पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/८४१

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शेषोक इन नामोंसे न्यूटन की दो संहा साधारण पाठ; रोयानो हेमिल्टनने उसके साथ कुछ अंश जोड़ कर बीज- .को मनमें सरल मालूम होगो, ऐसी माशा है। । गणितका उत्कर्ष साधन किया है। इस अशको हैमि. पाटोगणितसे किस तरह योजगणित का सूत्रपात ! ल्टनने "चतुष्क" नामसे अभिहित किया है। इस माधि- भोर इसका कर्मावकाश हुआ, उसका संक्षेप रूपसे वर्णन यियाको प्रतिष्ठा होनेसे किसी भी नियमसे अङ्कका करमा सहज बात नहीं। पाटोगणित और योजगणितको व्यवहार निष्पन्न किया जा सकता है। गणितशास्त्र के प्रक्रिपाके वोचमें स्थलतः जो पाक्य दिनाई देता है, बहुत पुराने इम स्वतः सिद्धारतका विलेप हुआ है। . यह यह है कि पाटीगणितको प्रक्रियाये साक्षात् भावसे इतिहास। ध्यायपात होतो हैं . किन्तु गीजगणितको प्रक्रियाए पहले समयको ज्यामितिको पढ़नेसे विश्वास होता भनेक बार केवल तुलना द्वारा ध्यानात होतो है। उदा., कि यह प्राचीन गड्ढषिद् पण्डितोके परिक्षात अड. हरणम्वरूप भग्नांश गुणनका विषय हो लिया जाये। शास्त्रसे सारांश और विशुद्ध ज्यामितिके ही अनुरूप है। इटलोके लुकस दी धागों पोर इग्लै एडफे रापर्ट रेकोई प्रत्युत, यर्शमान समय में प्रचलित घीजगणितफे साथ गादि पण्डितोंने भग्नाशके गुमणको साधारण गुणनफे इसका बहुत पायव्य दिखाई देता है। मभिनव प्रयोगका सिद्धान्त किया है। साधारण गुणन पूर्णकालके ज्यामिति-शास्त्रकारोंने घीजगणितके जैसे योगका मदन उपाय है. दुटिमात्र ही इसको पैसा सारांशसे तस्यादि प्रदणपूर्वक अपने आविष्कारका समझ नहीं सकती। गुणनको धारणा कर उसके पुष्टिसाधन किया है, इस विषयमें चिन्ता करनेका कोई माय मानांशको मशाफे सयोग करने से दो भग्नांश । कारण नहीं। किन्तु फिश्चित् परबत्ती ममयके ग्राम- गुणमको ध्याख्या हो जायेगी। दूमरी और नीयो पानिपोने इस विद्या जो निश्चित् व्युत्पत्तिलाम किया मतादी. प्रसिद्ध पाश्चात्य पण्डित देशोफान्तसने था, यह इतिहामको पोलोचना करने मे सहा हो हृदय वियोगनिह प्ययहारके मूल में चीजगणितकी मित्ति' इम होता है। देनी थी। इन्दोंने अपने लिखे एक अन्य प्रारम्भो ही चौथी सदीके मध्यमाग गविधाफी खूब अवनति वियोगचिहको यह विशेष सशा लिपिबद्ध की है, वियोग हुई थी । इस समयके गविदोंने किमी तरह मौलिक विहसम्यलित राशिको वियोगसम्बलित राशि द्वारा लिखने का प्रयास न पा पूर्ववत्ती लेखकों के लिखे 'गुणा करनेसे गुणनफल योगविहयिशिष्ट होगा। प्रयोंके भाष्य-प्रणयनमें ध्यान दिया था। इससे पूर्व . मूल चिहकी तरह इस चिहके भयाध व्यवहारकी कोई | समयके मङ्कशास्त्रका खूब उत्कर्ष साधित हुआ। मौलिक क्रिया प्रणाली नहीं है। यह पाटीगणितकी प्रसिद्ध पण्डित दिगोफन्तासने गणितशास्त्र के सम्ब. नियमप्रणाली के अनुसार गठित होने पर इसका व्यवहार में कई प्रन्योंकी रचना की। उनका मूल प्राय तेरह निश्चय ही प्रेमांकुल हो जायेगा। गणितशास्त्रकी भागों में विभक्त हुआ था। इनमें पहले छ: भाग और वह मौलिक नियमायलोफे साथ उक नियमके अयाध प्रपोग | भन्नविशिष्ट अङ्कके सम्बन्धमें असम्पूर्ण अन्तिम प्रन्थ 'द्वारा योजगणितको सीमा संक्षेप की गई है। विण्यात इम समय मिलता है। शेपोक्त अन्ध हो १३वां स्थानीय . गणितविद् युलिस भी सब इस सीमासे दूर बढ़ जाना | का कर गृहीत हुआ है। सम्भव पर नहीं समझ। ___ उल्लिखित अन्य पोजगणितविषयक सम्पूर्ण प्रय व्यवहार प्रणालीके किसी विधियद नियमके अभाव नहीं मालूम होता। किन्तु इससे ही इस शास्त्रके में गणितशास्त्रके नियमके पार्शमें विपेग चिह सस्था मूलविषय सम्बन्ध प्रकृष्ट ज्ञानलाम किया जा सकता है। 'पन करनेसे इसका फल नियमविरुद्ध हो जाता था। प्रधकारने पहले तो अपनी प्रणालीके अनुसार साधारण यह वात हमारो कपोलकल्पित नहीं। पचास वर्ष | और विषयफर्मका या वर्गीय समीकरणका (यथा-ऐसो '. पहले के वीजगणितम * । था, इस समय सर विलियम | दो राशियां निकाल लो, जिनका योगफल या वियोगफल