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विध-विधवा
का पात्र या भाजन, जिसके साथ विद्वप किया जाय। विधार्गक (सं०नि०) विशिष्ट धर्मशील 1 .. ..
विध ( स० पु०) विध-क, अच् वा । १ विमान । विधान (स० पु०) १ सुधर्मा, उत्तमर्गयुक्त । २ विधा-
२ गजभक्ष्य अन्न, हाथोके खानेका दाना । ३ प्रकार, रक! ३ विधारण ।
भेद । ४ धेधन, छेद करना। ५ ऋद्धि, समृद्धि । ६ घेतन । विधर्मिक (स त्रि०) १ अधार्मिक, 'जो धर्माविरुद्ध
७ कम्म', कार्य। ८ विधान, विधि, नियम ।
आचरण करता हो। २ भिन्नधर्मा, जो दूसरे धर्माका
विधनी (स स्त्री० ) ब्रह्माकी शक्ति, महासरस्वती। अनुयायी हो। . ... .
विधन (सं० पु०) जिसके पास धन न हो, निर्धन, गरीब । विधमों (सं० वि०) धर्मभ्रष्ट, जो अपने धर्मके विपरीत ।
विधनता ( स० स्त्री०) विधन होनेका भाव, निर्धनता,
भावरण फरता हो । २ परधर्मावलम्बी, जो किसी दूसरे
गरीयो ।
धर्मका अनुयायी हो।
विधना (हिं० कि० ) १ प्राप्त करना, अपने साथ लगाना, विधयता (सं० स्त्री० ) वैश्य, पतिराहित्य । , .....
अपर लेना। (स्त्री०) २ यह जो कुछ होनेको हो, भविः | विधयन ( स० क्लो०) वि-धूल्युट.। कम्पन, फापना।
तथ्यता, होनो । (पु०) ३ विधि, ब्रह्मा। विधययोक्ति ( स० स्रो०) विधया एय योपित् भापित.. .
विधनीकृत (स० वि०) जो निधन किया गया हो।
पुस्कत्वात् पुस्त्वम् । विधवा स्त्री, रांड, घेगा। ..
मया
"यूतेन विधनीकृतः" (कथासरित्सा० २४५८) .
. . . . . . . विधवा देखो.।
विधनुष्क (सं० वि०) धनुहीन ।
विधया ( स० स्त्री०) विगतो धवो भर्ता यस्या। मृत.
विधनुस् (सं०नि०) च्युतधनु ।
भर्न का स्त्री, जिस स्त्रीका पति मर गया हो । पर्याय -
विधन्यन् (सं० वि०) जिसका धनुष नष्ट हो गया हो, विश्वस्ता, जालिका, रएडा, तिनी, यति । (शब्दरत्ना०)
खण्डित धनु।
धर्मशास्त्रमें हिन्दू विधयाके कर्तव्याकर्त्तव्यका विषय
विधमचूड़ा (सं० स्त्री०) जिसका अग्रभाग पा चूड़ा धूम | विशेषरूपसे वर्णित हुभा है।
या अग्निसंयुक हो।
. स्वामीको मृत्यु के बाद तो उसका अनुगमन करे या
विधमन (सं० पु० ) धौंकनी या नल आदिके द्वारा हवा |
ब्रह्मवर्याका अवलम्बन फर जीवन अतिवाहित करे।
पहुंचा कर आग सुलगाना, धौंकना। "
स्वामोका अनुगमन या ब्रह्मचर्य . ये दोनों हो" इच्छा
विधमा (स० स्त्रो०) विमा श तस्मिन् परे धमादेशश्च ।
.विकल्प है अर्थात् इच्छानुसार इन दोनों में एक करना !
१ विकृत या विविध शब्दकारिणी। २ विकृतगमनः |
न होगा। ब्रह्मचर्य शब्दका अर्थ-मैथुन और ताम्बूल आदि
शोला।
. . .
वियर्जन समझना होगा । "ब्रह्मचया उपस्थसंपमा"
विधरण (सं० पु०) १ पकड़ना, रोकना । २ विधृति देखो।
उपस्थ संयमका नाम ही ब्रह्मचर्या है। ब्रह्मचारिणी
विध (सं० त्रि०) विधृ तृव । १ विविध कारक। विधयाको स्मरण. कीर्शन, फेलिप्रेक्षण, गुह्यमापण आदि
२ विधारयिता, विधारणकर्ता । ३ विधानफर्ता, विधान | शास्त्रोक अष्टाङ्ग मैथुन नहीं करना चाहिये। ताम्बूल-
या विहित करनेवाला। .. . . .सेघन, अभ्यञ्जन और फूलको थाली में भोजन, विधवा
विधर्म' ( स० पु० ) १ अपने धर्मको छोड़ कर और लिये अवैध है। विधयाको दिन में एक बार भोजन करना
'किसीका धर्म, पराया धर्म। २ अपने धर्मको छोड कर चाहिये । उसफो पलङ्ग पर सोना उचित नहीं, यदि ..
दूसरेका धर्म प्रहण करना जो पाँच प्रकार के अधों में से | वह सोये, तो उसके स्वामीको अधोगति होती है।
.पक कहा गया है। (नि०) ३ धर्मशास्त्रनिन्दित, जिसके विधवाफो किसी तरहके इत्र आदिका व्यवहार न करना
धर्मशास्त्र में निन्दा की गई हो। ४ गुणहोण, जिसमें चाहिये । नित्य कुशतिलोदक द्वारा वह स्वामीका तर्पण
गुण न हो। . . . . . . . . . : : करे। पुत्र और पौत्र.न रहनेसे तर्पण अवश्य विधेय है।.'
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/४७८
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