पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/२९१

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हरे और पत्रकोणी होते हैं। इसका पेड़ बहुत कोमन बाँध रखते । इससे थोड़ी बहुत झूधनी (नस) होता है। वास्तवमें यह वृक्ष किम देशका स्वभाव जात बनती है, पर कोई मैः सुरती बना कर खाता नहीं। है, इसका अभी तक निश्चय नहीं इमा। हाँ, इतना तो इममें गुड़ ( मोरा ) मिला कर पोनो तमाकू नहीं बनतो निश्चय हो चुका है कि मध्य वा दक्षिण अमेरिकाके किसो किन्तु चुम्ट के लिए इसका अधिक प्रचलन है। इस तमा- न किमो स्थानसे यह पृथिवो भरमें फैल गया है। कोई कूको चुरटमें कुछ मीठापन होनेसे मि० बेडेन पाउवेलने कोई कहते हैं, कि विषुवरेखा और उनका निकटवर्ती अनुमान किया था कि इसमें कुछ मधुका पंथ है । स्थान हो इमको प्रादि जन्मभूमि है। इस ममय य एमको युक्त प्रदेश कान्दाहागै पिलायतो पोर चिलामो पृथिवीक प्रायः सभी उष्ण प्रधान और नातिशोतोषण देशों में तमाकू कहते हैं। इन नामों मे अनुमान होता है, कि तमात कहत है।' यथेष्ट उत्पन्न होता है। भारतमें यह पहले पहन उक्त देशों में पाई थो। अमेरिका वा भार्जिनियाको तमाकू को साधारणत. बिलायती वा तुर्कों ( Turkish ) तमाकू मेक्सिको मश देशों में मिलती है। भारतवर्ष में समाकूको खेतो वा कालिफोनिया स्वभावजात पौध हैं। उद्भिद तत्वा. यथेष्ट होने पर भी पाजकन पनुस भानसे देखा गया है, नुमार यह, भाजि यानाका तमाकूमे बहुत कुछ स्वतन्त्र कि भारतवर्ष के वन्य प्रदेश में इस जातिको समाकू भई है। इस जातिको तमाकू ममसे पहले लेण्डमें लाई वन्यभावमे यथेष्ट उपजतो है। किन्तु रम तरह इस देश में गई थो. इमलिए इमको बिनायतो तमाक करते हैं। तुको वा विलायतो तमाकू होते कहीं भी नहीं देखो सर वालढर गले दम तम्बाकूको पमन्टू करते थे। गयो है। डा० वाटका कहना है, कि कलकत्त के निक पञ्जावके, वन-विभागके परिदर्शक डा. ट यार्ट टस्य २४ परगने के मध्यवर्ती स्थानों में, गाँवोंके भीतर, १८६५ में) ने मचसे पहले यह प्राविकार किया सड़क के किनारे, बॉम के निविड़ अङ्गालों में और गोले था, कि उत्तरभारतमें इस जातिको तमाक्को खेती होती है। उन्होंने लाहोर, मुलतान, होशियारपुर, दिलो, स्थान पर एम थेणोके तमाकूके पौधे अपने आप पैदा होते हैं। बहुत पुरानी दीवाली पर तथा हुगन्नी और प्रादि म्यानाम अन्सान्य प्रकारको तमाकूको तरह इम गङ्गाके बालकामय होपो में भी यह अपने आप पैदा होता थगीको तमाको भी बहत खेती होत दिग्वलाई थो। है। जिम टापूमं यह पौधा होता है, वहाँ दूमरा कोई ईरावतो प्रदेश उत्तरांशम पाङ्गिनामक स्थानम, चन्द्र- भी स्वभावजात मुणगुल्मादि नहीं जग मकते, परन्तु भागाको अववालिकाम, कृष्णगङ्गाके किनारे, बागान इतनी बात जरूरत है कि ये खेतवाले तमाकूके पौधोंकी प्रदेशमें, यहाँ तक कि लुदाक प्रदेशमें १०५०० फुट तरह परिपुष्ट नहीं होते। ये वर्षाकै अन्समें होते हैं, और ऊँचाई पर भी इसको खेती होतो है। बङ्गाल में. कोच. चैत वैशाखमें रन पर फूल लगते है। डा. वाटमे जिस विकार, रङ्गापुर, श्रीहट्ट, कछाड़, मनोपुर, प्रामाम आदि जातिक बन्यक्षको तमाकूके पौधेको वन्य अवस्या वत. स्थानों में भी हमको खेतो होता है। दक्षिणदेशमै गोदा लाई है, वह क्या चीज है, यह हम ठोक नहीं कह वगै जिसको "ला तमाकू” इसो जातिको तमाकूसे सकते । डाकरन इमको बहुलताके विषयमें जैमा विव- उत्पन है। यह अन्य प्रकारको समाकूको अपेक्षा कड़ो रण लिखा है, उमसे मालूम होता है, कि गाँवके लोग होने के कारण, तमाकूके व्यवसायो लोग ग्राहकों की इसे जरूर जानते और अवश्य हो किसी सरे नाममे रुचिक अनुसार इसको दूसरी तमाकूके साथ मिलाया पुकारते होंगे । परन्तु हम बहुत कोशिश करने पर भी कति है। तमाकूमे इसके पौधे मजबूत . है उसके विषय में कुछ निर्णय नहीं कर सके हैं। कोई और अधिकतासे उत्पन्न होते हैं। इसकी खेतो करते कि डा डाकरन मिस पौधेका उख किया करने में भी परिचम कम लगता है और इसको है, वह "निकोटिया टोबे कम नहीं, उस जातोय मिलावटी जो तमाकू-जमती है, उससे पैसा भो ज्यादा निकोटियाना लाम्बग्निफालिया" है, परन्तु डाकरने पाता। पजाबी सके पत्ते तोड कर गळी सवासको प्रस्वीकार किया।