शतभिषा नक्षम है। चैत्र मासको रना होगा। घा सयोदशोफ दिन मतभिषा, नक्षत्र दोनेसे उस वारणो-तैरभुन अन्तर्गत एक नदीका नाम । दिनको पारणो कहा है। यदि उस मालपो (भविन्यास 115) • Vol. I.I, BI । कानेखक