. विधेयता-विनत
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या किया जानेवाला हो। ३ यघन या माशाके वशीभूत, विध्य (सं०नि०) १.वेधने योग्य, छिदने योग्य । २ छिद्य,
अधीन । ४ जो नियम या विधि द्वारा जाना जाय, | जिसे घेघना हो, जो छेदा जानेवाला हो।
जिसके करने का नियम या विधि हो। ५ यह (शब्द | विध्यपराध (सं: पु०) विधिम्रए।
या पाषय) जिसके द्वारा किसीके सम्बन्धामें कुछ कहा . . (भारवक्षायन शौत० ३।१०।१)
जाय । जैसे,—गोपाल सजन है" इस पाक्यमें "सजन | विध्यपाधय (सं० पु०) १ वह जो अच्छी तरह लिखी
है" विधेय है, क्योंकि यह गोपालके सम्बन्धमें कुछ हुई यिधिका अनुसरण करता हो । २विधिका माश्रय
विधान करता है अर्थात् उसको कोई विशेषता घताता : करनेवाला ।
हैं। न्याय और प्याकरणमें . वाफ्यके दो मुख्य भाग रिध्याभास ( स० पु०) एक अलङ्कार । जहां घोर
माने जाते हैं---उद्देश्य और विधेय। जिसके, सम्बन्ध- अनिष्टको सम्भावना दिखाते हुप अनिच्छापूर्णक विधिको
में कुछ कहा जाता है, यह "उद्देश्य" कहलाता है और कल्पना की जाती है, उसी जगह यह मलङ्कार होता है।
जो कुछ कहा जाता है, यह "विधेय" कहलाता है।
(साहित्यद०१० परि०)
विधेयता ( स्त्री) विधेयस्य भाषः विधेप तल टाप। विध्वंस (सं० पु०) विध्वंस-धम्। १ विनाश, नाश,
१विधानको योग्यता या चित्य । २ विधेयका भाष- वरवादी । २ उपकार। ३ यैर । ४ अक्षर। ५घृणा ।
या धर्म, अधीनता।
६ पैमनस्य ।
विधेयस्य (Eio फ्ला०) विधेय-भावे त्य । विधेयता, विधेष विध्वंसक ( स० नि०) १ अपकारक, बुराई करनेवाला ।
का मात्र या धर्म। .
२ अपमानकारी, अपमान करनेवाला । ३ ध्यसकारी,
विधेपारमा ( पु०) विष्णु i ( भारत ११४ )
नाश करनेवाला।
विधेयापिमर्ण (सं० पु०) विधेयस्य अविमो यत्र ।
पल विध्वंसन (सं० लि०) १ ध्वंसकारो, नाश करनेवाला ।
साहित्य में एक याक्यदोष । यह विधेय अंशको अप्रधान (को०)२ ध्यंस. नाश, परदादो। (दिध्या. १८०२४)
स्थान प्राप्त होने पर होता है। जो दात प्रधानतः कहनी विध्वंसित (स'., नि.).वि-वन्स णिचुक्त। १ नष्ट
है, उसका याफ्य-रचनाके वीन दवा रहना । प्रत्येक
किया हुमा, वरवाद किया हुमा । २ अपकारित, अपकार
वाक्यमें विधेयकी प्रधानताके साथ निर्देश होना चाहिये ।।
किया हुआ। .
.
ऐसा न होना दोष है। 'विधेय' शब्दके समासके बीच
विध्न सिन् ( स०नि०) विध्वसयितु शीलमस्य वि.
पड़े जानेसे या विशेषणरूपसे आ जाने पर प्रायः यह
ध्वन्स-णिनि । १ नाशकारी, दरयाद करनेवाला । २ अप-
'दोष होता है । जैसे,—किसो चीरने खिन्न हो कर
कारक यिध्वंसिनशील यस्य । ३ बसशील।
कहा-"मेरो इन व्यर्धा फूलो हुई वाहोंसे क्या ।" इस
विध्यस्त (स.वि.) वि-वन्स.क्त। १ विनष्ट किया
चाफ्यम कहनेवालेका अभिप्राय तो यह है, कि मेरी वाई
हुमा, वरवाद किया हुमा । २ अपकृत, अपकार किया
व्यर्थ फूली हैं, पर 'फूली हैं' के विशेषण रूपमें आ
जानेसे विधेयकी प्रधानता नहीं स्पष्ट होती! दुसरा
| विनंशिन (स.नि.) धिनष्टुशीलं यस्य । विनाशशील,
उदाहरण-"मुझ रामानुगके सामने ‘राक्षस फ्या
जिसका नाश हो।
ठहरेंगे?" यहां कहना चाहिये था कि-"मैं रामको अनुज
| विनङ्ग,स ( स० पु० ) स्तोता, स्तवकारो, यह जो स्तुति
" तव रामके सम्बन्धासे लक्ष्मणको विशेषता प्रकट
८ करता हो। ..
होती। । ।
,.. :
विधेयिता (सं० स्त्री० ) विधेयता, विधेयस्य ।।.. .
विनज्योतिस्, (स नि०) १ उज्ज्वलकान्ति । २ विनय
.. (काम० नीति १६७ ज्योतिषका प्रामादिक पाठ। .
विधमापन (सं० लि.) १ अग्निसंयोजक । यिकोरण । | विनव (स) नि०).वि-नम् त! १ प्रणत, मानत । २ भुग्न
... . .. .. :: . . . . (पागभट १०१२); टेढ़ा पड़ा हुमा, पक। ३ शिक्षित, शिध । ४ सङ्क,चित,
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/५०१
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