पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/७९०

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। विष्णु पूर्वाधृत ऋक का भाव निम्नलिखित ऋकोंमे भी। भाष्यमें विष्णुके त्रिविक्रम अवतारको माहात्म्यविषयक पुनरुक्त हुआ है। , यथा- कथाका उल्लेख किया है। विष्णुका गरम माहात्म्य ___ "सखे विष्णो वितरं विक्रमम्व द्यौ हिलोकं बजाय | भो इस ऋक में गया है। . विष्को तनावत' रिणवाघ सिंधून इन्द्रम्य यंतु : द्वितीय . क में लिखा है, कि विष्णुको महिमाका प्रसवे विगृष्ठः ।" अन्त नहीं है। इनकी महिमा अनन्त है। विष्णुका यहां भो इन्द्रने विष्णुको सम्बा कह कर सम्बोधन माहात्म्य सयो को विदित होना असम्भव है। भगवान्ने किया है तथा वृत्रासुरको यध करनेके लिये विष्णुको धुलोकको ऊपर उठाये रखा है। विष्णु की शक्तिसे ही सहायता ली है। भगवान् जो इन्द्रादिके भी मपूज्य । घलोक ऊपरसे नहीं गिर सकता। पृथिय्यादि भी बन्धु है, इन सब ऋोंमें हम उमका प्रमाण पाते हैं। भगवान् कत्तक विधृत है। इसके द्वारा भगवान् इससे हमें यह भी मालूम होता है, कि भगवान् इन्द्रके। शक्तिके बहुल कार्यकारित्व सम्बन्धमें एक माभाम. मखा हैं। ऋग्वेदमें इन्द्र और विष्णुका स्तय गनेक पाया जा सकता है। स्थलों में ही एकत्र निवद्ध हुथा है। । कोई कोई समझते हैं, कि भगवान सूर्य के ही.दूसरे __ भगवान् जो सभी जीवोंके सुखसमृद्धि देने में सय नामसे ऋग्वेदमें परिचित है। यह वात मयौक्तिक मोर देवतामोसे अधिक शक्तिशाली हैं, ६ष्ठ मण्डलके ४८ अप्रामाणिक है। भगवान के अनेक काय सूर्य के सदृश सूक्तको १४वी ऋक में हम उसका प्रमाण पाते हैं । हैं। किन्तु वे स्वयं सूर्य नहीं हैं, पर. हा सूर्यमें' यथा- अनुप्रविष्ट अवश्य रहे है। भगवान्फे ध्यान में भी उन्हें हे पूपन् ! मैं तुम्हारा स्तव करता हूं,तुम इन्द्रको तरह: "सावित्रीमण्डलमध्यवत्ती" कहा गया है। सूर्य उन्हो की दयालु हो, यरुणकी तरह अद्भुत शक्तिशाली हो, अर्थमा. ' शक्तिसे शक्तिमान हैं, इसका भी यथेट प्रमाण मिलता । की तरह ज्ञानी हो तथा भगवान की तरह सब प्रकारको । है। उद्ध त ७ मण्डलफे १६ सूक्तको चौथी ऋक पढ़ने. भोगसम्पत्तिके दाता हो । इत्यादि । । से मालूम होता है, कि "इन्द्र और भगवान् इन्होंने ऋग्वेदके पष्ठमण्डलके ५० सूक्तको १२वी' ऋक में सूर्य, अग्नि और ऊषाको उत्पादन . कर यजमानके रुद्र सरस्वती मादि देवताओं के साथ भगवान्फे समाप लिपे विस्तीर्ण लोक निर्माण कर रखा है।" .। प्रार्थनासूचक स्तव है। यथा- उद्ध त पञ्चम ऋक में इन्द्र और भगवान ने मिल कर "ते नो रुद्रः सरस्वतो सजोषा मिड इष्मत्तो विष्णुअसुरका संहार किया है, इसका उदाहरण दिया गया मुंडन्तु वायुः। रिभुक्षा वाजो दैथ्यो विधाता पर्जन्या है। भगवान द्वारा शम्वर आदिकी पुरो-विनाशका याता पिप्यतामिपां नः।" . . . . विवरण ऋग्वेदमे सूत्राकारमें वर्णित है। पुराणमें इसका ___ अर्थात् रुद्र सरस्वती भगवान् और वायु ये सभी विशेष विवरण देखने में आता है । घर्चि नामक असुरको सुखदाता है। पे हम लोगों पर कृपा दरसाये। रिभुक्षा दलवल के साथ सहार करनेका विवरण भी इस सूक्तमें वाज, पर्जन्य और वात हम लोगों की शक्ति बढ़ावें।। दिखाई देता है।. . सप्तम मण्डल के ३५ सूक्तको ध्वी ऋक्में, ३६ सूक्तको _____ अधिकांश स्थलो' "उरगाय" शब्द भगवान्के । नमें, ३६ सूतकी ५ ऋक्मे, ४० सूक्तको ५ कमें, विशेषणरूपमें व्यवहत हुमा है। श्रीमद्भागवनपुराणमें ' ४४ सूक्तको १ ऋकमें तथा ६३ सूक्तको ८वी ऋफमे | भी इस शब्दका बहुल प्रचार दिखाई देता है। उरगाय , अन्यान्य देवताओं के साथ विष्णुका उल्लेख है। शब्दका अर्थ है बहुजन द्वारा गीयमान । विष्णु जो . सप्तममण्डलके १६ सूक्तको प्रथमस सात ऋकोम | धैदिक देवताओं में प्रधानतम देवता तथा सूर्य मादिके. विष्णुका यथेट माहात्म्य कीर्तित हुआ है। . . उत्पादक हैं, यह भी ऋग्वेदमें लिखा है। श्रीभागवतम . इस सूक्तको प्रथम फकी व्याध्यामे सायणन अपने जो श्रवण, कोत्तन, स्मरण, पादसेवन, गर्जन, गग