पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/६९७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

विश्रापान-विश्लिष्ट ६११ जाठराग्निरूपमें प्रसिद्ध अगस्त्य । ये पुलस्त्य-पनी बड़ा प्राम। यह पहले पट्टन नामसे परिचित था । १६७६ हविर्भू के गर्भ में उत्पन्न हुए थे। ई०में मुगलसेगासे खदेड़े जा कर शिवाजीने यहां • महाजकी कन्या विड़ाके गर्भ और विथवाके निरापदसे विधाम किया था, इसी कारण उन्होंने इस औरससे धनपति 'कुवेरका जन्म हुमा था। महाभारतमें | स्थानका नाम विश्रामगढ़ रखा। लिखा है, कि विश्रया प्रजापति पुलस्त्यफे साक्षात् अङ्गि- विश्रामज-अनुपानमञ्जरी नामक वैद्यकप्रन्धके रचयिता । स्वरूप ये। कुवेरफे प्रति ब्रह्माकी चाटु उक्ति पर कुन हो विश्रामशुक्ल-जनिपद्धतिदर्पणके प्रणेता। इनके पिता पुलस्त्यने अपने अर्धाङ्गसे विभ्रषाको सृष्टि को । कुवेरने | शिवरामने कृत्यचिन्तामणि नामक एक स्मृतिग्रन्धकी उन्हें प्रसन्न करनेके लिये तोग राक्षमो दासी प्रदान को ! रचना की थी। यो। इन तीनों में पुष्पोत्कटाके गर्भसे रावण और विश्रामात्मज-प्रश्नविनाद नामक ज्योतिर्मन्यके रच- कुम्भकर्ण, मालिनीके गर्भसे विभीषण तथा राकाके गर्भसे यिता। खर और सूर्पणखाको उत्पत्ति हुई। किन्तु रामायणके | विधाम्यतापनिषद्-उपनिषद्मेद । यह वेदान्तसार-विधा. मतसं विधवाफे गौरस और सुमालिकन्या निकषा वा मोपनिषद् नामसे भी परिचित है। कैकेसीके गर्भसे रावण, कुम्भकर्ण, विभीषण और सूर्पनखाको उत्पत्ति हुई। विष्णुपुराणके मतसे रापणकी | विधाव (स' पु०) विध्रु घम् (पा ॥३॥२५) १ अति- प्रसिद्धि, शोहरत । २ ध्वनि । ३ क्षरण, बहना या माताका नाम केशिनो था। पंधाणन ,( स० ला०) वि-श्रण-णिच् ल्युट । • दान, रसना। ४ स्रोत, झरना। वितरण । विधि ( स० सी० ) मृत्यु, मौत । ( संक्षिसमार उपा) पाणित (स० वि०) दस्त, वितरण किया हुआ। यिश्री (स लि०) विगता श्रीयस्य । १ धीहोन, शोगा. धाणित ( स० वि०) वच, जो दान किया हुमा हो। । होन | २ कुत्सित, महा। धान्त (स. त्रि०) १ श्रान्तियुक्त, पकामांदा विगत- विश्रृत (सं० लि.) विथ क। १ विरुपात, मशहर । भ्रम, जो थकावट उतार चुका हो । ३: अनियत (भमर) २ज्ञात, जो जाना या सुना हुआ हो । ३ संदृष्ट, ४ घिरत, क्षान्त। जो अति प्रसन्न हुआ हो। ४ मित, शम्द किया शान्ति ( स० स्रो०) १ विधाम, माराम। २धमाप• हुआ। नयन, आराम करना। २ तीर्थविशेष। यहां निाखल | विश्रृतदेय (सपु०) राजयुतमेद। (तारनाथ ). जगत्पति स्वयं पासुदेव आ कर विश्राम करते हैं, इस विश्र नषत् ( स० वि०) विथ क्तयतु । १ विश्रत, कारण यह तीर्थ विध म्ति नामसे प्रसिद्ध है। हातयान् । ( अग्य ) विधूत इस विध त चतु यार्थे । घधान्ति वर्गन्-एक प्राचीन कपि । | २ विश्रतकी तरह, प्रसिद्धको नाई। (पु.)३ राजपुत्र. वश्राम (स पु०) यि श्रम घ । १ अधिक समय भेद, दलका भाई। (हरिया) तक कोई काम या परिश्रम करनेके कारण थक जाने पर घिथ तात्मा (स .) विष्णु। (महाभारत ११४६३५) रुस्ना या ठहरना, पकायट दूर करना । गुण-परिश्रमके विश्रुति ( स० स्त्री०) विन तिन् । १ विषयति, दाद विश्राम करनेसे थकावट दूर होतो. मोर पसीना शोहरत । २क्षरण, बहना या रसना । ३ स्रोत, भरना। जाता रहता है। नियमित, परिधमके वाद यथासमय, ४ नाना प्रकारका स्तव। . . . . जो विधाम किया जाता है, यह सभी लोगोंके लिपे बल. विश्लथ (स.नि.)शिथिल, थका हुआ। . वृद्धिकर, स्वास्थ्यप्रद और शुभजनक है।- ( राजस्लम) (रघुश६७३) २ ठहरनेका स्थान । ३ माराम,चैन, सुन्न। विश्लिष्ट (सं० वि०) वि-श्लिप क्ता विच्छिन्न, जो अलग वेश्रामगढ़-- दाक्षिणात्यके महमदनगर जिलान्तर्गत परू हो गया हो। २ विकसित, खिला हुया। ३ प्रकाशित