पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/५५६

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४७६ विभो-विम विभो (सं० पु०) विभुका सम्बोधनरूप, हे विभु! विभ्रातव्य (स'० क्ली०) वैमात्रय। विनश (सं० पु०) १ विनाश, ध्वंस। २ पतन, अव विभ्रान्त ( सं स्त्रो० ) विभ्रम-त । १विभ्रमयुक्त, भ्रम.. नति। ३ पर्वतका भृगु, पहाड़की चोटी परका चौरस में पड़ा हुआ। २ घूमता हुमा, चकर खाता हुथा। : मैदान । ४ ऊंचा कगार। निम्रान्ति (स'० स्त्री० ) विभ्रम क्तिन् । १ विभ्रम, भ्रम, विभ्र शित (सं० लि०) १ विभ्रष्ट, पतित । २ विच्छिन्न । संदेह । २ फेरा, चकर। ३ हडबड़ी, घबराहट । ३ विपथसे लाया हुभा । ४ विलुप्त। विभ्राप्टि (सस्त्री०) १ दीप्ति, प्रभा। २ शोभा। विभ्रंशितशान (० त्रि०) २ज्ञानशून्य, येहोश । २ धुद्धि- विभ्र ( स० पु० ) वन, शब्दका प्रामादिक पाठ । भ्रष्ट, जिसको घुद्धि मारी गई हो। (भारत वनपर्व) विभ्रंशिन (सं० वि०) १ पतनशील । २ जिसका अधा घिने प ( स० पु०) विप्रमोह। . . .. पतन हुआ हो। ३ निःक्षेप। ४ निश्चिन्त । (भाश्व० श्री० १।२।१२ भाध्य) विभ्रट-पर्वतभेद । ( कालिकापु० ७८३६) | विभ्यतप्ट (स० वि० ) विभु ग्रहा कर्तृक जगत्के आधि. विभ्रत् (०नि०) विभृ-शत-विभर्शि य: । धारण. | पत्य पर स्थापित । ( ऋफ ३४६१) : पोपणकर्ता। विभ्वन् ( स०नि०) १ च्याप्त, फैला हुआ। "प्रकेतो विभ्रम (सं० पु०) वि-भ्रम यम् । १ हावभेद। प्रियके | गजनिष्ट विम्या" (ऋक ११११३।१ ) विभ्वा विभुप्तिः, .. मिलने पर स्त्रियां जो तरह तरहके प्रेमालाप करती, तरह, विप्रसम्म्यो सुसज्ञायामिति भवते प्रत्ययः । सुशं सुलु. तरहके शृङ्गारादि द्वारा अपने शरीरको सजाती उसीका | गित्यादिना सोराकारादेशः, ओं सुपीति यणादेशस्य न । नाम हापभाव या विभ्रम है । २ स्त्रियों का एक भाव इसमें भूसुझियोरिति प्रतिषेधे प्राप्त छन्दस्युभयश्चेति यणादेशः वे भ्रमसे उलटे पुलटे भूषण पहन लेती है, तथा रह रह | ( सायण ) (पु० )२ सुधन्वाके पुत्र । (फ १०७६५), पर मतथालेकी तरह कभी कोध कभी पूर्ण आदि भाव विम-सुमानाके निकटवती सुमवाया द्वोपकं अन्तर्गत एक प्रकट करती हैं। ३ प्रियका भागमन संवाद पा कर अत्यन्त छोटा राज्य । यह उक्त दोपके पूर्व में अवस्थित है। सपि हर्ण और अनुरागयशतः यड़ी उतावलीसे स्त्रियों का जहां प्रणालोके मध्यस्थ कुछ द्वीप भी इस राज्यके अन्तभुक्त तहां भूषणादिका विन्यास,। जैसे तिलक पहननेकी जगह हैं। राज्यके अन्तर्गत गुनुङ्ग-अपि द्वोपमें एक ज्वालामुखी अर्थात् ललाटमें अञ्जन, अञ्जन पहनेको जगह अलक्तक - पहाड़ है। आज भी उस पहाड़से कभी कभी भाग निकल (महावर) और अलक्तक पहनने की जगह तिलक इत्यादि।| करती है। विम उपसागरमें प्रवेशपथसे कुछ ऊपर विम ___४ शृङ्गाररसोद्गममें चित्तवृत्तिका अनवस्थान ।। नामक छोटा नगर प्रतिष्ठित है। यहां ओलन्दाजोंका ५ स्त्रियों का यौवनज विकारविशेष। ६ भ्रान्ति, भूल । | एक किला है। क्ष:०८२६ दक्षिण तथा देशा० ११८. ७ शोमा 1 ८ संशय, संदेह । भ्रमण, फेरा । १० अस्थि. ३८०के मध्य उपसागरका प्रवेशद्वार है । यहांके . रता, घबराहट। अधिवासियोंकी भापा एकदम नयी हैं। किन्तु वे लोग विभ्रमा (सं० स्त्री०) वाई फ्य, बुढ़ापा ।।। सिलेविस द्वोपवासीको लिखित वर्णमालामें लिखते पढ़ते . विभ्रमिन् ( स० वि०) विभ्रमयुक्त। हैं। उनको स्वजातिमें जो वर्णमाला प्रचलित थी, वद. विनाज (स० नि० ) यिभाट देखो। सभी बिलकुल लोप हो गई है। स्वभाव और चाल ढाल. विभ्राज (सं० पु०) राजभेद । (हरिव'श) वैमाज देखो। . में ये लोग सुसभ्य सिलेविस द्वीपवासी-सरीखे हैं। .. विभ्राट् ( स० त्रि०) विशेषेण भ्राजते इति विभ्राज-किए। किन्तु उन लोगोंकी तरह घिमवासी उद्यमी और कर्मठ (अन्यम्यो पि भ्यते । पा. ३१३१७७) १ अलङ्कारादि नहीं है। . , .... द्वारा दीप्तिशोल । पर्याय-माजिष्णु। २ शोभायमान। इस राज्यके अधिवासोकी संख्या प्रायः १० हजार ३ दोप्तिमान् । ४ . उपद्द, बखेड़ा । ५ मापत्ति, संकट ।। है। यहां चन्दनकाष्ठ, मोम और घोड़े मिलते हैं ।. घोड़े