पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/६५५

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विवाह , मन्त्रका अर्थ इस तरह है - "कामदेव, तुम्हारा नाम | नववस्त्र धारण समो जानते हैं, तुम्हारा नाम मद है, तुमसे हो मानसिक ____ उपस्थप्लावनके अन्तमें स्नान करानेके बाद कनयाको मराता उत्पन्न होती है, इसीलिये उसका नाम मद है। नये वस्त्र धारण करनेकी व्यवस्था आज भी देखी जाती तुम अब इसके घरको सम्मास आश्रय कर लो उसको' है। सामवेदके मबाह्यणमें विवाह के लिये तय्यार तुम अपने कब्जे में करो। हे अग्निदेव ! इस कन्यामें तुम्हारा फनधाको नया यत्र धारण कराने का नियम और मंत्र • श्रेष्ठ जन्म हुआ है। तुम तपके लिये ही विधाता द्वारा लिखा है, यथा---"या आकृणवन् नवयन, या अतन्यत स्पष्ट हुए हो । इत्यादि। याश्वव्यो मतानमिता ततन्य, ताता देव्या जरसा इसके बाद कन्याके उपस्थप्लावनका विधान था, संख्यात्यायुभती परिधत्सुधासा" उसका मन्त्र इस तरह है- ____ अर्थात् जिन देवियोंने इस पत्र के सून तय्यार किये "इमन्त उपस्य मधुना समजामि प्रजापते खमेतद्वितीयम् । हैं, जिन देवियोंने इसको घुना है, जिन देवियोंने इसको ...तेन पुंमोऽ में भाभि निशान्यसि राज्ञो स्वाहा ॥" स आकारमें फैलाया है और जिन देवियोंने इसके दोनों ___ अर्थात् हे कम्ये ! तुम्हारो इन भानन्दादयों में मधुता किनारोका झालर तय्यार किण है। यही देवियाँ समका लेहिया जाता है, यह प्रजापतिका दूसरा मुव है अर्थात् , पृद्धावस्था तक उत्साह के साथ घस्न पहनाती रहें। हे प्रजा उत्पत्ति द्वारा इस ।न्द्रिय प्रमायसे अवश पुरुषांको आयुष्मनि! यह वस्त्र परना भी घशीभून कर सकती हो । अतएव पतिवशकारिणी! 'हे यंत्र युननेवाली स्त्रियां ! सौ वर्ष जौने. तुम पतिगृहको स्वामिनो हो रही हो। इस तरह मन्त्र वाली इस कनाके रिपे सदा बन जुटामा और आशी द्वारा कन्याका उपस्थदेश टावित करना होता है । यदि देना जिससे इसकी आयु बढे, हे आर्शने! उपEUEBापनका और एक मन्त्र यह है:-, . तुम नेम्यिनी हो कर जीमो और सव पेश्यों का "- अग्नि यादमहायवन गुहाणाः स्यामरस्थमृपयः।। भोग करे।।" पुराणास्तेनाज्यमकृष्णचन स्य शृत त्वष्ट' संयनद्दाधातु स्वाहा विवाहपद्धतिमें इस समय इस मतका उल्लेख ___ अर्थात् "गिरिगुहायामी प्राचीन पोंने नोनातिका आनन्देन्द्रिय को आममांसमक्षा अग्नि कहा था और गयोपस्थापन। विश्वकर्मा देवताको हलासे उसके संयोगसे पुस्पेन्द्रियसे। प्राचीन समयमें हिंदुओं के विवाहमें गोपमापन प्रादुर्भूत शुक्र (पी) को होमीर घृत कहा था नामकी और एक प्रथा थी अर्थात् विवाह ममय एक कन्यं ! वह घुन तुम्हारी उपस्थाग्निमें पति द्वारा संस्था गो यांधी जाती थी। यह प्रथा इस समय का काम पित हो।" दिखाई नहीं देती; किंतु विवाहपनिमे इसका मन ___ यह सहज ही समझ में आता है, कि इस घटनाका | है, बदमन इस समय भी पढ़ा जाता है, इसका निर्णय उद्देश्य पवित्र और महान् था। यद्यरि विवाह पद्धतिमें करना कठिन है, कि किस समय यह प्रथा मारम्भ हुई इसका विधान है, फिर भी देशमें इसके अनुमार कार्य और कब यह प्रथा विदा हो गई। यह भी मालूम नहीं होता दिखाई नहीं देता। हो सकता है, कि इस विशाल | होता, कि प्रथा न रहने पर भोमन इस समय क्यों भारतमें कहीं पर यह प्रथा प्रचलित हो । विवाह के दिन | उसमें अनर्धाक भरा पड़ा है। दूसरे पहरमें कनाको तेल ती दिसे स्नान करानेकी सामवेदीय विवाह पद्धतिके प्ररम्ममें हो लिखा प्रधा इस सायं भी देखी जाती है। जाति भी। है-"कृतस्नानः कृतद्धिधाद्धः सम्प्रदाता शुमलग्न स्नानकी पूरीध्यवस्था है, किंतु जातिमी यह मत ह स देशके पड़े घरानेको त्रियां पहले त कात कर वन मयी प्रक्रिया इस समय इस देश में कहीं भी दिखाई नहीं चुनती थीं, इस मन्त्रसे इसका स्पष्ट प्रमाण मिलता है। यन - बुनना उस समय केवल जोलाहेको हो काम न था। . voi, xxI, ias . . देती।