पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/३४५

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विक्षीरविक्षोभण २६५ विक्षोर (सं०.पु. ) रक्कार्फ पृक्ष, मदारका पेड़। त्याग नहीं करनेसे.योग साधन नहीं होता। शरीर और विक्षोरणी (सं० पु०).दुग्धिका, दुद्धी । चित्तको गुरुताको बालस्य कहते हैं मर्यात् जिस कारण- विशुद्र (सं० वि० ) अतिक्षुद्र, बहुत छोटा । से शरीर और चिचके गुरु होने से योगसाधनमें मन नहीं विक्षुब्ध (सं० लि.) क्षध, जिसके कानमें क्षोम उत्पन्न ! लगता यही मालस्य शब्दयाय है। विषयो दूढ़ मन हुमा हो। संयोगको अविरति और शुकिकादिमे रजतत्यादि- विक्षभा (सं० सी०) एक छायाका मान । कं ज्ञानको भ्रान्तिदर्शन कहते हैं। शुकिका ( सीप )में विक्षेप ( पु०)विक्षिप घना मरण, इधर उधर जिस प्रकार रजतकी भ्रान्ति होती है, उसी प्रकार अप. के कना। २ या छोडना । विक्षेपण, इधर उधर | रिणामदर्शियोंके विषयसुखको प्रहल सुख समझ कर हिलामा) ४ कम्पन, थरथराइट।५ प्रसारन, फैलाना झारित होनी है, किसी कारणघा सहाधिको उपयुक्त ६.सञ्चालन, देखने को मिया भय, डरा ८ राजस्य, ! भूमिको अप्राप्ति का नाम अलम्बभूमिरुत्व है। उपयुक कर । ६ नुएको डोरी खोचना, चिल्ला चढ़ाना। स्थान नहीं मिलने पर योगका सांधन कदापि नहीं होता, १० मनको इधर उधर भटकाना. इन्द्रियों को यश म | जदा तहां योगसाधन करनेसे नरह तरदको विघ्नबाधाये रचना। ११ प्राचीनकाल का एक प्रकारका मन्त्री पद उपस्थित होता हैं। लग्यस्थान में मनकी अप्रतिष्ठाका नाम फेक कर चलाया जाता था। १२ सेनाका पड़ाव अनयस्थित है, स्थानविशेष, मानमिफ मसम्तोष छावनी। १३ याधा, विघ्न । १४ सद्धीतर्फ मतसं सुरका हुआ करता है। एक भेद । १५ एक प्रकारका रोग। पातालदर्शनफे। ये सप चित्तक्षेप योगके अन्तरायस्वरूप है। मनसे चित्तविक्षेपके कारण हैं। इन कारणों द्वारा HIो द्वारा रहनसे योग नहीं होता। पुनः पुनः एकतरसाभ्यास द्वारा चित-विक्षिप्त होता है। ये सब चित्तविक्षेप दूर होने हैं। (पातलदान) "त्याधिस्त्यानसंशयप्रमादालत्पविरतिमान्तिदर्शनासम्धभूमि- विक्षेपण ( स०. क्लो०) विक्षिप ल्युट्। विक्षेप, ऊपर कत्वानस्थितानि चित्तविक्षेरऽन्वराया:"। अधया इधर उधर फेकनेको किया। २ दिलाने या (पारसुप्तदः ११२९) झटका देने की क्रिया । ३ धनुपको दोरी खीचनेकी किया। 'प्याधि, स्त्यान, संशप, प्रमाद, भालस्य, अविति, ४ विघ्न, साधा। भ्रान्तिदर्शन, अलव्धभूमिकस्य पेहो नी वित्तविक्षेप तथा (विक्षेपलिपि ( स० स्त्रो०) लिपिभेद, एक प्रकारकी लेत. प्रणाली। योगय अन्तराय अर्थात् घिनस्वरूप हैं। योगाभ्यास. विक्षेपशक्ति (स० ग्त्री० ) यिोगय शक्तिः । मायाशक्ति । कालम ये सब चित्तविशेष उपस्थित होते हैं, इममें योग घेदारतकं मतसे अज्ञानको भायरण और विक्षेप नामकी नधनहीं होता। . दो शनियां हैं। वेदान्त शब्द देग्यो। · इन सब कारणों से मनको एकाग्रता नहीं होती, धरन् | यिशेत, (स.नि. यि-शिर तृच । विक्षेपकारक सर्पदा चित्तपिशेर हुआ करता है। शरीरगत पातपित्तादि धानुको विषमता होनेसे हो शरीरमें ज्यरादि रोग उत्पन्न यिशोम (म० पु०) यि-क्षम यम्। १ सञ्चालन गाने या झटका देनेकी कि गा । २ विदारण, फादने होते हैं, इसका नाम प्याधि है। किसी किसो कारण. ३क्षोम, दुःख । ४ संघटन, मेल । ५.गनको नारा याचिस भकर्मण्य हो जाता है, ऐसे चित्र को महम्म. मय, सर । चित्तोम्रान्ति । घयताको दो स्यान कहते हैं। उभयावलम्बन जानका उईक, अधिकना ।। गोदाम्य, उदासीनता । १० मौतटर, काटा। . माम संशय है। योग-साधन डरनेसे फलसिद्धि होगी दागीको पानी का एक पावं या माग था नहीं, ऐसे मनिश्चपहानको संशय करते हैं। समाधि | विक्षोमण (संपु.ल.विदारण, फाइना साधनमें उदामोनताका माम प्रसाद है मर्यान् सिद्धि | यिसोग, मनमें बहुत अधिक सोम उत्पन्न कारः विषादतर अध्ययसापक उदासीनताका परिः । करना।