पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/७९९

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विष्णुधमाचर-विष्णुपदीचक्र अव नदी प्रथविशेष । इस प्रन्ध विष्णविषयक धर्मों का उपदेश लोकमें गति होती है। ५ कैलासपर्गतका स्थान दिया गया है। . २ विष्णुको उपासनाके योग्य धर्म, वह ' विशेष। (मारत ॥११११२) ६ पतविशेष । ( हरि- धर्म जिसके अवलम्यन पर विष्णुकी उपासना करनी होतो वंश ३११४३) ७ विष्णुका स्थान । (विष्णूपुराण श८ म०) है। ३ वैष्णयधर्म । ४ विद्याविशेष । यथाविधान ८८ मध्य । मासनमृत्यु थ्यक्ति यह स्थान देख नहीं इस विधाको उपासना करनेसे इन्द्रत्य लाभ होता है। साता! (काशीख० ४२११३-१४) गरुडपुराण २०१ भ०) विष्णका पद । भारतके जिन सब स्थानोम पद विटामोत्तर ( स० की. ) पुराणसंहिताविशेष । इस ' विद्व विद्यमान है, ये सब स्थान एक एक तीर्थक्षेत्रम संहिताके प्रश्नकर्ता जनमेजयके पुत्र तथा वक्ता शौन- न गिने जाते है। गयाक्षेत्रमें विष्णुपद विराजित देखा कादि पिथे। इसमें प्रायः एक सौ वृत्तान्त वर्णित जाता है । वृहन्नीलतन्त्रमें मो एक विष्णुपदका उल्लेख हैं। यह विष्णुपुराणका पकांश है। कोई कोई इसे है। इसके समीप गुप्ताळिती है । एक उपपुराण मानते हैं। वल्लालसेनने स्वकृत दान- (बृहनील २१.२२ प.) सागरम तथा हलायुध ब्राह्मणसर्वस्वमें इस प्रन्यका विष्णुपदी । सं० स्त्री) विष्णोः पदं स्थानं यस्याः उल्लेख किया है। विष्णुधारा (स खi० ) १.तीभेद । २ हिमवत्पाद गौरादित्वात् ङोप् । १ गङ्गा। गङ्गा विष्णुपदसे से निकली हुई एक नदी । (हिम० ख० ३।२६) निकली है, इस कारण इस विष्णुपदी कहते हैं । २ विष्णनदो (स' स्रो०) १ नदीमंद। विरणपादो-! संक्रान्तिविशेष । वृप, वृश्चिक, कुम्भ और सिंहराशिम । सूर्यसंक्रमण होनेसे उसे विष्णुपदी संक्रान्ति कहते है। । अर्थात् जिस जिस संक्रान्तिमें सूर्य मेपराशिसे यूपमें, विष्णनन्दी-एक ब्राह्मण ! • गुप्तसम्राट महाराज सर्गः । कर्फरसे सिंहमें, तुलासे वृश्चिक तथा मकरसे कुम्भ- नाथने इन्हें भूमि दो थो। राशिमें जाते है, उन्हें विष्णुपदी सक्रान्ति कहते हैं। विष्णुपबर ( स० पु० ) पुराणानुसार विष्णुका' एक अतएव वैशाखके बाद ज्येष्टमासके भारम्भमें तथा कवच। कहते है, कि यह कवच धारण करनेसे सव। श्रावणके बाद भाद्र, कार्तिकके बाद अग्रहायण और प्रकारके भय दूर हो जाते हैं। विष्णुपण्डित- गणितसारके रचयिता, दिवाकरके पील । माधके मन्तमें तथा फाल्गुन मासके प्रारम्भमे जो और गोवद्ध नर्फ पुन । इनके बड़े भाई गङ्गाधरने संक्रांति होती , यह विष्णुपदीस क्रान्ति कहलाती है। . १४२०१०में लोलापतोटोका लिखी। २ तात्पर्यदीपिका : । यह विष्णुपदी संक्रान्ति अतिशय पुण्यतमा है। इसमें नामक अनर्थराघवटीका प्रणेता। ये शिशपालवध- पुण्यतिथिको स्नानदानादि करनेसे लाल गुण फल होता है। (तिमितत्त्व ) टीकाके प्रणेता चन्द्रशेखरके पिता और रङ्गभट्टके पुत्र थे। ३ गोलप्रवरदीपक प्रणेता। विष्णपदोचक । संक्लो०) विष्णपद्याः संफ्रान्त्याः च ! विष्णपति-तत्वचिन्तामणि शम्दखएडदीपनके रचयिता।। ज्येष्ठ, अप्रहायण, भाद्र और फाल्गुन मासको संक्रान्ति इनके पिताका नाम रामपति था। में . शुभाशुभशापक चक्र। कालपुरुषके अमें समी विष्णुपत्नो (स० स्रो० ) १ विष्एको पत्नी, लक्ष्मी । नक्षत्रोंको विन्यास कर यह चक निरूपण करना होता २ अदिति । (शुक्लयजुः २३०६०) है। इस विष्णुपदीसंक्रान्निमें जिस नक्षत्रको सूर्य संक. विष्णुपद ( स. क्ली० ) विष्णोः पद। १ माकाश । मण होता है. यह नक्षत्र मुखमे तथा उससे दक्षिणवा में ..(अमर )२ क्षीरसमुद्र । : ( मेदिनी) ३ पद्म, कमल।, चार, दोनों पैरमें तीन तीन, वामया में चार, हृदय में पांच - ( हेम) ४ तो विशेष। इस तीर्यमें स्नान कर यामन- , दोनों चामे दो दो मानक पर दो तक मुझमें एक, • देवको पूजा करने से सभी पाप दूर होते हैं तथा विष्णु- । इस प्रकार सभी नानोको विन्याम "...