पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/५५४

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४७४ विभुवर्मन्-विभूतिद्वादशी विभुयर्मन्-~राना अंशुवर्माके पुत। ये ६४६ ई०में विद्यः । पूजा करनी पड़ती है। इस तरहको पूजा करके दूसरे मान थे। . दिन अर्थात् द्वादशीके दिन प्रात:काल स्नानादि प्रातः विभूतङ्गमा (सं० स्त्री० ) वहुसांख्यक । कियाको समाप्त कर शुक्माल्य और. अनुलेपनों द्वारा विभूतधुन ( स० वि० ) प्रभूतयशस्वो वा प्रभूत अन्न विष्णुपूजा कर निनोक्त रूप से पूजा करनी चाहिये- पिशिष्ट। ( मृक १११५६।१) "विभतिदाय नमः पादावशोकाय च-जानुनी। , यिभूतमनस् (स० वि०) विमनस्, उदार। नमः शिवायेत्यूरू च विश्वमूर्तये नमः कटिम् ॥ (निरुक्त१०।२६) कन्दाय नमो मेदमादित्याय नमः करो। विभूतराति (सं० त्रि०) पादाने-रा-क्तिन् रातिः दानं. दामोदरायेत्युदरं घासुदेवाय च. स्तनौ ॥ विभूतां रातिं दानं यस्य । विभूतदान । (ऋक १६२) माधवायेति हृदयं फगठमुत्कपिठते नमः ।. विभूति (स. स्त्री०) विभू-क्तिन् । १ दिव्य या अलौकिक श्रीधराय मुखं केशान केशवायेति नारद.॥ शक्ति । इसके अन्तर्गत अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, | पृष्ठ शाघिरायेति श्रवणौ च स्वयम्वे । प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्य और वशित्व ये आठ सिद्धियां स्थनाम्ना शङ्खचक्राति गदापरशुपाणयः। हैं । पातालदर्शनके विभूतिपादमें योग द्वारा किस प्रकार - . सर्वात्मने शिरोब्रह्मन् नम इत्यभिपूजयेत् ॥" कौन कौन ऐश्वर्या प्राप्त होता है उसका विशेष विवरण . . .,(मत्स्यपु० ८३ भ०) लिखा है। . "पादौ विभूतिदाय नमः" जानुनी अशोकाय नमः २ शिषघृतभस्म, शिवफे अङ्गमें चढ़ानेकी राख । इत्यादिरूपसे पूजा करनी होती है। एकादशीको रात देवीभागवतके ग्यारहवें स्कन्ध.१४३ अध्यायमें विभूति- को एक घड़े में उत्पलके साथ यथासाध्य भगवान् विष्णु. धारणमाहात्म्य तथा १५वें अध्याय त्रिपुण्ड और अध्य, को मत्स्यमूर्ति तय्यार करा कर स्थापन करना चाहिये पुण्धारणविधि विस्तारसे वर्णित है । . . . . | और एक सितवस्त्र द्वारा वेष्टित तिलयुक्त गुड़का पान भगवान् विष्णुका यह ऐश्वर्ण जो नित्य और स्थायी रखना होगा। इसी रातको भगवान् विष्णुके नाम और माना जाता है। ४ लक्ष्मी । (भृक ११३०५) ५ यिभवहेतु ।। इतिहास सुन कर जागरण करनेकी विधि है। माता- (ऋक ४६।६११) 'विभूति गतो विभयहेतु:'. ( सावण ) | कालमें एक उवकुम्भाफे साथ देवमूर्तिब्रह्मणको निनोक्त ६ विविध सृष्टि। (भागवत ४।२४।४३) ७ सम्पत् , धन । प्रार्थनापाठ कर दान करना होता है। . . . ___ "अभिभूय विभूतिमार्त्तवीं मधुगन्धातिशयेन वीरुधाम । 'यथा न मुच्यते विष्णोः सदा सर्वविभूतिभिः। . . (रघु०८।३६) । तमा मामुद्धराशेषदुःखसंसारसागरात् ॥" ८ बहुतायत, बढ़ती। विभव, ऐश्वर्य। १० एक . इस तरह दान कर ब्राह्मण, आत्मीय कुटुम्बको भोजन दिय्यान जो विश्वामिलने रामको दिया था। करा कर स्वयं पारण करना। यह प्रत प्रतिमास करना विभूतियन्द्र ( स० पु० ) बोइंप्रन्धकारभेद । (तारनाथ )| होता है। , पहले,जो मास उल्लिखित हैं, उनमें किमी विभूतिद्वादशो ( स० स्रो० ) विभूतियाधिका द्वादशी, | माससे भारम्भ कर एक घर्ष तक अर्थात् बारह मास तक, एक व्रतका नाम। यह व्रत करनेसे विभूति बढ़तो है, | : को धारह द्वादशीके दिन इसी तरह नियमके साथ प्रता. इसीलिये इसका नाम विभूतिद्वादशी पड़ा है।' मत्स्य | नुष्ठान करना होगा। एक घर्षफे बाद एक छोटे नमक- पुरागर्म सकी विधि लिनी हुई है। यह विष्णुफा व्रत ! के पर्वत के साथ एक शय्यादान देनी चाहिये । यथाशक्ति है। यह सय व्रतोंमें अधिक पापनाशंक है। प्रतका | वह भग्नवस्त्र भी दान , करें। यदि अतिदरिद्र व्यक्ति - विधान इस तरह है-"कार्तिक, अप्रहायण, फाल्गुन, ऐसे दान करने में असमर्धा हो, तो वे दो वर्ष तक एका.. वैशास्त्र या आपाढ़ मास शुक्ला दशमीको रातको संयमसे। दशोके दिन उपयास, पूजा और द्वादशीके दिन पूजा रहना पड़ेगा, दूसरे दिन एकादशीका व्रत कर विष्णुको । पारण'फरें। ऐसा होने पर ये सब पातोस मुक्त