पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/६३८

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५५२ विवाह यहुपनित्य (Polyandry)। । व्ययति, -, तस्मान्नैका द्वौ पतो विन्देत” इत्यर्शयादिक- यहुपतीफे अनेक उदाहरण हैं, किंतु बहुभरिकी निषेधविधेरैकस्याः पतिद्वयस्यामाप्सत्यात् . कमिय प्रथा बहुत कम है। वेदमें इस प्रथाका उदाहरण या | दीर्घतमसा मर्यादा क्रियत इति चेत्तनाह मृते. इति । उल्लेख नहीं मिलता। ऋग्वेदमें भी एक स्त्रोके बहु. तस्मादकस्य हड्यो जाया भवति नेकस्यै यहवः सह । पतिका उल्लेख दिखाई नहीं देता। श्रतिमें स्पष्ट हो । पतयः इति श्र त्यांतरे सह शब्दात् पर्यायेणं अनेकपतित्व लिखा है- प्रसञ्जनात् रागतः प्राशत्वान्निबोधोपपत्तिः 'सह' शब्दो- १। "नकस्या व्दवः सह पतयः" ऽपि रागतः प्राप्तानुयाद एव न विधायक, अन्यथा विहित- अर्थात् एक स्त्रांके बहुतेरे पति नहीं होने चाहिये। पतिसिद्धत्वात् अनेकपतित्ये वि.पा स्यात् । कयं २। "यन्नेका रशना द्वयोपयाः परित्यध्यति । तहि द्रौपद्याः पञ्चगएडवा मारिपाश्च दश प्रचेतसः १ तस्मालोको द्वौ पती विन्देत ।" इदानान्तनानां नोचानाञ्च . द्विधादयः पतयो दृश्यन्ते : अर्थात् जैसे एक रस्सी दो युपों में नहीं' यांधी इति चेन्न। "न देवचरितं. चरेन्" इतिन्यायेम देवता जाती है, वैसे एक स्त्रो दो पति नहीं कर सकती। । कल्पेषु पर्यानुयोगायोगात्; नीचानां पशुप्रायाणाञ्च प्रथम श्रुति इस विषयमे उतनी दूढतर निषेध. 'चारस्याप्रमाणाच; अधिकारिविषयवत्त्याच्च नियोग- याचक नहीं। क्योंकि "सह पतयः" शब्दका अर्थ यह स्येति दिक् ॥" (आदिपर्व १०४।३५-३६). . : है, कि एक स्त्रीके युगपत् अर्थात् एक साथ कई पति ____ नीलकण्ठ के सिद्धान्तका मर्ग यद है, कि द्रौपदी और नहीं रह सकते। किन्तु भिन्न भिन्न समयमे पति रह! मारिपाके बहुपति थे और इस समय नीच जातियों में सकते हैं । द्रोपदीक पंचपाण्डवों के विवाह के समय ! स्त्रियों के बहुत पति देखे जाते है। इन सब उदाहरणोंसे यापत्ति कर द्रुपद राजाने कहा था-स्त्रियों के लिये वाटु बहुभर्रा कता सभ्य समाजकी विहित नियम नहीं हो पतित्व घेदविरुद्ध है। इस पर राजा युधिष्ठिरने उक्त सकती। शास्त्रकारोंका कहना है, कि "न देवचरितं , श्रुतिको व्याख्या अच्छी तरहसे समझा दो थी। फिर चरेत्" अर्थात् देवताओंके भावरण के अनुसार आचरण युधिष्ठिरने इसके सम्यन्ध गौतम-चंशोया जटिलाके वाहु । नहीं करना चाहिये। द्रौपदी आदि देवों में गिनी जाती भरिकी यातका प्रमाण दे कर इसका समर्थन किया | हैं। जनसमाजके लिये उनका आचार व्यवस्थापित था। उन्होंने यह भी कहा था, कि वाक्षी नामको कन्याका नहीं हो सकता। दूसरी ओर पशुप्रायः नीच जातिके सात मृपियों के साथ विवाह हुमाया। मारिपा नाम्नी लोगोंका व्यवहार भी शिष्ट समाजके लोगों के लिये कन्याका विवाह 'प्रचेता' दश भाइयोंके साथ हुआ था। प्रामाणिक माना नहीं जा सकता। और अधिक भो भेद- फलता ऋग्वेद में हमने ऐसा एक भी उदाहरण नहीं से नियोग.व्यवस्थेय है। यह प्रथा समाजमें अवाधरूप पाया। हिन्दू-समाजको सभ्यताके विकाशके साथ चलाई नदी जा सकती। यता इस समय बहुभर्नु कता साथ बहुपतिकताका विधान लुप्त हो गया। महाभारत प्रथा शास्त्रसम्मत नहीं हो सकती। भारतवर्ष के दक्षिण . में दोर्षतमाप्रयर्शित जिम मादाफे स्थापनका उल्लेख | प्रान्तोंके सिवा यह प्रथा कहीं भी प्रचलित नहीं। है, यदी रिनपोंके लिये एकमात्र पतिप्रहणका सनातन विधवा पत्नी। नियम है। यह नियम सब समाजमें एक समान आदत , हिन्दू समाज में विधवा पत्नीरूपसे ग्रहण की जाती । हो रहा है। महाभारतफे दोर्मतमाप्रयर्तित मर्यादा- थी। इस वातका प्रमाण और उदाहरण शास्त्रोम बहुत, स्थापन प्रसङ्गो टोकाकार नीलकण्ठने इस विषयमै कम नहीं। फिर जिस उत्सव तथा धूमधामसे पधारा अन्तिम मीमांसा लिपिवद्ध की है। यथा- वालिकाका वियाह होता है, उस तरह विधयाओं का विषाद "ननु यदेकस्मिन् यूपे के रशने परिव्ययति तस्मादेको सर्वसम्मत नहीं तथा धूमधामके साथ कमो हुआ । हे जापे विन्दान्ते। पन्तका रशनां प्रयो .यूपयोः परि- या नदा, यह विषय विचारणीय है। हिन्दू समाजमे--