पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/२२१

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तना अनुकरणसे बौडतन्त्रों की रचना हुई है। ईसाको सताब्दोमै भोटदेशम बोहतव पनुवादित हुए थे। किन्तु ८ वीं शताब्दीमे ११ वौं शताब्दोके भीतर बहुतसे बोइ. १० वीं शताब्दी में यूयेनत्याने नामाप्रकारके बोर तम्बोंका तिब्बतोय भाषामें अनुवाद हुमा था। ऐसी शास्त्रोंका उल्लेख करने पर भो तन्वयानका कोई उल्लेख दशामें मल बौदनन्च ईसाको ७वीं शताव्दोके पहले नहीं किया। जब वीं शताब्दी में मूलं प्रत्यका पनुः और उनके आदर्श हिन्दू-तन्त्र बौहतन्यसे भो पहले वाद हपा है, तब मानना पड़ेगा कि, मूलतव पवाय प्रकाशित हुए हैं. इममें मन्देह नहीं। बोमनागवतमें हो उमसे पहले रचे गये है। हाँ, यह हो सकता है, पर्थ स्कन्धके २य अध्यायमें लिखा है-दक्षयज्ञमें शिव- कि उस समय उनको मिति नहीं हुई होगो अथवा निन्दा सुन कर नन्दीके तिवनिन्दक दक्ष और उनके साधारणने उसको वंश मत मान कर प्राण नहीं किया ममर्थनकारी ब्राह्मणीको अभिसम्पात करने पर भृगुने होगा। दाक्षिणात्यमें बहुतोका विश्वास है कि पहेत- भी इस प्रकार अभिशाप दिया था- वादो शहराचार्य ने ही तांत्रिक मतका प्रचार किया था "भवव्रतधरा ये च ये च तान् समनुव्रताः। और इसी कारण वे मायावादो नामसे प्रसिहए। किन्तु पाषण्डिनस्ते भवन्तु सच्छास्त्रपरिपन्थिन: ॥ शहराचार्य को हम तन्त्रमतका प्रचारक किमो हासत में नष्टशौचा मृधियो जटामस्मास्थिधारिणः । भो नहीं मान सकते। शंकराचार्य देखो। विशन्तु शिवदीक्षायो यत्र दैव मुरालवम् ॥ ___ दक्षिणाचार-तत्रराजमें लिखा है-गौड़, केरल चौर ब्रह्मा च वामगं नैव यद् यूय परिनिन्दय । काश्मीर इन तीनों देश के लोग हो विजयात।किन्तु सेतुविधरण भाभत पाण्डमाधिनाः ॥" हम गौड़देशको हो प्रधानशात वा तांत्रिकों को जन्मभूमि जो महादेवका व्रत धारण करेंगे और जो उनके मान सकते है। तांत्रिकों में शैव, वैष्णव और मात्र अनुवर्ती होंगे. वे भत्शास्त्र के प्रतिकूलाचारी और पाखण्डी ये तोन संप्रदायभेद रहने पर भी कार्यतः सभो मात नाममे प्रसिद्ध हो। शोचाचारदोन पोर म ढबुद्धि व्यक्ति हैं। बौद्ध तांत्रिकोंको भो हम इस हिसाबसे शान कह. हो जटाभस्मधारो हो कर उस शिवदोक्षामें प्रवेश करें, नको वाध्य है। शाक देखो। जहाँ मुरासव ही देववत् आदरणीय है, तुम लोगोंने बङ्गालमें जिस प्रकार मातोंका प्राधान्य है, भारतमें शास्त्रों के मर्यादास्वरूप ब्रह्म, देव और ब्राह्मणोंको निन्दा और कहीं भी वैसा नहीं है। जिस समय बौद्धधर्म को है. इमलिये तुम लोगों को पाषगड़ाधित कहा है। होनप्रभ होता पा रहा था, उस समय गोडमें तांत्रिक पद्मपुराणके पाषण्डोत्पत्ति अध्यायमें लिखा है धर्म का प्रचार इभा था। इस समय जितने भी शिवोत लोगोंको भ्रष्ट करने के लिये हो शिवको दुहाई दे कर तव पाये जात', उनको रचनाप्रपालोको पर्यालोचना पाखण्डियांने अपना मत प्रकट किया है। उता भागः करनेसे सहज ही धारण होतो . कि, वे गौरदेशमें बत और पद्मपुराणमें जिस तरह पाषण्डीमतका उल्लेख रखे गये थे। तबमें जेसो पृथक वर्षमाला माहीत हो किया गया है, तन्वमें वही शिवोत उपदेश कहा गया है, वह भी संपूर्ण गौड़ वा वान्देशमें प्रचखित यो। है। गौड़ोय वैषणववर्ग के ग्रन्थों के पढ़मेसे माल म होता वरदान वर्णोद्वारतव आदि तमे वर्णमालाकी है कि, चैतन्यदेवने भो तान्धिकोको. पाषण्डीके नाममे जैसी लिखनप्रणाली लिखी. उसे भी हम बासा पच. सम्बोधन किया है । ऐमा होनेमे भागवत और पद्मपुराण रके सिवा अन्य कोई लिपि नहीं मान सकते। तवीत के रचनाकालमें जो तान्त्रिक मत प्रचारित हुआ था, वह लिपि अब सिर्फ बङ्गालमें हो प्रचलित है। इस लिपिको एक तरहसे ग्रहण किया जा मकता है। चीन-परिः हजार या बारह सौ वर्ष से ज्यादा पुरानो नहीं कर व्राजक फाहियान और यूयेनचुयाङ्गग्ने भारतमें पा कर सकते। इसलिये अब इसमें कोई सन्देमही रह यहाँके अनेक संप्रदायोंका विवरण लिखा है, किन्तु जाता कि, सत प्रकारको लिपिक व भो उसके बाद तांत्रिकोंके विषय में कुछ नहीं लिया।ी से गये। भोटदपने पतियका नाम बहुत प्रसित Vol. IX.35