पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/८६१

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वोज्य-वीणादण्ड ७५३ वीज्य (०नि०) विशेपेण इज्यः पूज्या या धोजाय हितः, योण-चट्टलके अन्तर्गत ग्रामभेद । (भविष्यत्र०सं० १५।४५) ..( उगपादिभ्यो। पा ५॥११२) इति यत् । १ कुलोत्पन्न, घोणा (सं० स्त्रो०) येति धृद्धिमात्रमपगच्छतीति वी गौ । जो अच्छे फुलमें उत्पन्न हुथा हो । पर्याय-कुलसंभव, (रास्नासास्नास्थ यावीणाः । उप ३१५) इति न निपा. .मेश्य, कोलकेय, कुलज, कुलीन, कुल्य, कुलभव । (जटाघर) ननाद्गुणाभावो णत्यश्च। विद्यन्, विजलो। २वीजनोय, जो येल के पाग्य हो । ( मेदिनी) बीर (सं० लो०) खएडा। (सिदान्तकौमुदो) २ स्वनामख्यात वाद्ययन्त्र, प्राचीनकालका एक बोटा (सं० स्त्री०) एक प्रकारका खेल जो हाथ भर लम्बे प्रसिद्ध पाजा, जिसका प्रचार अब तक भारत पुराने , जौके आकार के काठ के टुकड़ से खेला जाता है। 'गुली द ग गवैयों में है। पर्याय-पल्ली , पिपञ्चो, परि- .एडा' खेलमें जैसे गोलेका चावहार होता है, यह भो यादिनी, ध्वनिमाला, बङ्गमल्लो, विपञ्चिका, प्रोपपती, ठीक वैसा ही है। पालफ एक घडे इण्डेसे उसे मारते कण्ठणिका । हुए एक स्यामसे दूसरे स्थानमें ले जा कर खेलते है। इस यन्त्रमें वोचमें एक लम्या पोला दण्ड होता है। यह खेल बहुत कुछ महारेजी hockey खेल के जैसा है। दोनों सिरे पर दो बड़े यो तू लगे होते हैं। एक महामारतके टोकाकार मोलकण्ठमा मत है. कि धीटा, तू येसे दूसरे तू ये तक यौनके दण्ड परसे होते हुम, लोहे धातुमा बना हुआ एक गोला है । ( भारत आदिपर्व) । के तीन और पीतल के चार तार लगे रहते हैं। लोह में वीटि (संखो०) विशेषेण एरति छायानिखात पट्यादि तार पक्के और पीतलके को कहलाते है। इन सातों ____ष्टयित्या प्रवद्ध'ते वि इट (इगुपधात् कित् । उप ४।११६) तारोंको कसने या ढोला करनेके लिये सात खूरियां इति इन्, मत कित् । १ ताम्बूलवल्लो. लगाया हुआ रहती हैं। इन्हों ताकी झनकार कर स्थर उत्पन्न किपे . पानका वोड़ा। जाते हैं। वोटिका (सं० स्त्रो०) वोटिरेव स्वार्थे कन् त्रियां टा। प्राचीन भारतके तत जातिके वाजों में चोणा सबसे ताम्यलयल्ली, लगाया हुआ पानका घोड़ा । ( राजतरंगिणी पुरानी और अच्छी मानी जाती है। अनेक देवतामोंकि . ४१४३०) हायमें यही वीणा रहती है। भिन्न भिन्न देवताओ भादिफे 'बोरी (सं० खो०) योटि चा डीए । योटि, पानका दायमें रहनेवालो पोणाओं के नाम पृथक पृथा है। . कोड़ा। जैसे, महादेवके हाथकी चीणा लम्बो, सरस्वतीफे हाय. बीड, (सं० वि०) दूढ़, मजरत । (भृक ११३६३) की कच्छपी, नारदके हाथको महतो और तुपदके दायको वो जम्म (सं० लि०) इविक्षिणार्थ, हविः खाने के लिये। कलावतो कहलाती है। इसके सिवाय योणाफे और (भूफ ।२६।१३) · भी कई भेद हैं। जैसे-तितन्त्री, किन्नरी, घिपञ्चो, चीहद पस् (सं० वि० ) प्रबलराक्षसादिका पकारी। । रअनो, शारदी, रुद्र और नाइश्यर आदि। इन सयको । (भूफ २०२४।१३) । आकृति आदिमें भी थोड़ा बहुत अन्तर रहता है। विशेष विवरण माद्ययन्त्र शहदमे देखो। योड़ पत्मन् (सं० लि० ) बलवदुत्पतन । (भूक १।११।२) । पोड़ पवि (संत्रि) ढरपनेमि, रथका गजबूत धूरा। वीणाकर्ण (संपु०) हितोपदेशर्णित ध्यक्मेिद, . वीड़ पाणि (सं० लि.) दृढ़पाणि, मजबूत हाथ। लोणागणगिन् (म0पु0) घोणापादक, पीना बजाने- (ऋक १०३८।११) पाला। (रामपणत्रा० १३३) योह.हरस ( स० लि.) प्रभूततेजस्क, बहुत तेजस्वी। वीणागाथिन (सं०:पु.)धीणायादक । (ऋक, १०१०११) (तत्तिरीयमा० ३१४१) · विश्वङ्ग (स.लि.) दार. अबूत अङ्ग। वीणातन्स (० लो०) तन्वयमेद। (. ११११८) वीणादण्ड (२०:०). कोणायाः दएडा। वीणास्थित Vol. xxI 189