अजन' पादुकासिदिबगनिर्विरानने ॥ पौरामतहरमे एक मास तक अनुष्ठान करें। प्रति अजरामरता देवी कामिनी सिद्धिहेतवे । दिन होम पोर ब्रामण भोजन कराना चाहिये। माम तपा मधुमती सिद्धिर्जायते नात्र संशयः । पर्ण होने पर साधक नियीय रात्रि में सतायुक्त हो कर देवचेती शतशत तस्य व भवन्ति हि । मालात् पजाकर बारा परमेश्वरीको पूजा करें और स्वर्ग मतं च पाताले स यत्र गन्तुमिच्छति ॥ महासिमिरमें अनन्यचित्त मन्त्र जपें। ऐसा करनेसे तत्रैव चेटिका सर्वा नयन्ति नात्र संशयः । साचात् मिद्धि होगी। "अथवापि वगरहे प्रयोगविधिमाचरेता रंभा वा घृताची वा यदि सप्यति धिकः ॥ नरमुण्ड' समानीय मारिस्यापि पार्वति। नदेव याति मा देवी नात्र काया विचारणा । गोमुण्डं साद्रभानीय भूमौ निःक्षिप्य यत्नतः । इच्छामृत्यभवेद्दे वि किमन्यत् कथयामि ते ॥" ततः पीठं समारोन्य देवी यात्वा तु साधकः॥ अथवा माधक विषाशी हो कर दियारात्र रष्टदेवी- पूजयेदर्द्धराबादौ आसवादि समन्वितः । का स्मरण करें और नाना प्राभरणोंमे मधित कुमागे जपेत्तु परया भका सहस्रावधि धधकः ॥ की पूजा करें। एम प्रकार एक माम करके. मामके पगई ततः साक्षात् भवेददेवि नात्र कार्या विचारणा ॥" दिनमें निशीथ के ममय निभ यतासे ललामण्डलके मध्य- अथवा माधकको चाहिये कि, प्रयोग विधिका अनु. गत होकर माप जा करें। मद्यमांम आदि विविध छान करें। माधक नरमुण्ड, मार्जार-मुण्ड पोर गो. उपचारों हारा विधिगत् पूजा करें. मस्र जप करें. मुण्डको यन व कला कर भूमि पर नि:क्षेप करें । उस इममें निश्चय ही मिडियागो। सिद्धि प्राप्त होनेके बाद पर पोट अारोपण करके देवाका ध्यान पार प रात्रिक देवोका मात्रात् होगा। इस तरह पादुकामिद्धि, ग्वन- समय पजा करें और प्रासादि युक्ता हो कर भक्रिके साथ मिडि, मधुमतो आदिको मिति निश्चयमे होगी। जिनको सहस्र जप करें। इतनेहासे देवी माक्षात दर्शन मिडि प्राप्त होता है मैकड़ों चोटका देवता पाटि उनक देवेगो और साधक भी मिशिलाभ करेंगे। वशीभूत हो जाते हैं तथा स्वर्ग मान्य और पातानमें जहाँ "अथवा वनितां म्यां गत्वा देवेशि यत्नतः । जानेको इच्छा हो, उमो जगर चेटिकाएँ उन्हें ले पीत्वा तदधर सम्यक कर्पूरेण तु पूर येत॥ जातो हैं । माधक यदि रम्भा, ताचो पादिका जप करें, तद्योनौ कुकुमश्चैव तस्कर्णे क्षौद्रमेव च । तो स्वय' वे उपस्थित होंगो और उनको इच्छामृत्य ततो भुक्त्वा तु तां कान्ता तन्मन्त्र परमेश्वरि । होगी। तत् कुकुमश्च तत्क्षौद्रमेकीकृत्य प्रयत्नतः। "अथवा गणिकां गत्वा पूजयेत् भक्तिभावतः। तदेव तिलकं कृत्वा निशीथे गतसाध्वसः ॥ तया सह जपेन्मन्त्र' पिवेदनिशमासवम॥ सहस्रन्तु जपेत मन्त्री ततः साक्षात् भवेत्तदा ।" निवेद्य परया भक्त्या पाययेत्ता प्रयत्नतः। अथवा साधक रमने योग्य स्त्रोमें रत हो उसके अध. एवं ज्ञात्वा विधानन्तु मासमेकं वरानने ॥ रामृतको पान कर पोछे कपूर पण करें। योनि पर प्रत्यहं होमयेद्विद्वान् निस्य स्याद्विप्रभोजनम् । कुङ्कुम और कर्ण में चौद्र प्रदान करें। पोछे यत्न के साथ मासपूर्णे साधकेन्द्रो निशीथे च लतायुतः । उन कुञ्जम आदिको एकत्र कर उससे सिलक करें। साक्षात् पूजाकमेणैव पूजयेत् परमेश्वरीम् । तिलक लगाकर निशीथ रात्रि में निर्भय हो हजार बार महातिमिरमध्यस्थो जपेग्मन्त्रमनन्यधीः । अप करें। ऐसा करनेसे देवो साक्षात् होगी। . तत्क्षणात् जायते सिद्धि सत्यं देवि वदामि ते।" "अथवापि शरीरोन्थरुधिरेण वगनने । पथवा साधक गषिकाके पास जा कर भक्तिपूर्वक यत्र निर्माण बनेन सत्र देषी समर्चयेत् ॥ पूजा करें। उमके साथ हजार बार मंत्र जपें और मयमासोपचारैव मर्कपुर्वरानने । अत्यन्त सापक उसको शव पिला कर खद भी । सहसनमात्रेण सियो भवति नाण्यथा ॥" ___Vol. 'IX. 61
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