पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/८४३

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वीजगणित ७३७ इस समय यह नहीं मिलना । सौमाग्यका विषय अरबवासी अत्यन्त भाप्रहके माध और कठोर परित है, कि परवी भाषामें लिया इसका एकमूल प्राध मापन | धममे बहुत दिनों तक इस विद्याका अनुशीलन करते फोर्ड के पलियान पुस्तकालयों रखा है। इस प्रम्प रहे, पर उनके हाथ इस विद्याको उतनी उन्नति नहीं हो मनाकाल १३४२३०क लगमग हो सकता है । प्रशET सकी। दिमोफन्तास यादि पढ़ कर वे अपने प्रथम Nोवरण पृष्ठ देमनेसे मालूम होता है, कि प्रग्यकार प्राचीन चीजगणित मम्बधीय अनेक अभिनय विषय सन्निवेशित -समयके भादमी है। पुस्तक पार्श्वदेश लिली । कर रहे होंगे, ऐसो माशा है। किन्तु यह आशा कार्या. रिपनीको देखनेसे अन्य अपेक्षाकृत प्राचीन माचिन मा परिणत नहीं हुई। भरयदेशीय पूर्वतन योजगणिन होता है। इस प्रम्पको देखनेसे मालूमदोता है, वोजगणित विदोंमे आरम्भ कर अन्तिम ग्रंथकार घेहीदोन तक पूर्व शास्त्रका यही प्रथम प्राचीन समय प्रग्यको भूमिका ! पद्धति के अनुसार (लकीरके फकोर ) एक ही प्रणाली अन्धकारका परिचय लिप्ता है । फिर इससे यह भी जाना पर प्रश लिम्व गये हैं। पूर्ववर्ती लेखकोंके अनुसरण- जाता है, कि सलमामुन द्वारा घीजगणितानुमार अङ्क को छोड़ मौलिक कोई विषय इन्होने सन्निवेशित नहीं गणनाके सामन्धमे एक संक्षिन अन्य लिखनेके लिये किया है। बेहौदोन सन् १५३-२०३५के मध्य गादिप मोर उत्साहित किये गये थे। इसीके फलस्वरूप जोयिन था। इन्होंने पद अन्य बनाया था। पाश्चात्य पण्डितोंका इस विषयों अनेक अङ्कतत्त्वविहांकी भ्रम-धारणा विश्वास है कि भूमाप्रमोन यह अन्य योजगणितके है, कि किम समय गौर किस रोतिसे यूरोपई योज- माशधर्म भरवासिपका प्रथम सङ्कलन है। सुतरां गणित शास्त्रका प्रचलन हुआ। इसका उपादान भी किसी अन्य भाषामें लिखित लियोनार्दो द्वारा यूरोपमें वीजगणितका प्रचलन । पुस्तकादिस संगृहीत हुआ है। यह बात सहज ही उप हालमें बहुत खोज पूछने के बाद यह स्थिर किया लम्ब की जाती है। इस प्रन्धमे इसका भी यथे। गया है, कि पिसावासी लियोनार्डो नामक एक वणिकने प्रमाण मिलता है, कि ये अन्धकार हिदू'ज्योतिषशास्त्र सबसे पहले इटलीमे वोजगणित-विज्ञानका प्रचार किया। मोशाता थे। सुनरां यह कहना युक्तिमगत न होगा, युद्धिमान् लिमोनार्डो पालकपन में वारवारी राज्यमें 'घाम किये हिन्दुओं से ही पीजगणितका उपादान संग्रह कर करते थे। यहां रह कर उन्होंने भारतीय प्रणालीके ले गये थे। योजगणित शास्त्र में अनिर्दिष्ट सम्पायसमा अनुसार नी संख्या द्वारा गणनाप्रणाली शिक्षालाम धान में हिन्दुमोका अशेष पाण्डित्य था । यह विषय किया । पाणिज्यफे उद्देशमें उनको प्रायशः हो मित्र, .मारतोय वीजगणितफे सम्बध नीचे विवृत हुआ है। सिरिया, यूनान, सिसली प्रदेशमे आना जाना पड़ता ससे Rम निसहोचमायस कह सकते हैं. कि अरयोंने | था। मालूम होता है, कि इन सब स्थानों में उन्होंने भारतीसे बीजगणितको शिक्षा पाई थी। सपासम्बन्धी शिक्षणीय विषयोंको आयत्त किया था। वोजगणितके मूलतत्वका परिचय पा कर भरवाने भारतीय गणना-प्रणाली हो उनको सर्वोत्कृष्ट होनेके अन्तम अनेक प्रथादि लिख इस शास्त्राको अंगपुष्टि कारण उन्होंने यत्नके साथ उसे सीखा था। इसी को थी। महम्मद अयुल भोमाफा नामक दुसरे एक समय उन्होंने भारतीय गणना-प्रणालीके साथ युक्लियको "रको परिउतने घीजगणितशास्त्रका एक विस्तृत भाष्य | ज्यामिति के मूलसूनफे कुछ कुछ अङ्कतत्त्व ,संयोजन प्रणयन किया था। उसमें उसने अपने पूर्ववत्ती योज कर और उनके साथ अपनी प्रतिभाके पलसे वीजगणित. गणितके लेसकोंके मतामनका विचार कर.विशद प्याख्या सम्बन्धीय और भी कई अभिनयतत्त्व आविष्कार कर को है। सिवा इसके दियोफन्तासफत प्रथका भी उसने उक्त तीनों मोंके आधार पर,एक प्रन्धकी रचना की । अनुवाद किया था। वह अवर घोआफा यो शता.. इस समय लोग बीजगणितको शाखाविशेष समझते थे। नोके अन्तिम चालीस वर्षों में विद्यमान था। यथार्थ में यह गणितका सारांश है। इसी शेष धारणाके Vol. XxI 185