पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/८५९

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योजयर-घीजसञ्चय ७५१ • यहां हो अपने याधुवान्धयों के साथ भोजनादि करना । मजयः संग्रहः सम् चि-अच। वपनयोग्य धान्यादिवीज उचित है। मन्न यह है-- का संग्रह, धानका बोमा रखना। . "त्वं गुन्धरे सोते पहुपुष्पफमाद। गोजयपनकी तरह धान मादिका वोआ भी शुभ नमस्ते मे शुभ नित्यं कृषि मेधा शुभे कुरु ॥ दिन और क्षण देख कर करना होता है। इस्ता, चित्रा, रोन्तु सर्वशस्पानि काले दवः प्रवर्णतु। पुनयंसु, स्वाती, रेवती, श्रयणा भोर धनिष्ठा, इन मब कर्षकास्त भवन्त्वना धान्येन च घनेन च साहा॥" नक्षत्रों में; मेप, कर्फट, तुला और मकर लग्नमें ; बुध, वृह- (दीपिका) . स्पति भौर शुक्रवारमें; माघ अथवा फाल्गुन मासमें सभी ज्योतिस्तस्यमें लिखा है-होशाख महोने ही योज ' प्रकारका वीज संग्रह कर रखना फत्तव्य है। पपन करना सर्व पेशा उत्तम है। ज्येष्ठमासमे जिस . वोजसंग्रहका नियम-धान आदिके पकने परशुभ ममय सूर्य रोहिणी नक्षत्र में मरस्यान करते हैं, उस दिन क्षण देव उन्हें काटे और तुरत पोट कर तय्यार समय घोज यपन मध्यम है। इसके सिवा अन्य महीने : करे। इसके बाद धूपमें सुखा कर उसे किसी ऐसे में पोजयपन करना अधम है। किंतु श्रावण महीनेमें उथ स्थान पर रखे जिससे भूमिकी माताका सब न धोमयपन करनेसे अशुम ही होता है। नक्षत्रों में पूर्ण । हो। क्योंकि वह योज यदि किसी कारणवगतः भाद्रपद, मूला, रोहिणी, उत्तरफल्गुनो, विशाखा और माताको प्राप्त हो जाय, तो उसमें ऐसी गरमी घुस जाता प्रतमिपा आदि ये कई नक्षत्र योजवपनके लिये उत्तम है, कि भोतरके अंकुर विलकुल नष्ट हो जाते हैं। शान- __ में भी इसका माभास मिलता है- स्थानभेदसे चीजवपन आदिका निषेध हल्दो "दीपाग्निना च संस्पृष्ट पृष्ट गा चोपहतञ्च यत् । __ और नीलका वीज घामें योनेसे गृहीको धनपुतते हाथ वर्जनीय तथा वीज यत् स्यात् कोटसमन्वित ।" धोना पड़ता है। किन्नु जब यह स्वयं उत्पन्न हो, प्रदीप्ताग्नि सस्पृष्ट अर्थात् गृहदाहादिकं समय या - तो उसके प्रतिपालनमें किसी तरहका दोष नहीं होता। किसी दूसरे कारणसे दग्ध तुल्य, पृष्टिस उपहत या नष्ट यदि मोहयश मरौंका घीज गृह उपवनमें रोपण किया ' अर्थात् सड़ा हुआ तथा कीड़े का साया हुआ वीज वज. जाये, तो लोगोंको शत से परामव, और यायतीय साधन । नोय है। और धनशय होता है। नील, पलाश, इमली, श्वेत अप-1 गगेका कहना है, कि मृगशिरा, पुनर्वसु, मघा, ज्येष्ठा, राजिता और काञ्चन, इनका वीज कहीं भी रोपण नहो । उत्सरफल्गुनी, उत्तरापाढ़ा और उत्तरमाद्रपद इन सब करना चाहिये, करनेसे नितान्त अमाल होता है। नक्षत्रों मे ; मीनलग्नमें तथा निधन भार पापग्रह वर्जित धान्यादिके वोजवपनको तरह वृक्षादि वीज रोपण- चन्द्र अर्थात् जिस दिन चन्द्र किसी प्रकार पापग्रह कालमें भी पूर्व ओरको मुह कर जल पूर्ण घड़ा और युक्त या निधनसंशक न हों, उस दिन धान भादिक मुवर्ण अलम युक्त पोज ग्रहण कर, पोछे स्नान और बोजको एक प्रकोष्ठम रख यहां निग्नोक मन्त किसी शुति हो कर “वसुधेति सुशीतेति पुण्यदेति धरेतिच ।। पत्रादिमें लिख विन्यस्त कर देना होगा। मन्त्र इस .. नमस्ते शुमगे नित्य द्रु मोऽयं घी तामिति ।" यह मन्त्र प्रकार है-

  • पढ़ कर योज रोपण करना होता है।

"धनदाय सर्वलोकारिताय देहि मे पान्य साहा। . घोजयर (सं० पु.) उड़द, कलाय । नम बहाय ईहादेवि सर्वोकविवर्दिनि- वोजवाहन (स० पु०) महादेव । ( भारत० १३३१७३१) । कामरूपिणि धान्य'दे हि स्वाहा ॥" ( ज्योतिस्तत्त्व) योजयत (म.पु. ) योगादेव वृक्षो यस्य वीजप्रधानो ज्योतिस्तत्त्वमें इस सम्बन्धों और भी कहा है, कि • वृक्षोया।१मशन, पियासाल । २ भल्लातक, मिलावां। मूपिकादिको निवृत्ति के लिये पत्र अर्थात् भोजपन आदि. वीजसञ्चय (संपु०).योजानां वपनयोग्यधान्यादीनां | में मन्त्र लिख कर उत्तरफन्गुनी, उत्तरापाढा, उत्तर-