पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/१८९

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१८५ लड़का (हि पु०) १ प्रभात. प्रातःकाल. सुबह ।२ वधार, धनुष गहरे पुष्करिणी, दीप्तिका तथा प्रशस्त भूभागमे घी और कुछ मसाला गर्म करके दान पादि तरकारि रहनेवाले तथा बहुत दिनोंका अमाशयको तड़ाग कहते यौमें डालना। . है। २४ पंगुलीका एक हाथ और चार हाथका एक तड़काना (हिं० कि०) १ किमी मूवी हुई चीजको फाडना धनुष माना गया है। एक मौ धनुष परिमित स्थान २ उच्च शब्द करना, जोरसे अावाज करना। किसो जलाशयको पुष्करिणी कहते हैं, और पांच सौ धमष को क्रोध दिलाना। परिमित स्थानके जलाशयको तड़ाग कहते हैं। तड़ग ( स० पु. ) तनाग पृपो. माधु: । तडाग, सरोवर । 'प्रशस्तभूमिभागस्थो बहु सेवनसरोषितः। तड़तड़ाना (हिं. क्रि. ) लड़ तह शब्द होना। जलाशयस्तयागः स्यादित्याहुः शस्त्रकोविदः ॥" (पम्दार्थचि.) तड़तड़ाहट । बि. स्त्री ) तरतानेको किया। "चतुशागुल इस्तो धनुस्तच्चतुरुत्तरं । तडप (हि.स्त्री.) दनको कि।।२ चमक, भडक। शतधन्वन्तरश्चैव तावत् पुष्करिणी शुभा ॥ सड़पदार (नि. वि०) भड़कोना, चमकीना. भड़कदार । एतत् पश्चगुणः प्रोक्त स्तडाग इति निर्णयः ।" ( वशिष्ठ ) तड़पना (Eि क्रि.) १ याकम्न होना. छटपटाना, सड़ हमके जलका गुण-वायुवईक, स्वादु, कषाय पोर फडाना! घोर शब्द करना. चिनाना। कटपाक तथा मिशिर और हिमकालमें प्रत्यन्त प्रशस्त तड़पवाना (हिं. क्रि . ) कूद मे का काम किमी दूमरेमे है। ( राजव• ) जो मनुष्य यथाविधिमे तड़ागोत्सग करते कराना। है, वे एक कल्प ब्रह्मालय, और उसके बाद दिव्ययुग तरपाना (हिं. कि. ) १ मानसिक - शारोरिक वेदना म्वर्ग में वास करते हैं। उत्सर्गविधिका विशेषविवरण पुष्करिणी प्रतिष्ठा देखो। पहुंचा कर व्याकुल करना । २ किसोको गरजने के लिए कालविशेषमें तडागके जलका फल- वाध्य करना। वर्षा और शरत्कालमें अवस्थित जन्म पम्निष्टोमयन्त्र तड़फडाना (हिं क्रि. नहाना देखो। महश, हेमन्त और शिशिरकालमें वाजपेय, वसन्तकाल में तरफना (हि.क्रि. ) तडपना देनो। अश्वमेध और ग्रीष्मकालमें राजसूययन सदृश फलदा. तड़बटी (हि स्त्रो० ) मराज इत्य दिमें पृथक पृथक. यक है। पक्ष बनना। "प्रास्ट काले स्थित तोय अग्निष्टोमस स्मृतम् । तड़ाक (म० पु.) तण्डाते अहिन्यते उमि भि: तड़पाक । शरत्काले स्थित' तोययदुक्तफलदायकम् ॥ पिनाकादयश्च । उग. ४।१५ । तड़ाग, तालाब । वाजपेयफलसम हेमन्तशिशिरस्थितम । तड़ाक (Eि पु० ) १ तिमो पदार्थ के फटनेका शब्द । अश्वमेधसम प्राहुर्व मन्तसमयस्थित ॥ (क्रि.वि.).२ जल्दोमे, चटपट, तुरन्त । प्रीष्मेऽपि तु स्थितं तोयं राजसूयफलाधिकम् ॥ (पद्मपुराण) तड़ाका (मत्र. ) तडाक स्त्रियां टाप। १ नदो जो तड़ागोत्सग करते हैं। वे इस फलको पात और समुद्रका तटभाग । २ आघात, चोट । ३ प्रभा, दोशित हैं। एक तडागोमग करनेसे ही समस्त यतका फल चमक। होता है। तडाका (हिं०५०) क पवाब बुननेवालों का एक डंडा। तडागज ( म० पु०) काल कोठ, एक प्रकारका कन्द, इसकी लम्बाई प्रायः सबा गजको होतो है और यह मनसारू । लफेमें बंधा रहता है। तडातड़ (हिं. क्रि० ) तड़ सड़ शब्दके साथ । सड़ाग ( स० ५०) तड़-प्राग। तडागादयश्च । इति निपात- तड़ाना (हि. क्रि०) ताड़नेका काम किमी दूसरेसे नात् साधुः। १ यन्त्रकूटक. हरिण इत्यादि पकड़ने का कगमा । फंदा । २ जलाशय वशेष पुष्कर, तालाब। इसके संस्थत तडावा (हिं स्त्री०) १ पाडम्बर, जपरो तड़क-भड़क । पर्याय-पाकर, तड़ाक, तटाक पौर सड़म है। पांच सौ २धोखा, कपट, छल । Vol. Ix. 47