पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/१४१

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गोमकोमा-होमनी १३७ पण्डितोवा एक मत नहीं है। जो कुछ हो, कई रोहिन नदी, दक्षिणमें रानी नदो, उत्तर-पूर्व, पूर्व पोर शताव्दोसे डोम अत्यन्त हीन और घृणित कार्य करके दक्षिण-पूर्व में ककरारमा नाला है। वर्षा कानमें यह कालनेपण करते हैं। प्रायः चार पोरसे चहार-दीवारीकी नाई घिरा रहता पूर्वी डोमों के आचार-व्यवार तथा और सभी तरहके है। यद्यपि यह भी टोफूटी अवस्थामें पड़ा है, तो भो काम बङ्गालके डोमोमे बहुत कुछ मिलते जुलते हैं, पर यदि चाहें ता फिरसे से पूर्व सरीखा सुदृढ़ दुग में ला जिस तरह बङ्गालमें कई जगह मृतदेहको न जला कर सकते है। प्राचीन काल में यह एक दुर्जय दुर्ग समझा उसे ग्वगड कर फेंक देते हैं उस तरह हम देश में नहीं जाता था. इसमें सन्देह नहीं। अभी दुर्गका केवल भग्ना- है। यहांक डोम हिन्दुक जैमा मृतदेह को जलाते वशेष रह गया है । भग्नस्तूपर्क जपर बहुतमे पंगरेजों के है, पर जिभको अवस्था अच्छी नहीं है, वह नदी में फेक मकान बम गये है। अगरेज लोग कभी कभी हवा देता है। कवार की लाग चाह वह धनो हो चाहे बदलने के लिये गोरखपुरसे वहां जाते हैं। गरोव, नदोमें ही फंको जातो है । लेकिन गोरखपुरका प्रवाद है कि डोमकहके राजाओंसे यह दुर्ग बनाया मधे या डोम मृतदेहको जङ्गलमें छोड़ देता है। मृत गया था, उमीके अनुसार इसका नाम डोमनगढ़ पड़ा कर्म तथा अयोच बङ्गालक डोमा मरोग्वा है। हिन्दुके है। ससीका विश्वास है, कि यह जाति क्षत्रिय भोजव जैसे काना, महादेव पादि भी इनके उपास्यदेवता थी और शायद इन लोगोंने तत्पूर्ववर्ती डोम राजाश्री- हैं । पोपल वृक्षको मो ये लोग पवित्र मानते और उसके को काट कर या मार कर राज्य प्राश किया होगा । डोम पत्ते आदि तोड़नसे डरते हैं। हिमालय प्रदेश के कह नामसे हो ऐमा अनुमान किया जाता है। माधा- कुमाऊक डाम इन मान डामाको घणादृष्टि में दंपत रण लोगों का भी विश्वास है, कि डोमनगढ़ अर्थात् हैं। यहां तक कि इनमें काई य द उसके घरगे प्रवेश डोमोका दर्ग डोम राजामौमे ही बनाया गया है। कर जाये तो घरको पवित्र करने के लिये वह गोबर फिर किमोका यह भो अनुमान है कि डोम जातिके आदिमे नोपता है । अ.दान प्रदान तो किमो हालतमे अधिपतियांसे इस दुर्ग का निर्माण हुआ है। सच पूछिये हो हो नहीं सकता। वहां कुछ डोम ऐसे हैं जा तो वै डोम थे नहीं भोर डोमोने यहाँ राज्य भी नहीं अच्छे अच्छे पड़े बुनत तथा तरह तरहके बरतन किया। जो कुछ हो, डोमनगढ़ एक समय ऐसा चढ़ा और हुक्कको पेंदो बनात हैं। बढ़ा था, कि प्रायः वर्तमान समस्त गोरखपुर और रामो ___ यह जाति अस्पृश्य है, भ्रमसे यदि उससे स्पर्श ह नदोके किनारे से ले कर बहुत दूर तक इसका राज्य फैला जाय, तो स्नान र १०८ बार गायत्री जप करना हुआ था। बहुतेरे यह भी कहते हैं, कि इस प्रदेशक पड़ती है "स्पृटा प्रमादतः स्नात्वा गायटशतं जगत् ।" आदिम अधिवासो डोम थे। पाज भो डोमनगढ़, डोमरो, ( मत्स्यसूक्ततं ३९ पटल) डोमरदार, डोमकवा, डोमरा, डोमहाट, डोमरिया, डोमकोमा ( हि पु० ) एक प्रकारका बड़ा कौत्रा। डोमा, डामाढ आदि अनेक स्थानों के नाम प्राचोन डोम इसका माग शगैर काना होता है। अधिवासियों का परिचय देते हैं। डोमतमोटा (हि पु० . एक पहाड़ी जाति । ये पोतल प्राचोन डोमनगढ़के भग्नस्त पोंमें जो दो एक ईटें ताँब का काम करते हैं। पाई गई हैं उनका प्राकार चोखूटा, बड़ा और मोटा डोमनगढ -यतापगके अन्तगत गोरखपुर जिलेका एक है।* प्राचान टुगे । यह गोरखपुर नग मे प्रायः १४ मोल उत्तर डोमनी (सि. स्त्री०) १ डोम जातिको स्त्रो। २ डोमको पश्चिम रोपिन और रालो दोनों नदियों के मङ्गमस्थानके स्त्री। ३ एक प्रकारको नोच जातियों को स्त्रो। ये पास प्रवस्थित है। दुग का अवस्थाम स्वभावतः दुगम .cuuuingham BArchaeological Survey of India, vol. है। इसके उत्तर पश्चिम, पथिम और दक्षिण-पश्चिममें xxii, p. 65-67. Vol ix. 35