पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/३७०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

'विजयनगरम् भागात बदल गया। किन्तु १८यों मनाम्दी में बार-मारका कुछ मग गज कम्पनीने से बार परिसरांन होने के कारण पशुगनिराजयंफे ऐनि- दायिनो जमीन" नामसे निदिए किया।'. हानिक प्रधान्य पत्पिदिन हुमा। इस राशके! इस तरह विजयनगरमको जमीन्दारीका मान 'महिम राज्य और उसके अधोग मामलोंका गासित बहुत कम हो गया। जीने उम पर पेशास मा भूमाग पकन पर्शमान विजयानगरम जिले के बराबर है। कर दिया। रोशाफा ६ लाख रुपया सालाना पेहरा इस पिम्तीर्ण भूमागणे, शासक राजा भी अघोन रद देना कटसे स्वीकार करना पदा या गौर सोने राज्यको गर में सत्यवान धे। . . 'उनको कुछ प्रणमालमें फसमा पहा । मन् १८०२०में दम भये. सर्वप्रधान पनि मोजा मोर मान्य | 'यदा चिस्यायो वरदोयल्ल हुमा उससे यह देखा गया, सुननाम गामसे सम्मामिन होते थे। ये यथार्थ विज्ञगा.] कि उस समय यह जमीन्दारी २४ परगने गार १५५ पटन गाउपके अधीन थे। किन्तु यलदर्पसे पुष्ट हो कर ग्रामोंमें विभक्त थी। उस समय इस तालुकेका स्य५ पे उम विषयमें विशेष लक्ष्य नदी रगाते थे। जय विजय लाग्न नियत घो। .:.' . .... नगरगज अपने प्रभु विगायत्तनपति के साथ साक्षात् रामा पिजपरामके पुत्र नारायण बापूने सन् । करने जाते तब महामान्य इण्डिया कम्पनी उनके में रायाधिकार किया और सन १८४५० को. सम्मानफे लिये १६ सम्मानसूनक तोपोंको मलामी | घाममे परलोक-पासा की। उस समय उनकी संपति 'दागती थी। १८४८३० में या तोष मण्या घट कर १३ | यिशेररूपसे प्रणमत्त थी। उसके राज्यकाल के प्राद' हो गई। सके सम्मामरूप घे माज भो राजदत्त उपाधि समयसे मप्रेज गयर्नमेएटने उनके भूण परिशोध करने मोगरात . . ! लिये स्वहस्तमें शासनमार प्रण किया। उमफे परपती धर्ममान समय यह जमीन्दारी मिरम्यायो बन्दोयम्त- . उत्तराधिकारी रामा पिपराम गपतिराजने तहत • पं. अधिकारमुक होनेसे उसफे रामस्य पुछ परि- मणके परिशोधा लिये.७ य राकमी प्या . पतनहुमा है सदी, किन्तु यधान इमराज्यवंशको जारी रखो। मम्नमें सन् १८५२९०में मिधर कोहियांस भागस मर्यादाका विशेष लाघय नही माहै। मन् | उन्होंने राज्यभार ग्रहण किया और ये कार्य परि. १८६२२०में बज गवर्नमेएटने उसका मध्य मोकार चालन करने लगे। इस समयसे इस विजयनगरम् राय कर फिर रामोपाधि शन को और साधारण प्रमों की धीवृद्धि हुई है.मौर जिस भी प्रायः २० लास या दारको अपेक्षा उध-सम्मानका अधिकार दिया है। यल होने लगा है। .. . . ___ मृग रासा पिशयरामराज नावालिंग पुत्र मारा- रामा यिजयराम गणपतिरा एक उप निक्षित, . पणवायूने पदामामफे युद्धो वाद स्वराज्यसे भाग पार्यश्य सदाशय गौर माताकरणकं गच्छे व्यक्ति प सि . सीमाका माप प्रहण किया। उनको ले सामन्तोंने कामे राजका परिचालम और प्रशामका शासन करते जो पिरख यिद्रोहयदि प्रध्यालित करने की घे थे, उम तदस मारत म्याग्य स्थानों को राहामाम 'को। मनशाने पहले दो याममागार पाकर यथा- फाई भी उग समासी ग हो सके। यह यथार्थ हो । समय उमका प्रतिकार पिया गा। इस बाई मजी. उश पदके उपयुक्त पान थे। मन् ८६३ परमार ' मा राजाको मोरमे सन्धिको वात पलने लंगी। को व्यवस्थापकसमा (Legisittire Council of lordia) राजाने पर मनमोहाय भारमर्पण किया। उस के संरस्य मनोमिल हुए। सन् १८६४० मप्रेमान सायकोने उसके मरय गौरयाधिकारको मण्ण उनके चरणों पर प्रसन्न होकर नको महारानी पर उमा एक समद वो गो। स ममगसे पार्गस्य उपाधि भार हिम हानेर (His flighnesty का सम्मान सरदार फिर राजा भान न रहें । मजसरकारने प्रदान किया। इसके बार :G.S.1 को पाधि • का मामममा गनिदायो राम समर्थ यि से विभूषित किप गरे । सन् १८ मे महारानी