पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/३७९

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- विजयसिंहन-विजयसेन । २ कलचूरियंशीय एक राजा तथा गपकर्ण पुत्र । ३ , जहाज ले पुनः यहांसे रवाना हुए। इस बार घे ताम्रपर्णी. हर्षपुरीयगछके पक प्रसिद्ध जैनाचार्य । इन्होने बहुत-से में उतरे। जिम दिन बिजय उक्त द्वीप में पहुंचे थे, उसो जैन-प्रन्यों को रीका लिखो। इनके शिष्य प्रसिद चन्द्र दिन युद्धका निर्याण (५४३ १० ) पहल हुमा रस परिये। . . समय ताम्रपणोंद्वीपमें यक्षिणोका राजा विजय वर्ष साहस और कौशलसे यक्षिणोरानो कुणिको घनीभूत विजयमिहल-सिंहलद्वीपके प्रथम मार्य राजा। महापंश | कर ताम्रपणों के अधोयर हुए। विजयके पिता सिंहका हु. नामक पालि इतिहास में लिखा है, कि पनाधिप औरस. ने सिंहका वध किया था, इस कारण उनके घशधरगण से कलिङ्गराजकन्याफे गर्भसे सुप्पदेषी (सूर्पदेयी ) नाम- 'साहल' ( सिंहल ) कहलाते हैं । विजयसिंहल ताम्रपणी की एक रूपयती कन्या उत्पन्न हुई। ज्यों ज्यो उसको द्वीपमें राजा करने लगे, इस कारण यह द्वीप 'सोहल' उम्र चढ़ती गई, त्यो त्यो उनकी सुवेच्छा भी बढ़ती (सिंहल-) नामसे प्रसिद्ध हुभा। गई। यहां तक कि उसने एक दिन गृहका परित्याग कर ___विजयने सिंहलपति हो कर पहियराजकन्यास विषाद उप्रवेशमै सायाफे साथ मगधकी ओर प्रस्थान कर करना चाहा और इसी उद्देशास यहां एक दूत भेजा। दिया। लाल (सददेश)-के जाल में एक सिंह उन सिंहलाधिपकी प्रार्थना पर पाण्यरामने अपनो कन्याको पषिकों पर टूट पड़ा। राजकुमारीको यही छोड़ ममी उन्हें अर्पण कर दिया। उस पाण्यराजकन्या साथ जान ले कर भागे। सिंहने राजकन्याको ले कर अपनी अनेक नरनारी सिंहल जा कर बस गये थे। गुहागे प्रवेश किया। सिंहफे सहयामसे राजकन्याफे विजयको पृद्धावस्था फोई पुरसन्तान न होने गर्भ रह गया। यथासमय एक पुत्र और एक कन्या कारण दोंने अपने छोटे भाई सुमित्रक पास राज्यप्रहण उत्पन्न हुई। - पुलका माम सीयाहु ( सिंहयाहु ) और करनेके लिपे समाचार भेजा । इस समय सुमित गददेश. कन्याका माम सोहसीलि (सिंहधोयली) रखा गया। फ अधिपति थे। उनके कई पुत्र भी थे। उन्होंने य सिंहवाहु पिजन सिंहसे प्रतिपालित हो मागे चल भाईका अभिप्राय सुन कर अपने छोटे लड़ पाण्यास कर सददेशका अधिपति तुमा। उसके बड़े लड़के का। को सिहल भेज दिया । देवफे यहां पहुंचनेसे पहले हो नाम पिंजय और गंझोलेका सुमित्रा (सुमित्र) पा विजय विजय.३८ पर्प राजा करने के बाद इम लोकसे चल बसे अयाप और मजापोडक तथा उसके साथी भो नीम थे। पाछे यासदेन दो राजसिंहासन पर मिपिक्त प्रतिके थे । सदयासो जनसाधारण विजय उपयहार हुए। पर बहेविगष्टुं और सोने मिलकर सिंहवाम विजयसेन-गोड़क सेनयनीय एक प्रवल पराकान्त गौर अपना दुखड़ा गया। इस प्रकार तोमरी चार पुत्रक विमा प्रधान राज! । हेमन्त सेन मीरमसे पगोदादेयोक गर्ममे भियोग 'उपस्थित होने पर रादपतिने विजयके और इनका जन्म हुभा। इन्होंने अपने पापारमे नान्य- उसके साथियों के माधे गिरको मुहया नाय पर देय, राघय, पईन और यार शादि महायोरों का दर्प विठा समुद्र में फेक देनेका हुकुम दे दिया। विजय मौर चूर्ण तथा गौड़, काप भार कलिष्ट्रपतिको परास्त उग सात मी अनुचरों से लदा हुआ जहाज मदाममुद्र-। किया था । धानिय या यंदयिद ग्रामोन इमसे इतना में जा लगा। • एक दूसरे जहाजमे उन लोगों को प्रचुर धन पाया कि उससे उन लोगोंको प्रिनि मोर तीसरे जहाज से उनके बालपणे भो मिले। पहा पुना का जहाग लगा, न नागडोपा जहां खियों का लगा यह महेद्र गौर जहां वियफा महाम लगा, यह शान मदाय में मिला 0 प्रकार नामकरग्य पनि होने मुपारकपER ( सूरकपत्तन) पहलाता था। .मू. पर भी उसके बदन पहले को यह स्थान सिहन नाम दि रको मधिषासियों की शताफे भयमे, विजय याना या, माभारतमे इसका प्रमाण मिलता है सस्त देनो। Vol xxr, U