पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/२८४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

२९. समगमलुक पाखिन विजयादशमीने प्रथमा पर एक भाग मेना तमाला-एक नदी। या वर्षमान जिलेके अपराग्रामके लगता है जिममें पशुप्रदर्शनी भो कराई जाती है। गजा पश्चिममें मेरगड़ परगनामे निकल दक्षिण पूर्वको पोर साहब अपने हाथमे उन कपको गो जिनके पशु उत्तम बहसो हुई भोटरा ग्राम तक जाकर दामोदरमें तथा पुष्ट होते हैं रचिन पुरस्कार दे कर प्रजामगडला गिरो है। को उत्साहित करते हैं। मलुक-बङ्गदेयके मेदिनीपुर जिलेका एक उप विभाग। समगा ( तु. १०) पदक, तगमा । यह अला. २१५४ पोर २२ ३१ उ० एवं देगा०८७ तमगुन : हिं० पु० ) तमोगुण देखो। ३८ ओर ८८.११ पू०में अवस्थित है। यहाँ हिन्दू, समग ( म० ए०) मञ्चस्थान । मुसलमान, ईमाई पत्याटिका वास है। हिन्दुयोको समङ्गक ( स० पु. ) इन्द्रकोष. मञ्चक, मचान । मख्या मबसे अधिक है । इम उपविभागमें तमलुक, पाँच समचर ( हि पु० ) १ राक्षम, निशाचर । २ उल्ल, कुड़ा, मसलन्दपुर, सुताहाटा पोर नन्दिग्राम इन पाँच उलक. स्थानों में ५ पुलिस थाना है। १८८४ ई० को इसमें ४ फोज- तमत (म त्रि०) तम काइयाँ प्रतच । दृषित, प्य मा। टारो, २ दोवानो अदालत पोर १४७ पुलिसकर्मचारी समसमाना (विक्रि )१ अधि: गम्मो अथवा क्र'ध. तथा १३८० चोकोदार नियुक्त हुआ था। के कारण चेहरा लाल हो जाना २ चमना ढमकना। म उपविभागमें ११ बड़े बड़े जमींदार हैं । सम. समतमाहट ( हि स्त्रो०) तमतमाने का भाव । लुक शहर और केलोमाल ग्राम मबसे प्रसिद्ध स्थान है। तमता (म० स्त्रो०) १ समका भाव। २ अन्धकार, पहले तमलुकमें हिजलोके कलकरके प्रधान नमकको अंधेरा। आढ़त थो। समप्रभ (म० पु०) तम एव प्रभा अस्मिन् बहवो । नरक- पूर्व समयमें यहाँ बौद्धोंका एक विख्यात शार और भेद, एक नरकका नाम । पूर्व देशोय वाणिज्यका केन्द्रस्थल था। बहुत दिन हुए, समरंग (हिपु.) एक प्रकारका नोब । तमलुकमे बोधर्म के सभी नदर्शन हो विलुम हो गये तमर (मलो ) तमं राति राक। १ वङ्ग, रांगा । हैं. किन्तु अब भा तमलुकका कोई कोई हिन्दू परिवार २ शोषधातु, गौशा। बोडीको नाई मृतदेहको जमोनमें गाड़ता है। राजपूत- तमर (हिपु. ) अन्धकार, अंधेरा। कुलोद्भव मयग्वंश पहले तमलुकमें राज्य करते थे। समरसेरि -मन्द्रान प्रदेशके मालवा विभागका एक गिरि- पथ । यह अक्षा० ११.२८ ३० ओर ११३०४५५० मय रध्वज, तामध्वज, हंसध्वज, गरुडध्वज, और विद्या- धरराय तमलुककएन पांच राजानोव नाम विशेष प्रसिह तथा देशा० ७६४ ३०” और ७६५ १५ पू. के मध्य है। तमलुक के ४८वें राजः केशवराय कर नहीं देने के प्रवस्थित है। कालिकटमे मरिसर तकका गम्ता पम- घाट पर्वतके ऊपर हो कर तममेरिको ओर चला गया कारण १६४५ ई० में मुगल सम्राट्मे राज्यात हुए और है। कहवे अादिकी रफ्तनो के लिये यह पथ विशरूषप १६५४ ई. तक हरिरायन राज्यशासन किया। हरि- मे व्यवहत होता है। राय की मृत्यु के बाद उनके भाई और लड़के सिंहासनके १७७३ ईमें कालिकटको यात्राके ममय हैदर भलो लिये विवाद उपस्थित हुमा। बाद राज्य दो भागोम सथा मालवा पर चढ़ाई करनेके लिये सुलतान टोपू रसो विभक्त किया गया। १७०१९०में हरिरायके भाईका पधसे गये थे। वंशलोप होने पर पुन: तमलुक राज्य एकत्र हो कर समराज ( स० पु. ) तम एव राजते राजा टच । शर्करा नागयणराय और उनके उत्तराधिकारियों के साथ हमा। विशेष, एक प्रकारको खाँड़ । इमका दूसरा नाम शालक १७५७९ में मिर्जा दोदार-वैगमे बलपूर्वक मिसन है। रसका गुण-ज्वर, दाह, तपित्त और पित्तनाशक स्तगत कर १७१८१ तक अपने अधिकार में रक्सा । हमें मधमएकादपये तमा पुनः सिपासना