पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/६८७

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विशालिक-विशिशासियु ५६६ छन्दः देवता विशालाक्षी, वोज ओ शक्ति हों, यह धर्म, दत्त-टच (पा ५३९४) । विशालदस नामक अनुकम्पा. अर्थ, काम और मोक्ष चारों बगके लामफे लिये प्रयुक्त ! युक्त कोई व्यक्ति , इस अर्थमें विशालिय और विशा- नाता है। लिन पद होने हैं। . ध्यान इस तरह- विशाली (सं० स्त्री० ) १ अजमोदा । (राजनि०) २ पलाशी -: "ध्यायेहवीं विशालाक्षी ततजाम्बूनदप्रमाम् । | लता। दिमजाम्बिका चएडी सदगखेटकधारिणीम्॥ | बिशालीय (सं० वि०) विशालसम्बन्धोय । नानानं कारसुभगा रक्ताम्बरधर शुभाम् । विशिका (सं० स्त्री० ) वालू, रेत । सदा योदशवर्षीयां मसलास्यां त्रिलोचनाम् ।। विशिक्ष (० त्रि०) वि-शिक्ष-कु । विशेष प्रकारसे मुपदमामावलीग्म्यां . पोनोमतपयोघराम्। | शिक्षादाता या साधनकर्ता। (ऋक् २।१२१. सायण ) रायोपरि महादेवी जटामुकुटमपिताम् ॥ । विशिख (सं० पु.) विशिष्ट शिखा यस्य । १शरतृण, शत्र क्षयरी देवी साधाभोष्टदायिकाम। रामसर या भद्रमुज नामको घास । (राजनि० ) २ वाण । सर्वसौभाग्यजननी महासम्पत्पदा स्मरेत् ॥" ३ तोमर, भालेकी तरदका एक हथियार । ( मेदिनी ) ऐसा ही देवीका ध्यान, मध्यस्थापन और पीठ- | ४ मातुरागार यह स्थान जिसमें रोगी रहती हो। देवता आदिको पूजा कर फिर ध्यानपूर्वक यथाशक्ति ५ चरम्नाका सका। (नि.) विगता शिखा यस्य । उपचार द्वारा पूजा करे । सामाग्य पूजापतिफे निपमा शिखारहित, विच्छिन्नकेश, मुण्डितफेश। धर्मशास्त्रके नुसार पूजा की जाती है। इस देयोको मन्त्रसिद्धि मतसे शिखाशून्य हो कर कोई धर्मकर्म करना निषिद्ध है। करने के लिये पुरश्चरण करना होता है। उक्त मन्त्रका विशिवपुवा (सं० स्रो०) शरपुता। आठ लाख जप करनेसे पुरश्चरण होता है। विशिखा (स. स्त्री०) १ खनित्री, संता। २ रघ्या, · विशालाक्षी देवीका यन्त्र-पहले विकोण और | रोंका समूह । (माघ ११३१५) ३ नालिका । ४ अपत्यः उसके पाहा, अदलपन, वृत्त, नौकोर और चतुर मार्ग। '५ कर्ममार्ग। ६ नापितकी स्त्री, नाइन । अङ्कन कर यन्त्र निर्माण करे। इसी यन्त्रमें सर्प- विशिप ( स० क्ली०') विशान्तयति 4 (विटपपिष्टप सौभाग्यदानी यिशालमुखी विशालाक्षीदेवीको यथा- | विशियोक्षपा। उष्ण ३१४५ ) इति कप्रत्ययेन निपातनात् विधान आवाइन कर पूजा करे। विकोणमैं महादेवीको साधुः । मन्दिर। अर्चना कर ब्राह्मो प्रभृति अष्टमातृकाकी पूजा करनी • होगी। पीछे 'ओं पद्मजाक्ष्यै नमः, मो विरूपाक्ष्यै नमः, ओं विशिप्रिय (स' त्रि०) शिमयो, हन्योनासिकायोर्वा कर्म। पक्राक्ष्यै नमः, ओं सुलोचनायै नमः, मो एकनेत्राय नमा, | विशिम म्णिाय । जिसमें इनू या मासिकाको क्रिया नहीं है, औं द्विनेवायो नमा, ओंकोटराक्ष्यै नमः, ओ निलोचनाय । दनू वा नासिकाचालन क्रियाविहीन कर्म। मामा', इन सब देवताओं की पूजा पन्नाप्रमें पश्चिमादिक्रम (शुक्लपमु० ६।४ महीधर ) से अष्टसिद्धिमपिणो अष्टयोगिनीकी पूजा करे। चौकोनमें विगिरस् ( स० नि० ) १ मस्तकहान, विना सिरका । न्द्रादि लोकपालको अर्चना कर उसके बाहर अन २ चूडाविहीन, विना नोटोका । ३ मूर्ख, विद्याधुद्धि- आदिकी पूजा करनी चाहिये। इसके बाद यथाशक्ति मूल | शून्य शून्य । मन्तका जप कर विसर्जनान्तका कर्म करे। विशिरस्क (सं०नि०) विगतं शिरो यस्य समासे कप। .४ चतुःषष्टि योगिनीके अन्तर्गत योगिनीविशेष । । | शिरोहीन, बिना सिरका। (पु०) २ मेरुके पास एक दुर्गापूजाके समय इनकी पूजा करनी होती है। पवतका नाम । (खिनपु० ४६४६ ). .. (दुर्गोत्सवपदति । विशिशासिषु (स० वि०) हननोधत, मारनेको तैयार । पिशालिक (सं० पु०) अनुकम्पितो विशालदत्ता विशाल..... ... ... . .. .. ऐवरेयनाः ॥११ माश्य):