वीणादंच-चीत
अलायूपरि काष्ठदण्डा। याणाका लम्बा दण्ड या घोणास्य (सं० पु० ) यांणा भास्यमिव आत्यमस्थ, तथैव
तुथोका बना हुमा यह पश जो मध्य में होता है। इसे स्फुटगानकरणात् । नारद । (जटाघर)
प्रवाल भी कहते हैं। ..
वीणादस्त ( स० वि०) घोणा हस्ते यस्य । १ जिसके
यीणादत्त ( स० पु०) गन्धर्व मेद ।
| हाथमें वीणा हो। (पु०) २ शिव, महादेय। ।
(कथासरित्सा० १७६१) | घोण (सं० वि०) योगायुक्त। ।
घोणानुबन्ध (सं० पु०) वीणायाः अनुषन्धः। उप. वातंस ( स० पु०) विशेषेण वहिरेव तस्यने भष्पने इति
नाद, सितारको खूरी जिसमें तार यधे रहते हैं। वि तन्म-धम् उपसर्गस्य घम् मनुष्पे बहुलम् इति दीर्घः
वीणापाणि (सं० स्त्री०)वोणा पाणी यस्य । सरस्वती।। (पा ६।३१२२)। वह जाल, फंदा या इसी प्रकारकी और
वीणा सरस्वती देवीफे अतिशय प्रिय है, इसीसे वे सामग्री जिससे पशु और पक्षी भादि फंसाए जाते हैं।
मयंदा अपने हाथो में योणा धारण करतो हैं। बीत (सं० लो०) वेति स्म वा जति स्म, अज गत्यति
.. सरस्वती देखो। । । १ असारहस्तो गोर अश्य, वे हाथी, घोड़े और
यीणाप्रसेव ( स० पु० ) घोणाच्छादन पूर्वक रक्षाकारी, सैनिक आदि जो युद्ध करने के योग्य न रह गये हो ।'
वह गिलाफ जो यीणा पर उसकी रक्षाके लिपे चंदाया २ अकुशकर्म, अकुशके द्वारा मारना। (माघ ५।४७)
जाता है।
३ सांख्योक्त अनुमान विशेष। सांण्यदर्शनफे मतसे
वीणामिद् ( स० पु०) यीणायन्त्रभेद। ., .. पूर्ववत् शेषयत् और सामान्यतोद्दष्ट ये तीन प्रकारके
योणारय ( स० पु.) १ घीणाका शब्द । (नि.)२: वीणा- अनुमान हैं। यह भी दो प्रकार है-वीत मोर अयोत,
संहति ।
इनमें योत फिर दो प्रकारका है-पूर्ववत् । और
वीणारवा (सां० स्त्रो०) मक्षिकाभेद, एक :प्रकारकी सामान्यतोदए और अवोत शेषवत् कहा गया है। अनु-
मफ्षी ।
मान. बुद्धिवृत्तिविशेष है, किस तरहकी बुद्धियत्तिको
योणाल (सं० वि०) क्षुद्र वीणाविशिष्ट । .:.;. अनुमान कहा जाता है, उसका विवरण इस तरह है--
. .(.पा २६१)
व्याप्ययापक भाव और पक्षधर्मताहानसे जो बुद्धिति
योणावत्सराज ( सं० पु० ) राजपुतभेद । (पञ्चतन्त्र )
होती है, वहीं अनुमान कही जाती है। . पूर्व शब्दका
वोणायत् ( स० लि.) घोणा अस्त्यर्थे मतुप मस्य । आम कारण है, जहां कारण द्वारा कार्याका अनुमान हो,
वीणायुक्त, घोणाविशिए।
वह पूर्ववत् है। जो साध्य है, ठीक वैसो हो यस्तु यदि
चाणायती ( स० स्त्रो०) १ सरस्वती। २एक अप्सरा दूसरी जगह दीख पड़े तो उस साध्यानुमानको पूर्वषत्
का नाम ।
. . .....
कहते हैं। "पते। यहिनमान् धूमात्" यह जो अनु.
योणावाद (सं० वि०) घीणां चादयतीति यद्-णित मान है, उसका नाम पूर्ववत् है। उक्त स्थल वहिन
अण् । वीणावादक, वोनकार । पर्याय-णिक । (अमर) साध्य है, पर्वत पक्ष है। पर्वत पर हि दृष्टिगोचर न
योणावादक (सं० पु० ) वीणाया घादकः। चीणायाध होने पर भी पाकशाला आदिम यहि दिखाई देती है।
फर्ता, दोनकार .
अथम साध्यवाहिः और पाकशालाको यहि दोनों एक
वीणायादन (. क्ली० ) वीणाया वादनं । वोणाका रूप हैं। हित्व नामक ऐसा, एक, असाधारण धर्म
वाघ, वीणाका शब्द । । . . . . . . . . दोनों में हो वर्चमान है, जो कहीं अनुमानके साथ मौर
वीणावाच (सं० ला० ) योणाया पाच वीणाको याद्य, कहीं प्रत्यक्षके साथ विज्ञहित है। किन्तु जो अतीन्द्रिय
बीनको मायाज। . .!
है, प्रत्यक्षफे अगोचर है, वैसे साध्यका अनुमान पूर्षयत् ।।
योणाशिल्प ( स० क्लो०') घोणावादनविषयक कला- नहीं हो सकता। यह शेपयत् · होता है, नहीं तो -
विज्ञान । .
.. : । सामान्यतोदए अनुमान होगा। .
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/८६२
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