वाशा-बासक
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चासो (स'. स्त्री०) चाश्यते इति वाश दे (गुरीश्च | चापक (सं० पु०) वाप संज्ञायां कन। मारिप, मरसा
हलः। पा ३।३।१०३ ) इति भ स्त्रियां टाप । पासक
निसियांसा पास नामका साग ।
असा ..
वापयन्त्र - यन्नविशेष । वास्पयन्त्र देखो।
पाशि (स. ) वाश्यने इति वाश (बसिपियजिराजि. ! वापिका ( सं० स्त्री० ) वाघ संज्ञायां कन्, टाप गत इत्वं ।
रजिसदिहनियाशिवादीति । उ ४१४) इति इन। अनि, हिगुपनो। पर्याय-कारची, गृथ्यो, कवरी, पृथु, त्या पत्नी,
आग।
बाप्पोका, करी । गुण-कटु तोक्षण, उष्ण, कृमि और
पाशिका ( स स्त्री० ) पागा म्याथै फन टाप मत रस्य ।
श्लेष्मानानमः।
। याप्पी (सं० स्त्रो०) पाप गौरादित्वात् डीप, वापी स्वार्थी
घासक, बड़मा।
। पन्टाए । हिगुपनो, वालिका ।
पाशिन (सं० लो० ) वाशब्देभायेक्त। १ पशु पक्षो ।
घाशका (संखो०) वाघ्यो देखो।
'मादिका शब्द। धातूनामनेकार्थत्वात् बाश सुरभी.
" चापीयपोत- टोमर । पाल्पीययन्त्र देखो।
करणे क्त। २ सुरभीपत, सुगन्धित किया जा
वास (सं० पु०) वमन्त्यति बस नियासे ( इलश्च । पा
(अमरटीका-स्वामी ) । ३३६१२१ ) इति घम् । १ गृह, घर । चास्यते इति यास-
पाशिता (स स्त्री०) वांश-कटाप। १ स्त्रो । २ करिणी, '
घम् । २ वस्त्र, कपड़ा। बस-भाचे घम् । ३ अवस्थान,
हधिनी।
रहना।
याशिम् ( स० लि०) शम्दयुक्त, पाक युक्र ।
चाणपयश्लोक में लिखा है, कि धनो, घेदविद्
पाशिष्ठ (स' त्रि०) यशिष्टस्येदण । र पशिष्टसम्याधी,
ब्राह्मण, राजा, नदी और वैश्प पे पांव जहां नहीं है,
घशिष्ठका । (सी०) २ एक उपपुराणका नाम । ३एक मनुष्यको यहां वास करना न बाहिये।
प्राचीन तीर्थका नाम
चासक, अड़सा ५ सुगन्ध, वू।
पाशिष्ठी : ( स. स्त्री०) शिवस्पेयमिति भण-डोप । वासक (सं• पु० ) यासयतोनि वासि-युल । १ स्वनाम-
गोमती नदो।
प्रसिद्ध पुष्पशाक वृक्ष, अडूसा। इसे कलिगामें अडूसा,
याशी (स' स्त्री०) शस्त्रभेद, काठप्रच्छन्न शस्त्र। आइ सोगे और तैलङ्गमे अड़सर, अघड़ोड़े कहते हैं।
(म मा२९(३) संस्कृत पर्याय-वैधमाता, खिहो, पासिका, वृप, अटरूप,
पोशीमत् (मवि०) योशी अस्यर्थे मतुप। याशोयुक्त, , सिंहास्य, वाजिदन्तक, वाशा, याशिका पृश, अररूप,
पाशशस्त्रविशिष्ट । (ऋक् ५।५५२)
वाशक, वासा, वाम, वाजी, वैद्यसिंही, मातृसिंहो, यासका
घांशु (स' स्त्रो०) वाश्यतेऽस्यामिति बाट शन्दै ( मन्दि सिंहपणों, सिंहका, भिपजमाता, घसादनी, सिंहमुखी,
पाशिमथिचतिचक्यलिभाइरन् । उण १।३६ ) इति उरच् कण्ठोरयो, शितकी, याजिदत्तो, नासा, पचमुखा, सिंह-
राप। रालि, रात। ( उज्य )
पलो, मृगेन्द्राणो। गुण-तिक कटु, कास, रक्त, पित्त,
घाम (सको०) वाश्यतेऽस्मिग्निति या (स्थयितश्चि- कामला, कफयेकल्य, ज्वर, श्वास और क्षयनाशक ।
पश्चि शकीति । उण २।१३) इति रक। १ मन्दिर। इसके पुका गुण-कटुपाक, तिक्त, कातक्षयनाशक ।
(राजनि०)
२ चतुपंध, चौराहा। ३दिवस, दिग।
'धर्मशास्त्र लिखा है, कि सरस्वती पूजाम वासर्फ
पाप (सं० पु०) वाधते इति धाधलोड़ने ( शयशिल्प पुष्प विशेष प्रशस्त है।
शप-वापरूप पपंतल्पा । - उण ३१२८) ति प-प्रत्यये गाना विशेष, गानका एक शाके मतसे
घस्प पत्वं निपातनात् । १लौह, लोहा । २ मनु, यासू | मनोहर, कन्दर्प, चारु भार नन्दन नामक इसके चार भेद
६कण्टकारी, भटकया। ४ उमा, आनन्द, ई और हैं। कोई विनोद, बरद, नन्द और कुमुदको इसके मेह
मार्शि इन तीन कारणीस अध जनित उtमा होती है।५ मानते है ।:: .
• भाप, मार्फ (Tropour) वास्प देखो . . . ३वासर, दिन । ४ ज्ञालक रागका पर भेद-
Vol. xxx. 5s, ,
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/२६५
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