विदग्धवैध-विदर
गारह १४ लिया गया। इसमें राधाकृष्णको उज, गीत गीत ) मानपानादि, गाजानकारक
लोला और प्रेममाय गणित
. गुरुराक द्रय तथा विरेनक पदार्थ खाना मना है। किन्तु
शियाधच-योग नाक पैचरमस्य रयिता! मृदु घिरेषा अधांत् रोगको बाद इमामे उपकारी है।
विधा ( ० नो०) विदग्ध-राप् । यद परकीया नायिका
इसकी चिरित्या अग्निमान्य सदमें दोग।
जोहागिपारोफे माग पापुरुषको गानो गोर गनुरक्त विदग्धालष्टि ( स० सी० ) व रोगविशेष, मामांका
परे। यह दो प्रकारको मानी गई है-पाक विदग्धा एक प्रकारका रोग। यह बहुन भरिक घंटा पाने में
गार हिरा विदग्धा । जोसो भानो पातचीत कौगल.. होता है और इसमें माखे पोलो पड़ जाता है।
सपर पुपर पर आपनो कामगासना प्रकट करती है, यह विदएड (म. पु. ) राजयुवभेद। (मारत भादिक्षा)
पार विदग्धा सौर जो किमी प्रकारके फिपा कलापसे विदध ( स०पु०) घेत्तानि यिद (कपिदिम्पा चित्। उप..
गाना भाव प्रकट करती है, यह क्रिया-विदग्पा कहलाती । २११६.) इति गथ, मन जित् । १ योगो । २ ।।
(निपपटु ३३१७) ३ धैदिक काल के एक राजाका नाम ।
विदाधाजीर्ण (सं० ० ) मीर्णरोगभेद । पित्तसे (ऋक ५।३३।६) ४ स्तो। (नि.) ५ परितव्य. जो
यह रोग उत्पन्न होता है। इसमें भ्रम, तृष्णा, मूछा, जानने के योग्य हो। (शुक ३३३७१५)
पित्त कारण पेटफे भीतर नाना प्रकारको वेदना, धर्म, विपिन ( स० ० ) प्रपिभेद । ( भूक ५।२६।११) . .
दाद भादि लक्षण दिग्नाई देने हैं।
विष्य ( स० लि. ) यमाई, पशक योग्य ।
___पप-लघुराक द्रश्य, बहुत पुराना पारीक चायल,
(मक १।६।२०)
लायेका मांड, मूगका जूम. हरिण, परहा और लाया विददश्य ( स० पु. ) विमभेद। ददरिषदेना।
पक्षोके मांसका जस, छोटी मछली, शालिश शाक, विदसु ( स०नि०) शापित घनयुक्त। ( ६६)
घवान, येलोनाक, छोरी मूली, लहसुन, सूर्य पदायिदभृत् (स.पु० ) पिभेद । वेदपा दे।।..
कपा मेला, सदिनका फल, पोल, पतिया बैंगन, यिदर (स ० ) विदीर्यतीति यि गच् । १ गिय.
मरामामी, पला, कागेल, करेला, कटाई, अमादा, गंध मारक, पं.कारो। (वि०) २ विदीर्ण। (पु.) वि.
लिया, मेवगी, नोनो माग, सुमनो साग, भायला, (दोरम् । पाश५७) इति भए । ३ विदारण करना,
गारंगी गोयू, गनार, जी, सिपापा, गालयेतम, विजौरा फापना। ४ आतिमय, यहा सर।
मोग, मधु. मपातन, गो, मट्ठा, कांजी, क्टुनील, हींग, लय, पिदर (पिदार)-दाक्षिणात्य. निझामाधिश हैदराबाद
भदाक.पमानो, मिर्च, मेघी, धनिया, जीरा, सोनारा | गन्यका एक नगर । पर मना०५०५३ ३० देना
वधि, पान, गरम जल, कड़ा भारतीता।
७७३४ पृ० मध्य हैदराबाद रामधागांसे माल
पप्प-गलमत्रादिका गधारणा, भोगका मगय| उत्तरपारमा मन"
उत्तरपशि मरा नदी किनारे स्थित है। बी.
योन जाने पर भोजन करमा, पर भूलगने पर गोदा का विश्वास है कि प्राचीन विदर्भ देशी गपति माह
भागा, पायेदुए पदार्थ पाय नहीं होमे पर भी फिरसे भी विदर शादी प्रसिध्यनित होगी। प्रत
भोजन कर लेना. गतको जागना, मोणितम्नाग, समो. विदों की धारणा है कि सारा पेराम्राज्य एक समय
पाय, बड़ी माली, मांग, पोको माग, अधिक पल घिदगंगव्य नामसे टिपत होता । किन्तु उम
पोगा, nिer मोहन, सगी प्रकारका माद हालको प्यास समपकी यिद रामपानी पांडे मौकिक पिरपिन)
गाय दूध ना, म भान गाढ़ा दुध, गुलजार, प्रयोगः 'पिर' प्राण प्रासकोका कोपा भदौ, कहनदी
सो माटोमा गूदा. म्य
म्न नियन, माता ।
मोर प्रसारका भूषित गनपान परमा, रोगविगत एक ममा पानी राजानोगे इस मग राजार
( शीर Ruitml), मोर कानगिरा (मे थाम लिया m! १६यो सार, मध्य भाग सकस
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/४१८
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