पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/१४

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टंकनादिवटी-टंकारकारिणी रज, लोह षण, रमशोधन. टणक्षार, टङ्गाक्षार, रसा- टङ्गवत् (म• पु०) टङ्ग प्रस्त्वर्थे मतुप मस्स वः । पर्वत धिक, लोहद्रावी, रमन्न, सभग, रङ्गग्द, वत्त ल, कनक, भेद, एक पहाड़ जिसका नाम वाल्मोकीय रामायणमें सार, मनिन, धालुवनभ. मानतोतोरमम्भव, द्रावी, पाया है। "टंकवन्तं शिखरिणं वन्दे प्रसवणं गिरिम् ।" द्रावक, लोहशुहिकारक और स्वगा पायक है। इसके (गमा० ३।५५४.) गुण -कट . उष्णा, कफ, स्थावरादि विष, काश और टङ्क विज्ञान ( मली. ) टङ्गन्स्य विज्ञान, तत् । भाना- वामनाशक, अग्नि तथा वातपित्तनाशक और रुन्न है। देशीय और मानाकाम्नोन टङ्ग परिज्ञानार्थ विद्या, भित्र भ्रमको शोधन प्रणालो वैद्यक ग्रन्यनं दम प्रकार लिम्वी भिन्न देशों और बहुत पुराने समयकी टङ्ग जानने की है-अम्ल हाग भावना देकर चर्ण करनेमे यह मश्व विद्या। मुदा देखा। काममि प्रयोग किया जा सकता है। विशोधन ( म० को०) टङ्गस्य विशोधन, तत् । "अम्रेन भावित चूर्ण सर्वकार्येषु योजयेत् ।" ( वैद्यक ) मुद्राविधिसम्पादन, मिक्क को परिष्कार करने को पाने टसण कान्त्रिक अम्बमें डालते हैं, बाद अम्नमे क्रिया। निकाल कर एक दिन गैद्रमै भावना देनी पड़ती है. टङ्गशाला (म• स्त्री० ) टङ्गस्य शान्ना. ६-तत् । टकसान । पोछे नरमृत्र गोमुत्रके माथ मिला कर एक दिन रगत टकसाल देग्यो । कोड़ते हैं। इसके बाद उमे जबोगे नौब के ग्ममें डाल टङ्का । म स्त्री० ) टङ्ग-अच टाप । १ जना, जॉध । । कर और फिर उममसे निकालते हैं, तब उसे नारि- तारादेवो । "रकार कारिणी टीका ट' का टकारिणी तथा ।" गलके पात्रमें मिर्च चर्ग मिना कर शीतल जलमे प्रक्षा. (तारासहस्रनाम ) लन करते हैं। ऐसा करनमे टङ्गण विशद्ध होता है और रागिणीविशेष, सम्पर्ण जातिको एक रागिगी। मब कामाम दमका प्रयोग किया जा मकता है। यह यह निषड़ ज पार आदि मूच्छ नायुक्त होती है । सवर्ण अग्निकर, रुस, कफनाशक, रोचन और लघ है।२ वर्णा वियोगविधुग रागिणो अपने घरमें आ कर नलिनी. भातको चोज टोका मार कर जोड़ लगानका कार्य, दलशय्यामें निद्रित कान्तको विषवचित्त देख कर गान टांका लगानका काम । ३ अखभेद, घोड़े को एक जाति। करनेमे टका मजा होतो है। हनुमत्के अनुसार इसका "कणखरनस्वरखण्डित हरितालगांशुलेन । ' ( कादम्बरी) स्वरग्राम इस प्रकार है--मरे ग म प ध नि म । ४ देशविशेष, एक देश जिसका नाम वृहत्सहितामें टङ्गानक ( म० पु.) टङ्कं को आनर्यात उद्दीपति । कोण आदिके माथ आया है। ( बहामहिना १४।१२) टक-अन् णिच् ण्वल । ब्रह्मदारु, महत त । कणादिषटो-वैद्यकीत औषधविशेष । प्रस्तुत-प्रणाली- टकार ( स० पु. ) ट चित्त-विकृतिं करोति स-कर्मण्यग्ण । महागका फला, मोठ, गन्धक. पारद. विष, मरिच, । विम्मय । २ शिलिनीध्वनि, ठन उन शब्द ओ किमो इनको बराबर बगबर पण कर मदार रममें घोटना कमे हए तार आदि पर उँगुली मारनेमे होता है। नाही: फिर न बराचर गलिक बनाकर सेवन ३ धनुषको कसो हई पञ्चिका खोंच कर कोडनका करना चाहिये। यह शोघ्र अग्निदोषिकर है। शब्द. वह भन्द जो धनुषका कसो हुई डोरो पर वाण रङ्गनल ( म० पु०) प्राम, श्राम। रख कर खोंचजेसे होता है। टपति ( म ० पु. ) टङ्गस्य पतिः, तत् । टकमालका टंकार नृत्यकल्लोला टीकनीया महातटा।" (काशीख० २९।६६) अधिपति। ४ धातु पर आघात लगनेका शब्द, ठनाका, झन- टापाणि-डोसाका एक ग्राम । यह भुवनेश्वर मन्दिरक कार । ५कोति.प्रमिति, नाम । चागं पोरकं ४५ पुण्यक्षेत्राममे एक है तथा कुण्डस्लेखरके टारकारियो ( म० स्त्रो. ) टङ्कारस्य कारिण, क-विनि- ममोप पुगे जानकै राम्तं पर अवस्थित है। किसो डोप । तागदेवो। किमीका मत है, कि क्षेत्रपरिक्रमके ममय यात्रियाँको इम ___ "कारकारिणी टीका काट कारणी तथा ।" मानका भो दशन करना चाहिये। ( तारासहस्रनाम)