पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/३५५

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ताजक "ल जो छवीला सब रंगमें रंगीला की पहलो शताब्दोके शेवभाग, नको जबरन मुमलमान बग चित्तका अडोला बहू' देवतोसे न्यारा है। बनाया गया था। बुखारके ताजक लम्बे पोर खूबसूरत माल गले सोहै नाक मोती सेत सोहै कान तथा उनक पाँखें पौर बाल भो स्वाह काले है। ये बड़े मोहै मन कुण्डल मुकुट सीस धारा है। डरपोक, लोभो. मिषयावादी पौर विश्वासघातक दुष्ट जन मारे सतजन रखवारे ताज चित हित वारे प्रेम प्रीति कर वारा है। कोई कोई कहते हैं, कि 'ताज' शब्दसे 'ताजक' नन्दजूका प्यारा जिन कंसको पछारा शब्दको उत्पत्ति हुई है। ताज शब्दका पयं-अम्बि- वह इन्दावनवारा कृष्ण साहब हमारा है ॥" पूजकका मुकुट। किन्तु साजस लोग मत व्याख्याको ताजक (फा.पु.)१ईरानों को एक जाति। बम्बाराके नहीं मानते। खानात और बदकसानमें ये अधिक देखे जाते हैं। ताजकलोग ज्यादातर खेतोबारो और रोजगारमें इनसे बहतसे खोकन, खिवा, चोनतातार और अफगा. दो लगे रहते हैं : सभ्यता और शिक्षाको पालोचनाये निस्तानमें रहते हैं। भो ये उदासोन नहीं हैं। इन्हीं लोगों के प्रयाबसे मध्य ताजक शब्दको उत्पत्तिका निर्णय करना अतीव एगियाका बुखारा मभ्यता और उबतिका केन्द्र स्थल हो कठिन है। उजबक, हजारा, अफगान, ब्रहुई और तुर्क गया है। बहुत दिनाम ये मानमिक उबति के लिए मचेष्ट शामित प्रदेशों में जो लोग स्थायोरूपमे रहते हैं, साधार है और भमभ्य विजेतामा हारा प्रपोड़ित होने पर भो पत: ताजक शब्द उन्हीं के लिए प्रयोग किया जाता है। ये उनको मभ्यताको शिक्षा देते रहे हैं। मध्य एशियाके समस्त प्रदेशों में तुरको, पुस्त, बहुई और बेलुचि भाषा अधिकांश महत् व्यक्ति ताजका है। बुखारा पोर व्यात होतो है, मतलब यह कि फारसी भो प्रचलित खिबाक प्रधान प्रधान व्यक्ति मम ताजक है। है । अफगानिस्तान और तुर्किस्तान में जिन अधिवामियां- ताजक और मत लोगोंमें शरोर-गत बहुत वैषम्य की जातिगत भाषा फारमो है, वे ताजक और पारसिवन हवन में आता है। भम्बरो माहवका कहना है कि पार- इन दोनों नामों से परिचित है। पारस्य देशमें ताजक सिक क्रोतदासियों के साथ मतं पुरुषों के विवाहको प्रथा और इलियत ये दो विपरोत पर्थबोधक संज्ञाएं प्रचलित प्रचलित रहनक कारण मत लोगांको प्राक्कति खर्व हो हैं। वहाँ सर्वत्र हो ताजकसे शहरवालोका बोध न हो गई है। कर कषकोका बोध होता है । बुखारमें यह जाति सत. ____ मध्य एशियाके बालक-वृष्वनिता सभी कविता और अफगानिस्तानम देहान और बेलुचिस्तान में देहबारके नामसे प्रसिद्ध है। काबुल नदोक निकटवर्ती ईरानो किम्मे पढ़ना पसन्द करते हैं । यहाँका साहित्य भी वंदे. लोगों को काबुली कहते हैं। सिस्तानके अधिकांस लोग गिक अलहारोंसे भग हुआ है । स्थानीय मुशाईसामने ताजक है। ये फूसको झोपड़ियों में रहते और ममा बहुतसे धार्मिक ग्रन्थ लिखे हैं। किन्तु मभी दुर्योध:- तथा पक्षी पकड़ कर जोवनधारण करते हैं। तुर्क साधारण लोग उन पुस्तकों को बिल्कुल ही नहीं समझ पाक्रमणके पहलेसे ही बदकसानमें ताजकोका वास पाते । ताजकोंके पुस्तक लिखित सभो दृष्टान्त विदेशीय था । यहाँके ईरानो पर्वत, उपत्यका पोर उद्यान साँचे में ढले हुए हैं। परिवेष्टित पलो में वास करते हैं। बदकसानके ताजक उबजक, तुक और खिरघिन लोग पत्यन्त सगोत- चिवल के लोगों को तरह ख बसूरत नहीं होते। इनको प्रिय हैं। गात ममय ये लोग मृदु रागिणोको पकड़ रखते पायाक उजबकों जैसी है। है। उजवकों की कवितापोंका मूलभाव अरबी अथवा बुखागके नाजक लोग सारणातीत कालसे वहाँ फासो लिया गया है, ऐमा जान पड़ता है। इनमें रात पाये है। ये पाने अन्य धर्मावलम्बी थे। जिरा- अपूर्वत्व तो विरलो हो कवितामें पाया जाता है।