पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/२१४

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२१० तन्तुवाय करते, किन्त अधिकांश हो वुद्धराम नामक बिहुतवामी कहते हैं। बङ्गालके तातो बाने पीने के विषय में अन्यान्य किमी मोची ( चमार) के प्रति न धर्म को मानते हैं। नवशाख जातिके जैसे है। ये ममानमें न घराब पोते इम बुहराम मचोका मत बहुत कुछ नानकथा इके मत. हैं और न माम खाते हैं। परन्तु विहारके सांती मटा मे मिलता जाता है। उसके मतावलम्बो ताँतो आति- मद्यमांस वावहारमें लात है। शराब पोनके पाले ये दो भेद नहीं मानत है. किन्तु धर्माचरण के अनेक ताहमे चार बुन्द अपने इष्टदेवता काली या महादेवके नामसे वा अनठान किया करते हैं। बिहारके बन्दो, गोरीया पृथ्वी पर गिरा कर तब पीते हैं। धम राज प्रभृति जिन देवताको पूजा करते हैं उन्हें पहले ही कहा जा चुका है कि कपड़ा बुनमा ही कोट तातो ममियार, कारवर पादि अपने पूर्व पुरुषोंको सन्तुवायको उपजीविका है। इन लोगों का यह व्यवमाय पूजा करते हैं। श्रावण मामके शनि और मङ्गलवारको बहत दिनांसे चला पा रहा है। किन्तु विस्त यतो कपडा उनके उद्देश्यसे मेष बलिदान कर प्रेतपुरुषों को प्रमत्र कुछ मम्ता हो जाने के कारण प्राज कल इनका व्यव. करते हैं। हम काममें पुरोहितका प्रयोजन नहीं पड़ता साय विलुप्त हो गया है। बहुतसे तौलियों ने याध्य हो है। पुरुष ही स्वयं इस कार्य को करते हैं। कर अपना व्यवमाय छोड़ दिया है और वाणिज्य, ___पहले ही कहा जा चुका है, कि बालके तन्तुवाय कषि प्रभृतिमें लग गये हैं। प्राविना और मड़ियालियों के नवशाखके अन्तगत हैं, सुसरा उन पुरोहित ब्राह्मण प्रायः अंगने लषिकार्य अवलम्बन किया है। यह हो उनका पोरोहित्य करते हैं। करना नहीं पडे गा कि कहना अत्युक्ति नहीं होगा कि जिन्होंने अपनो वृत्ति तन्तुवायोंकी या कता कराने के लिये वे दो चार विशुद्ध परित्याग कर अन्यान्य व्यवसाय अवलम्बन किया है, ब्राह्मणों के निकट हैंग होने पर भी ब्राह्मणममाजमें । उनको अवस्था यथार्थ में उव्रत हो गई है, परन्तु जो पुरु- कुमोन ब्राह्मणवि मसान गिने जाते हैं। पानक्रमिक वस्त्रवयनत्ति अनुसरण करते आये हैं, _ बिहार में कई जगह तसिगा पुरोहित नहीं है। उनको उतिको बात तो दूर रहे, क्रमशः दुर्द शाही ओर जहाँ भी कहो वे नाच ब्राह्मणमि गिने जाते हैं। बढती जा रही है। हम व्यवमायमे वे केवन पेटी बहुत जगह जरो गालियाँ पुरहित नहीं हैं, वहाँ पोषत, कछ मञ्चय नहीं कर सकते हैं । एम विषय में एक इन्हीं लोगोंमसे कोई एक पुरोहित बन जाता है और प्रवाद रम तरह है--शिवजी के शिवदामको मृष्टि कर कभी कभी उनका भाजा हो पुगेहितका काम करता उमे वस्त्र बुननका आदेश किया। इस पर शिवदामने है। इस तरह के अनय कामों में साबित होता है कि उनमे सत्र, तन्तु इत्यादि मांगा। तब शिवजीने एक विहारके ताँतो नोच जाति के हैं और नोच जातिमे क्रमश: असुरको मार कर उसको ऑखोंसे कपामको गोटो सृष्टि हिन्दधर्म ग्रहण करते हुए ममाजमें प्रवेश होते हैं। की। उस गोटोसे कपासका बोज उत्पन हुआ। बाद उक्त यंणो के हिन्दी का अनुकरणमे बिहार के ताँती भी उस बीजसे कपास वृक्ष और क्रमशः उससे कई तैयार हुई, तह दिनों तक अगोच मानते हैं । जो कुछ हो कितने और विश्वकर्माने पा कर एक चरखा प्रस्तुत किया। दुर्गा- हो पवित्र व कयों न रहें ताभी हिन्दूममाज तथा कोई जौने स्वयं सुता कात दिया, परन्तु वे बोली कि पहला सब्राह्मण इनर्क हायका जल ग्रहण नहीं करते हैं। वस्त्र उन्हें हो देना पड़ेगा। इसके बाद विश्वकर्माने तन्तु कौन होतो उच्च और कोन नोच श्रेणीका है इसका निर्माण किया और देवतापने पा कर उसे पृथक पृथक पता उनके व्यवहत मण्ड़ ( लेई ) हारा हो चलता है। अङ्ग में अधिष्ठान किया। शिवदासने प्रथम वस्त्र बुन कर उच्च श्रेणी के तन्तुवाय कपड़ा बुननेके समय लावेकी गोरीको प्रदान किया। गौरो जब प्रसन्न हो कर शिवदास- लेई व्यवहार करता है। ये पनाजको लेईको अपवित्र को वर देनेको राजो हुई तो शिवदासने कहा कि मुझे और उच्छिष्ट समझते हैं, परन्तु मित्रेणोके ताँतो यही वर दीजिए कि मैं एक वस्त्र बुन कर छह मास अमाजको लई व्यवहार करते रसोसे बनें मेड़ो ताँतो तक उससे घर बैठे जीविकानिर्वाह कर गौरीने भी