पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/१८६

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१८३ तमोर (सजापुर) म्बर महीने में तखोर पाकर गजा तुलजाजोको कैद कर बनारम ( काशी ) प्रभृति स्थानों के पण्डिौके मतानुसार लिया और नवाब सञ्जीर के ग्वाम अधिकारी हो गये। देखा गया कि दत्तक ग्रहगामें कोई दोष नहीं है। डाई- डाइरेक के निकट या मम्बाद पहचने पर उन्होंने करको यह बात मालम होने पर, उन्होंने शरभोजोको असन्तोष प्रकाश किया। वे बोले कि १७६२ ई०को गज्यमि हासन पर अभिषिक्त करनेका पादेश किया। मन्धिकै अनमार अंगरेज गवम गट तुलजाजो को महा. माक्किम आफ वेन्नेमलीने १७४८ई में उक्त प्रादेशको यता करने वाध्य है । पेशकर बाकी रह जानेमे गजा. कार्य में परिणत किया। को केंट कर लेना मन्द्राज गव रन बरत अनाय किया गजकार्य में शरभोजोको अनभिज्ञता रहनेसे मन्दाज. है। उन्होंने पिगट माहचीमन्द्राजका गवर्नर नियुक्त कर गवर्मण्टन उनके बदले कुछ काल तक राज्यशासन यह प्राजा दो, कि उन्हें तुलजा जोको सिंहासन पर पन: किया था । अधिष्ठित करना होगा। राजा नवाबको वार्षिक लाख १७८८ ई० २५ अक बरमें जो मन्धि हुई, उममें रुपये पेशकश देंगे। मन्द्राज गवन को अनमतिके अन्- यह शर्त थी, कि वृटिशगवर्मेण्ट राजा के प्रतिनिधिस्वरूप मार नवाबके माहाय्यार्थ राजा ममय ममय पर मैन्य- तोर पर शामन करेगो। राजा दुग में रह कर एक माहाय्य करेंगे और राजा अंगीज मित्र बने रहेगे। नाव पगोडा और ममस्त पावका अंश मात्र पावेंगे। एक दल गरेजो मेना तोरम रह कर शान्ति रक्षा इम मन्धि अनमार तन्नोर टुर्ग को छोड़ कर और ममी करेगो और उमका खर्च गजाको देना पडेगा । अंग प्रदेश एक प्रकारमे बाट गमाम्राज्यभुक्त हो गये थे। रेजोको अनुमति बिना राजा किमाम मन्धि स्थापन महाराष्ट्रय गाय राजानि १२२ वर्ष तक यहाँ राज्य नहीं कर मकते। किया था। __ डाइरेकके आदेशानुमार पिगट माहबने १७७६ प्रारभोजओके बाद उनके पुत्र २य शिवाजीने पिटपद ईक ११ अप्रनको तुलजाजोको नचार मिहामन पर पाया। शिवाजीने मरने के पहले एक दत्तकपुत्र ग्रहण अभिषिक्त किया १२ अप्रेलको राजान मन्धिपत्र पर किया था। किन्तु माति म आफ डलहौसीने उस अपना सम्ताक्षर किया । और अगरेजा सेनाकै ग्वच के दत्तकको खोकार न कर १८५५ ईमें तञ्जाबुर राज्यका लिये वार्षिक १४ लाख रुपये देनको स्वीकार किया। अस्तित्व लोप कर दिया। राजपरिवारवर्गको मासिक ___१७८१ ई० में हैदरपलीने तज्जोरका दग कोड कर वृत्ति निर्धारित ईई थो। और मभी जगह माम तक अपना अधिकार जमाये अभी तोरको पूर्व थी जाती रही। दुर्ग कहीं रखा था। कहों टूट-फट गया है। राजभवनको भो अच्छो सन १७८७ ई० में तुलजाजाको मृत्य हुई । उन्होंने मरने मरम्मत नहीं होता है। रानियाँको भूमम्पत्ति रिमो- के परले शरभोजी नामक किमो मारमोय पत्रक' दत्तक वरों के हाथ लगी। दम मम्पत्तिको वार्षिक आय ॥ लिया था। किन्तु उनकी मृत्य के बाद उनके छोटे भाई लाख रुपये है। तञ्जोरका मरखती भवन नामक पुस्त दत्तक-शास्त्रमङ्गत नहीं है, यह अग्रज के निकट प्रमाण कालय सुरक्षित है। इस पुस्तकागारमें राजा शरभोजो कर श्राप स्वयं राजा हो गये । तुलजाजोको विधवा बहतसे उस्तलिखितग्रन्य संग्रह कर गये हैं। स्त्रीको वार्षिक ३ हजार और शरभोजीको ११ हजार तजोरमें श्वर महादेव मन्दिरके पश्चिम-उत्तर पैगोडा ( सिक्का ) दैना कबूल कर मन्धिपत्र पर हस्ताक्षर कोणमें सब्रह्मण्य स्वामीका मन्दिर विशेष उल्लेखयोग्य किया । है। रमको गठन प्रणाली बहुत अच्छी है। प्रमि मन्द्राज में रहते ममय तुलजाजोको विधवा स्त्रीने मन्दिर के सामने जो प्रकाण्ड नदीको मूर्ति है. उसके लार्ड कर्मवालिसके निकट दत्तक ग्रहण शास्त्रमाणात है विषयमें एक प्रवाद सुना जाता है। मन्दीको पातति या नहीं इसका अनुसन्धान करने के लिये पावेदन किया। पहले बहुत छोटो थौ । किसी ममय उस मूर्तिको पहा