पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/२७१

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भग ४६३५ है। सहायक कलकरके रहने के कारण यहां होनेसे वाति मालम पड़ती है। बफनाशक व पौर छोटो पादालत तथा कई एक सरकारी मकान है। कतिक भक्षण अथवा व्यायाम और रसामोचन करने १८५६ ई में यहाँ म्युनिसपालिटी स्थापित हुई है। सन्द्रा दूर होतो है। दूमरे दूसरे देशोंसे चावल तथा दूसरे प्रकारके पनाल, मन्द्रा सुखकी भार्या, निन्द्रा कन्या और प्रीति भगिनी रेशम, धातु. समाकू, रंग, जीनके कपड़े और औषधकी है। (शनार्थचि.) पामदनी तथा यहाँसे ज्वार, बाजर, चावल, तथा सन्द्रालु ( म. वि. ) तन्द्रा-चालुच। सहि हीति। पा समाकूको रफतनी होती है। शहरमें ताँब, लोह तथा ॥२॥५८ । पालस्ययुस, पालौ। मट्टी के बरतन, रेशम, कम्बल, सूता, कपड़े, जूते. देशी सन्ट्रि ( संखो .) सदिसौत्रो धातु निन् । बसायश्चरण शराब तथा लकड़ो को अच्छी अच्छो चीजें प्रस्तुत होतो ॥६६ । अल्पनिद्रा, उचाई, अँध। है। प्रवाद है कि, मोर मुहम्मद तालपुर शाहबानीने इस समिविपास ( म० पु.) एक प्रकारका सविपात- शहरको बसाया था, जिनको मृत्यु १८१३ में हुई। बर। इसमें उँचाई प्रधिकं पाती, ज्वर बैग चढ़ जाता, यहां एक प्रोषधालय और तीन स्कूल है। प्याम अधिक लगती जीभ कालो हो कर खरमरो हो तन्द्र (म. ली.) तन्द्र-धज । पतिच्छन्दः, एक प्रकारका जातो, दम फल जाता, दस्त अधिक होता, जलन नहीं छन्द । होतो और कानमें दर्द रहता है। यह ज्वर सिफ २५ तन्द्रयु ( म. वि. ) तन्ट्री पासस्य याति या-कु पृषो दिन तक रहता है। माधुः । पालस्य युक्त, अाम्लसो। तन्किा ( म. मो.) तन्द्रिरंव खार्थे का टाप च । तन्द्रवाप ( म०प०) तन्त्रवाप पृषो माधुः । सम्बवाय, समिता पल्पनिद्रा, ऊँचाई, ऊँध। सोती। तम्यवाय देखो। सन्द्रिता (सं० पु०) यदुवंशीय कनवक राजाके पुत्र । सन्द्रवाय (स० पु०) तन्त्रवाय पृषो. माधुः । तन्त्रवाय देखो।। (हरिवंश ६५.) तन्द्रा (म स्त्रो०) तत् ट्रातीति तत् द्रा-क, वा तन्द्र.प्रव-मन्द्रित--तन्त्रित देखो। सादे तन्द्र-घन तलष्टाप । १ निद्रावेश, उधाई. अंध। सन्द्रिता (सं. स्त्रो.) सन्द्रिनो भावः सन्द्रि-तल-टाप। २ पालस्य, सुस्तो। इसका मस्कत पर्याय --प्रमोला, निद्रालुता, बालम्य । सन्द्रो, तन्द्रि, तन्द्रिका और विषयाज्ञान है। सन्द्रिपाल ( म० पु. ) यदुवंशीय कनवक राजाके एक इसमें मनुष्यको व्याकुलता बहुत होतो, इन्द्रियोंका पुत्रका नाम। जान नहीं रह जाता, मुखसे बचन नहीं निकल सकता सन्द्री ( स्त्री) सन्द्रि-डीए । १ तन्द्रा, अघ। २ तथा बार बार जंभाई आतो रहता है। यही तन्द्राका भृकुटो, भौंह। प्रकष्ट लक्षण है। चरकम हितामें इसका लक्षण उस तब (सं. भव्य० ) सत्-न । वह नहीं। प्रकार लिखा है। मधुर, सिग्ध, गुरु और अन्नसेवन, तना (जि. पु० ) १ बुनाई में तानेका सूत जो लम्बाईम चिन्तन, भय शोक और व्याध्यानुषङ्ग (रोगाक्रान्त के लिये ताना जाता है। २ ऐसा पदार्थ जिस पर कोई चीज कफ वा प्रेरित होकर वृदयको पाश्रय करके दय सानो जाती है। स्थित ज्ञानको आच्छादन करती है, उससे सन्दा उपस्थित तत्रि ( स० स्त्री० ) तबयति मी बाहुलकात डिाच- होती है। इस तन्द्राकं उपस्थित होने पर दयमें कुल्या, पिठवन । २ काश्मोरको चन्द्रतल्या नदोका नाम । व्याकुन्नोभाव, वाक्य, चेष्टा और इन्द्रियोंको गुरुता, मन तविबन्धन ( म० को० ) सत् निबन्धन, कर्मधा०1.उमी- और बुद्धिको अप्रसनता उताब होती है। निद्रा चौर लिये। ' सन्द्रा इन दोनों में प्रमद यह है कि निद्राम जागरित सबिमित्त-मदर्थ, उसके लिये। होनेसे कान्ति मालम पड़ती और तन्शाने जागरित सबो (हि.सी.) १ एक प्रकारको जुसी। इससे