पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/१९५

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इन चार तत्वोंके सिवा पाँचवों तत्त्व नहीं है। (चार्वाक्) ! पग्निका लज्जा, वायुचा सन्तोष पोर पाहायवा गुण सवादो पूर्ण प्रजाचार्योंके मतमे सत्त्व दो प्रकारका है दुख । है-एक स्वतन्त्र और दूमरा अस्वतन्त्र । रामनुजोंके मतमे एक एक तत्व में पञ्चतत्त्वका उदयचन- चित्, पचित् पौर ईखर ये तोन तत्त्व है। पृथ्वो पासाथ वायु पनि जल पारपतपास्त्रवित नकुलीशाचाय शवोंके मतमे पति, जल पृथ्वो पाकाश वायु पनि पशु चोर पाश, ये तीन तत्त्व है। पनि जल पृथ्वो पाकाय वायु ज्योतिष में तत्त्वका विषय इस प्रकार लिखा है-तत्त्व वायु पग्नि जल पृथ्वी पासाथ पाँच प्रकारका है-पृथिवी, जल, अग्नि, वायु और पाकाच वायु पग्नि जल पृथ्वी भाकाय । इनके गुण-पस्थि, मांस, नख, त्वक, ग्लोम ये बहुतोको माल मरे कि, सास-प्रश्वास दिन-रात ५ पृथिवीके गुण है । शुक्र, योणित, मज्जा, मल, मूत्र, ये दोनों नासाम्धोंमें ममानरूपसे बहता है, किन्तु वह मम ५ जलसत्त्वके गुण है। निद्रा, सुधा, तृष्णा, क्लान्ति, मात्र है। खाम-प्रवास ज्वार भाटाको तरह चन्द्रसूर्य पौर आलस्य, ये ५ तेजस्तत्त्वक गुण हैं। धारण, चालन, क्षेपण, अन्याय ग्रसादिक पाकर्षणसे तथा तिधिक पनुसार यथा सोचन और प्रसारण ये ५ वायुतत्त्वके गुण है। काम, नियम, डा, पिङ्गला अर्थात् वाम किम्ब। दक्षिण नासापुटमें क्रोध, मोह, खज्जा और लोभ ये आकाशतरवके गुण हैं। प्रथमतः सूर्योदय के समय उदित होता है। पोछे एक एक प्राकाशसे वायुको, वायुसे पग्निको, अग्निसे जलको और नासिकामें ढाई दगड (अंग्रेजो एक घण्टा) तक स्थिर रह जलसे पृथिवीको उत्पत्ति हुई है। पृथिवी जलमें, जल कर दोनों नासारन्ध्रीम २४ बारसरमित हवा करता है। रवि और रवि वायुमें लय होता है। इन पाँच तत्वोंसे इस ढाई दगड समय में जब किसी मासिकामें सास. मम्पूर्ण सृष्टि हुई है। पृथिवीतत्त्वक ५ गुण है। जल के प्रवास बहता है, उस ममय पृथ्यो, जन्त, अग्नि, वाय चार गुण है। तेजके तोन गुण हैं। वायुके दो चोर और पाकाश इन पांच तत्वांका उदय होता है। पृथ्वीतत्त्व पाकाशमें एक गुण है । पृथिवी गन्धतमात्र है। जल रम- उदय हो कर ५० पल (२० मिनट) तक ठहरता है; इसो सन्मात्र, अग्नि रूपतन्मात्र, वायु स्पर्शतन्मात्र और आकाश तरह जलतत्व ५० पल (१६ मिनट), अग्नितत्त्व ३० पल शब्दतमात्र है। ये पाँच पञ्चतत्वक गुण हैं। (१२ मिनट ), वायुतत्त्व २० पल ( ८ मिनट ) पोर तत्वोंको प्रतियाँ - पृथिवीतत्त्व कठिन, जल शोतल, पालाशतत्त्व १० पल ( ४ मिनट ), उदय हो कर पव- अग्नि उष्ण, वायु चर और स्थिर है। खिति करता है। तत्त्वोंके स्थान-पृथ्वीतत्त्वका स्थान है नाभिका परि. प्रत्येक नासापुटमें वायु बहने के समय पछतावका देश, जलतत्वका स्थान है मस्तिष्क, पग्नितत्त्वका स्थान उदय हुआ करता है । पञ्चतत्वका विवरण निमलिखित है पित्त, वायुतत्त्वका स्थान है नाभिदेश और श्राकाश- उपायसे जाना जा मकता है। पहले तत्वको संख्याका सत्त्वका स्थान है मस्तक । निरूपण, दूसरे वामका सन्धान, सोसर ज्वरका चित्र, तत्वोंके हार-पृथ्वोतत्वका हार है मुख, जलतत्व का चौथे वायुको गति, पांचवें वर्ण, छठे तत्वका उपदेश- हार है लिङ्ग, अम्निको हार हैं नेत्र, वायु के हार हैं नामि- स्थान, मातवें साधुसे उपदेशग्रहण पोर पाठवें गतिका बाके दोनों छिद्र भोर पाकाशके हार हैं दोनों कान। सक्षण जानना चाहिये। प्रातःकालमें यन-पूर्वक वृक्षा- तत्त्वहारोको क्रियाएँ -पृथ्वीतत्वहारको किया है लिहारा दोनों मासापुट धारण कर तत्वादिका मान भोजन, जलहारको क्रिया है वमन, अग्निहारको क्रिया करना चाहिये। हे सष्टि, वायु हारको क्रिया है पापाय पौर पाकाश- ' पृथ्वीतत्त्वका लक्षण-नासाने मध्यस्खलमे अन्य हारको क्रिया है शब्द। किसी पावसे न लग कर खास चलेगा। यह खाम सखोकी गुप-प्रमोबस्वका गुरुभय, जसका लोम, बादशाहल पर्यन्त निकलता है। उस समय गले में