पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/१९२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

१८८ वेद-ततिया तत् (संपव्य०) हेतु, निये । यह शब्द हेत्वर्थ में व्यवहत | ततम (म' वि०) तेषां मध्ये निहरितो योसो तट होता है। (नि.) तन-किर । २ विस्तारक, फैलानि । डलमच । वा बहूनां जातिपरिप्रश्ने तमच । पा ५१९३ वाला । को०) ३ बमका नामविशेष, ब्रह्म या परमात्माका बहुतमिसे वे या वह। एक नाम। ततर ( स० त्रि. ) नयामध्ये निर्धारितों योऽभौ तद् डत- "ओं तत् मादति निर्देशो ब्रह्मगस्त्रिविधः स्मृतः। रच । यिसदा निर्वाणे द्वारे इत:च् । ॥ ५३॥१२॥ दो- बाह्मणास्तेन वदाश्च यज्ञाश्च विहिता पुर।।" (गीता २२)। मंसे वह दो में से कोई एक। तत् मत् ब्रह्माक ये हो तोन प्रकारके नाम हैं। ततगे (हिं. स्त्रा० ) एF फलदार पेड़। इमो त्रिविध नामसे पहले ब्राह्मण, वैद ओर यसको मुष्टि । ततम म'. अव्य०) तद-तमिन । तद् शब्द का उत्सर सभी हुई थी, इमो लिये ब्रह्मवादियों के विधानोत यस दान ! विभक्तियों में तमिल होता है । जैम -अनन्तर, तविमित्त, और तप ांकारपूर्वक उदाहत हुआ करते हैं। (त्रि०) म कारण, वहाँ, उह स्थानम, तो, तत्कति क । प्रथमादि- ४ वुद्धिस्थ । ५ परामर्थ विशेष। यह शब्द वह और वे के अर्थ में तमिल प्रत्यय होने पर उन्हाँ अयाम व्यवहत शब्दके बदले व्यवहत होता है। होता है। यत् और तत् शब्दके माथ नित्य मम्बन्ध है । यत् शब्द ति:प्रभृति (म० अन्य. ) तदवधि, नभोमे । प्रयोग करनेसे हो तत् शब्दका प्रयोग करना पड़ता है। ततस्तत: ( म अन्य ) ततः तत: वासायां हत्वं । उस में किन्तु सत शब्द यदि प्रसिद्ध अय में व्यवद्वत हो, तो यत् बाद । शब्दका प्रयोग नहीं करनसे भो काम चल मकता है। ततस्तम (स अव्य०) हेतुभूतानां बहना मध्ये एकस्या- तत ( में लो०) तनोति तन तन् । तनयां किंञ्च। 3 तिशय ततः तमप । बहुतामस एक का उत्कर्ष । वाद्ययन्त्र एक प्रकारका बाजा जिममे ततस्तरां (स.अया। तभनयाहयामध्ये एकस्याति बजानके लिये तार लग हो । यह मान मितार, बीना. शय तत: तर५ । दामस एम उत्कर्ष । एकतारा, बहला आदि के जेमा होता है । इमक दा भद । ततस्त्य ( स० वि० । ततस्तत्र भवः ततः त्यप । तत्र भव, है। -एक जी मिफ अंगुलो या मिजराव आदि तवत्य, तदागत, तज्जात, तत् सम्बन्धो । बजाया जाता है उसे अंगुन्नित्रयंत्र करते और दूमरा : ततहड़ा (हि. पु. ) महा. एक बरतन। देहात के जो कमानीको सहायतासे बजाया जाता है उसे धन:यन्त्र रहनेवाले इस तरहक बरतनमें नहानका पानी गरम कहते हैं । ( संगीतरत्नाकर ) (वि.। तन-त । २ विस्ता- करत है। रित, फैला हुा । ३ व्याम । ( लो०) ४ वायु, हवा। ततामह ( स० पु. ) ततस्य पितु: पिता पितरि तत ५ मन्धान । पिता, बाप। ७ पुत्र, बेटा। डामहः । पितामह, दादा । तक ( मं० पु० ) जैनमतानुसार हितोय पृथिवा ग्यारह ततारना (हिं० कि० ) १ उण जलसे धोना । २ धार दे इन्द्रकर्मि से पहला इन्ट्रक। त्रिलोकार, १५५) तनताई (हि. स्त्री० ) नृत्यका शब्द, नाच के बोन। ति ( स० स्त्रो. ) तन-तिन् । १ थे णो, पंकि, तांता । ततत्म (म. ली. ) सङ्गीतशास्त्रको अस्पमात्रा। २ सम ह, मुण्ड । ३ विस्तार । (नि.) तत् पारमाण येषा कतनुष्टि (म० ५०) तत धर्म सन्तान नुदति वष्टि कामयते । तत् डति । ४ तत् परिमाण, उतना । कामान् नुद-डु वश लिच । धर्म मन्ततिनोदक, धम् | ततिथा (स' स्त्रो०) तावतोनां पूरणो तावत् डट , तिथुड़ा. मन्ततिकामक। गमः डीप वेदे अवशब्दलापः । सावतका पूरणोभूत, सतपत्रो (म स्त्रो ) तन विस्त पत्र यस्याः, बहुव्री०।। वह जो सबका पूरक हो। कदलीवृक्ष, केलेका पेड़। मतिधा (म० अध्य०) ततः प्रकारे तत धाच । तर प्रकार, सतबीर ( हि स्त्रोदयो। उस तरहसे।