पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/४४५

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विद्यानगर ३७५ आखिर देघरायको भी निमन्त्रणालयमें ले जा फेर मारनेभारतवर्ष के दक्षिण प्रान्त तक अपना शासनप्रमाय फैलाया की चेष्टा की। किन्तु देवराय ताड़ गये और निम- या। मदुरा जिलेके तिरुमलय आदि स्थानों में भी देव. न्त्रणालपमें न गये । दुईत्तने उसी जगह तलवारकं ! रायको देवकीर्शिके विह्न दिखाई देते हैं। देवरायने प्रहारसे उन्हें जर्जरित कर दिया, ये मृतप्राय हो गये। समग्र दाक्षिणात्य, भारतके दक्षिण प्रान्त और पूर्वोप उनका दुष्ट भाई उन्हें मरा जान.कर चला गया। किन्तु फूल पर्यन्त अपना राज्य फैलाया था। इनके समय । भगवानको कृपासे देवरायको जान न गई । पीछे विद्यानगरकी बहुत कुछ श्रीवृद्धि हुई थी-मुसलमानों उन्होंने दुष्ट भाईको उचित शिक्षा दो घो। अबदुल को सामयिक कामे नियुक्त कर इन्होंने सैन्यबल बढ़ाया रजाक स्वयं विद्यानगर गये । इन्होंने यह भी था। देवरायके समय राजस्व भी बहुत बढ़ गया था। 'कहा है, १४४३ ई०के शेषमें देवरायके. वजीर दान | इन्होंने "गजयेण्टकर" नामकी एक विशिष्ट उपाधि पाई नायकने गुलवर्ग पर आक्रमण किया । इस घटनाके यो। माप असामान्य वीर थे, फिर भी आपके हृदयम साथ फेरिस्ता लिखित घटनाका मेल देना जाता ययेर दया थी । उत्तरमें तेलिङ्गना और दक्षिणमे तोर है। अबदुल रजाकका कहना है, कि देवरायके भाईको पर्यन्त विस्तृत भूभागमे आप स्वयं परिभ्रमण कर देशको दुष्ट चेष्टासे विद्यानगरमें जो दुर्घटना घटी थो, भला- अवस्था जानते थे। उद्दीनको भी यह संयाद मिला था। इस समय देवराय फेरिस्तामें लिखा है, कि अलाउद्दानने देवरायसे को तंग करना सुविधाजनक समझ कर उसने थाकी कर बाकी कर मांगा था। देवरायसे कर मांगना अलाउद्दान- मांग भेजा। इस पर देनराय उत्तेजित हो गये। दोनों का क्या अधिकार था, यह जानना कठिन है। वरीमान को सीमा पर तुमुल संग्राम छिड़ गया। अबदुल ऐतिहासिक फेरिस्ताको इस उक्ति पर विश्वास नहीं कर रजाकने कहाशाननायक गुलबर्गमें प्रवेश कर बहुत-से सकते । फलतः कृष्णानदीको सीमासे कुमारिका अन्तरीप पदियों के साथ लौटे । फेरिस्ताका फहना है, जि पर्यन्त जिनका शासनदण्ड परिचालित होता था, वे देवरायने घामनीराज्यके मुसलमानों पर अनर्थक आक्रमण | अपनेको गलाउद्दीनका फरद राजा खीकार करें, ऐसा किया था। उन्होंने तङ्गभद्रा पार कर मुद्गलका दुर्ग, हो ही नहीं सकता। पर हां, युद्धविप्रहमे परास्त होने जोता, रायचूड़ आदि स्थानों को दखल करने के लिये | पर कुछ अर्धदान करना असम्भव नहीं। देवराय पुत्रों को भेजा। उनको सेनाने विजापुर पर आक्रमण मल्लिकार्जुन और विरूपाक्ष पे दो पुत्र छोड़ परलोकको किग और इन सब स्थानों को अवस्था शोचनीय सिधारे । कर डाली थी। उधर अलाउद्दीनने यह संवाद मल्लिकार्जुन। पा कर तेलिङ्गना, दौलतावाद और येरारसे सेनासंग्रह द्वितीय देवरापकी मृत्यु के बाद विद्यानगरके सिंहासन कर अहमदाबाद मेगा । इस समय उसकी घुड़सवार | पर कौन अधिरूढ़ हुभा, यह ले कर प्राचीन ऐतिहासा- सेनाको संख्या ५०००० और पदातिकको ६०००० थी। में बहुत मतभेद है। किन्तु अमी जो सब ताम्रशासन और दो मासके भीतर तीन तुमुल युद्ध हुप-इन युद्धों में दोनों शिलालिपि आविष्कृत हुई हैं, उनकी आलोचना कर देखा पक्षको महतो क्षति हुई थी-हिन्दुओ ने पहले जयलाभ गया है, कि २० शिलालिपिमें मषिसंवादित भाप लिनt किया था, किन्तु गाबिर खान जमानके भाघातसे देवराय है, 'देवरायकी मृत्युफे वाद १४४६६०में उनके लह का बड़ा लड़का यमपुरको सिधारा। इस शोचनीय मल्लिकार्जुन,राजसिंहासन पर बैठ १४६५ ६० तक राज्य. घटनासे हिन्दुसेना तितर बितर हो गई और मुद्गल दुर्गमें शासन किया। मल्लिकार्जुन विविध नामोसे पुकारे भाग चली। अन्तम देवरायने मेल कर लिया। . | जाते थे:-इमाडि यौद्ध देयराय, इमाडि देवराय, वीर ___ अमी जो शासन और.शासनलिपि भाविकृत हुई। प्रताप. देवराय। श्रीशैल पर जो मल्लिकार्जुनदेव है, हैं उनसे जाना जाता है, कि वीरप्रताप देवराय महारायने उन्हीं के नामानुसार इनका नामकरण हुमा । मिम्माना