पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/३७३

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. विजयप्रशस्ति-विनयमित १५. किया करते हैं। सभी मनुष्य अपनी अपनी अवस्याफे | प्रस्तुत प्रणालो-पारा, गन्धा, लोहा, विष, अपरक, अनुसार पूजाका भायोजन करते हैं। जो धनी है, ये हरिताल, विडङ्ग मोथा, इलायचो, पोपलमूल, नागेश्वर, प्रतिमूर्राि बना कर अपघा पटमै चित्रित कर देवी साँठ, पोपल, कालीमिर्ग, भामलको, हरीतकी, बहेड़ा, पूना करते हैं। प्रायः सभी जनसाधारण बपड़े की वितामूल, गोधित जयपालयोन, प्रत्येक व्यका चर्ण पीठ पर चित्रित माताको पूजा किया करते हैं। जो एक एक तोला नया गुड़ दो तोला, इन्हें एकत्र मिला कर हो, इस दिन ग्राह्मणसे ले कर चएडाल पर्यन्त लोकमाता मच्छी तरह मईन करे। पाछे इमली को गुठल्टी के समान को माराधनाफे लिये प्यन रहते हैं, इसमें जरा मो मादेह इसकी एक एक गोली प्रति दिन प्रातःकालमें सेयन नहीं। पूनाके दिन गृहकर्ता या कत्रको सारा दिन करनेसे कास, ध्यास, अजीर्ण और अन्यान्य रोग जाते निरग्यु.उपवासके बाद पूजाके गन्तमें नारियलका जल | रहते हैं। पोकर जागरण और धूतफोहादिमें सारी रात वितानी २ कुष्ठरोगको एक मौषध। प्रस्तुत प्रणालो-उद्यं पड़ती है। पयोंकि, ऐसी प्रसिद्धि है, कि उस दिन रातको पातित यन्त्रमें सप्त दोपनिमुक्त पारेको मन्त्रपूत कर लक्ष्मोने कदा पा- 'मारिफेलाल पोत्यां को जागर्शि मिट्टीके कड़ाहेमें तथा कुष्माण्डके रस या से सादिके साथ महोतले' ) 'नारियल का जल पीकर आज कौन जगा| दालायन्त्रम मात वार दोलायन्त्रमें मात वार परिशोधित पारेसे दूनी हरताल हुआ है। मैं उसे धनरत दगी UITSA कोने भो तथा कैवर्स मुस्तक. रस और मिएटीके रमको युनित- उसी दिन उक्त मवस्था रहं कर पूजा की पोलमीने पूर्व कदे का,पारे गौर हरतालसे दूनो पलामको भम्म उस दिन ऐसा कहा था। इस कारण उस दिनको 'कोजा. देये। भनन्तर झिएटोफे रसमें सबको सुपा कर पोस्त गर' भऔर उस दिनको लक्ष्मीपूजाको 'कोजागरी लक्ष्मी. के रस में पुनः उमे माप्लुन करे। पोछे बड़ो सावधानी- पूना' कहते हैं। पूजा तथा मन्यान्य मत नियमादिका विवरण से शालको लाडोको आंबी चौधोम पहर तक पाक कोजागर शब्दमें देखो। प.रे। ठण्डा होने पर कावफे वरतनमें उसे रन छोड़े। यियप्रशस्ति (स० स्त्री०) कवि श्रोहपरचित खण्डकाव्य- मधु और जल, नारियल, जिगिनोषवाय या मधु भोर भेद । इसमें राजा विजयसेनका कीर्शिकलाप पर्णित मोधेफे रम करोव घार रतीसे ले कर प्रति पिजयभाग (स' पु०) १ जपांश । २ जयलाभ। दिन एक एक रत्तो करके बढ़ाये । इसमें यातरन, भाम, विजयभवतेल ( सं० को०) मामपानरोगमें यया। सब प्रकार के कुष्ठ, अम्लपित्त, विस्फोट, सरिता गौर पक्वतेल। प्रस्तुत प्रणालो-पारा, गन्ध, मेनसिल प्रदर रोग नए होते हैं। इसमें मछली, मांस, दही, साग, और हरिताल प्रत्येक द्रव्य २ तोला द्रव्य २ तोला ले कर कांजीमें पोसे। खट्टा मोर लाल मिर्च खाना मना है। पोडे उससे एक लगष्ट पुम. पत्र लिप्त फर। जब विजयमन्दिरगढ़-राजपूतानाकै भरतपुर राम्यान्तर्गत एक पद सम्म जाप, तब यत्तीकी तरह दे. इसके बाद प्राचीन गढ़। यहां मरतपुरके पुराने गजे पास करते उस बत्तीको तेलात करके उसके निम्न भाग एक पात्र थे। आज कल यह विस्तीर्ण वसावशेषम परिणत हो रम कर ऊर्यभागको प्रज्वलित करे तमा यहां प्रमा गया है। पत्तोक निशेष न हो जाने तक फिरसे घारे धार मेल विलयमईल (मं० पु०) विजयाय महला दगा, प्रागोन का का एक प्रकारका दाल । देता रहे। यह तेल पाने पर मोचेक, दरतामे रपक कर जमा हो जायेगा। इस तेलको मालिश करनेसे प्रबल विज्ञपमल्ल ( स० पु० ) एक RREET नाम । - (राजवर०७१७१२) घेदना, पकामात नधा पाहुकार आदि विविध.यातरोगविजयमाली (स.पु.)एक पणिकका नाम। प्रशमित होने हैं। परनेल दूधके माथ ३४ विन्दुमाता- (कपाम० ७२१२९४) में मो पान किया जाता है1:: . . विजयामल (सं. १०)कमनाधिपति एक मामतका पिजपमैरपरस (सं० पु. १ कासरोगको ५ और नाम । ( राजतर० ७३६६) . . . . .