पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/५८६

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५०८ विरुद्ध-विरुद्धका भोजन करना होता है। मृणाल, मूलक और गुड़के साथ ' प्रस्तुत मद्य परस्पर विरुद्ध हैं। पायस भोजन कर :' यह मांस संयोगविरुद्ध हो जाता है। दुग्धके साथ मद्य आदि भक्षण . करना संयोग-विरुद्ध होता है। मछलीका भोजन और भी विरुद्ध है। सब तरहक अम्ल हरा शाफ सरसोंके तेलमें सिद्ध करनेसे सांयोग- और अम्लफलोंका दुग्धके साथ संयोग करनेसे यह संयोगः विरुद्ध होता है। पारके :शाकमै यदि तिल पीस कर . विरुद्ध कहा जाता है उड़द, वल्ल (एक तरहकाधान), मकुष्टक पड़ा हुआ हो, और वद्द खाया जाय, तो विरुद्ध सायोगः (वन मूग), वरफ (चीना), काउन, ये सब चीजें भी दुग्धफे होता है। इससे अतिसार रोग हो जाता है। वारणी - साथ व्यवहार-विरद्ध हैं। मूली आदि शाक भक्षण के बाद मद्य या कुल्माय ( अद्ध सिद्ध मूग आदि) के साथ दूधका व्यवहार संयोग विरुद्ध है। सजार और सूअरके वगलेका मांस संयोग विरुद्ध होता है। शूकरको चौंमे : मांसका एक साथ व्यवहार संयोग-विरुद्ध है। पृषत यगलेका मांस भुन कर खानेसे तुरन्त ही मृत्यु होती नामक हरिण और मुर्गाका मांस ददीके साथ व्ययहार हैं। इस तरह तित्तिर, मयूर, गोसाप, लाया और चातक. . . संयोग विरुद्ध है। पित्तके साथ कच्चा मांस अर्थात् ] का मांस रेडीन्ह तेल में तल कर खानेसे तुरन्त हो मृत्यु पित्त गल कर कच्चे मांसके भीतर प्रवेश करने पर पे होतो है । कदमको लकड़ीमें गांथ कर कदमको . मांस संयोग-विरुद्ध हो जाते हैं, इससे ये अव्यवहार्य हैं। अग्निमें हरियाल का मांस पका कर खानेसे उड़द और मूली दोनों मिला कर भोजन करना निषिद्ध , तुरन्त हो मृत्यु होती है। भस्मपांशु मिश्रित मधुयुक्त है। भेड़े का मांस कुसुम-शाकके साथ, नया धान, हरियालका मांस सद्याप्राणनाशक है । संक्षेपमें कहने मृणाल के साथ, वड़हर, उड़दका जूस, गुड़, दुग्ध, दधि, पर यह कहना होगा, जो सब साध शरीरके यातादि और घृत पे सब चीजे एकल संयोग कर भक्षण न करना। दोपको फ्लेदयुक्त कर इधर उधर सञ्चालित करते हैं । चाहिये । महा, दही या तालक्षोरके साथ केला भक्षण और उनको निकले नहीं देते, घे संयोग-विरुद्ध है। करनेसे संयोग विरुद्ध होता है। पोपल, गोलमिर्च, विरुद्ध भोजनजनित दोपौ यस्त्यादि (पिचकारी). . मधु गौर गुड़के साथ मकाय शाक संयोग-विरुद्ध , अथवा इसके विरुद्ध औषध या प्रक्रियादि द्वारा प्रतिकारक है। मछलीके पात्र पाक या सोठके-पात्रमे मिद्ध या चेष्टा करना उचित है। किसी -स्थलमें संयोग-विरुद्ध अन्य किसी पाकपालमें सिद्ध मकोय शाक संयोग द्रव्य भाजनका सम्भय रहने से यहां पहले से ही विरुद्ध विरुद्ध है। जिस कड़ाहॉमें मछली नली गई है, उसमें खायके विपरीत गुणविशिष्ट द्रष्यों के द्वारा शरीरका इस पीपल और सोंठ सिद्ध करनेसे संयोग-विरुद्ध होता है। .तरह सस्कार कर रखना होगा, जिससे विरुद्ध खाच- इसमें और भी व्यक्त हुआ, कि मछलीको तरकारीमें, वस्तु खानेसे भी सहसा अनिष्ट न हो सके। (जैसे घरो• सोंठ या पोपल नहीं मिलाना चाहिये। कांसके पात्र में दशा तको पित्तश्लेष्मनाशक ) पित्तश्लेष्मक मछली आदि भक्षण रात तक यदि घी रखा जापे, तो यह भी ध्यवहार-विरुद्ध का सम्भव होने पर उससे.पहले इस.हरीतकी (दर)का हो जाता है। भास पक्षोका मांस एक लोहे के दण्डेमें अभ्यास करनेसे, उक्त मछली खानेसे होनेवाले अनिष्टका .. छेद कर यदि पकाया जाय, तो यह विरुद्ध होता है। भय नहीं रहता। व्यायामशील, स्निग्ध (तैलधृतादि कमलागुड़ी तक्रमें साधित होने पर विवद्ध होता है। का यथायय -मर्दन और भक्षणकारी), दीप्ताग्नि, तरुण पायस, मद,और फशर इकट्ठा होनेसे विरुद्ध होता है। वयस्क, बलवान व्यक्तियों के लिये पूर्वोक्त विरुद्धान्नादिसे घृत, मधु, घसा, तेल और जल-इनमें कोई भी दो हो। सहसा अपकार:नहीं होता। फिर नित्य पिरोधिमाजन . या तीन समानारूपसे एकमे मिलानेसे विरुद्ध होता है। मथमा अल्प भोजन करनेवालोको विशेष अपकार नहीं । • मधु और घृत असमान अशमें पकत करने पर भी वहां होता। (बाग भट स० स्था०८५०) , ... आकाशजल अनुपानविरुद्ध है। मधु और पुष्करदोज | विरुषर्मा (सं० पु०) १ विरुद्धकर्म करनेयाला, विपरति । 'परस्पर विरुद्ध है। मधु, खजूरका रस और चोनोसे मातरणका मनुष्य । २ फेशयफे अनुसार श्लेष अलङ्कार