पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/३७७

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में प्रवास-प्रतिबन्धको क्षमता अधिक है। धातुपोंमें | कर देना चाहिये। नहीं तो कोयलेको तार जल सबसे ज्यादा परिचालकता चाँदोमें होती है, उससे नोचे |. जायगा । सॉबिमें । भाटिनम, लोहा, सौसा भादिमें परिचालकता राजपथ, मकान आदि पालोकित करने के लिए दो. कम और प्रतिबन्धकता अधिक है। जिसमें प्रतिबन्धकता एक कोषमे काम नहीं चलता। बहुसख्खक कोषोंको अधिक है, उममेंसे ताडित प्रवाह चलता तो है पर जल्दो पंक्ति बार लगा कर उम बेटरीमे प्रवाह लिया जाता है। नहीं जा मकता। अधिक ममयमें थोड़ा ताड़ित प्रवा- बाहरम जो तार रहता है, उसको एक जगहसे काट कर हित होता है। और जिम्में प्रतिबन्धकता कम है, उन दो कोयले के टुडे लगा दिये जाते हैं। दोमा मुखोंक मेंसे थोड़ा समय में अधिक ताडित प्रवाहित होता है। बोच में सामान्य वायुके स्तरका व्यवधान रहता है। प्रबल इमके सिवा जो तार जितना लम्बा होगा, उसकी प्रति प्रवाह उस वायुस्तरको भेद कर चलता रहता है। बन्धकता भी उतनो हो अधिक होगी; जो जितना मोटा कोयलेका टुकड़ा और मध्यगत वायुस्तर उत्तप्त पौर होगा, उसको प्रतिबन्धकता उतनो हो कम होगो । साँब. प्रदोज हो कर तेज रोशनी दता है। के मोटे और छोटे तारमें अथवा स्थल दण्ड में प्रति पाजकल ऐसे स्थल पर डाइनामो-जनित प्रवास बन्धकता बहुत कम होता है। व्यवहत होता है। एक छोटासा डाइनामो बहुतसे ताडितप्रवाह कोषसे निकल कर परिचासक रास्तासे कोषोंका काम देता है। चलता है। बीच में दो चार मार्ग मिलने पर थोड़ा बहुत (२) ताड़ितप्रवाहके मार्ग में थोडासा पानो रक्खो, सबमें जाता है। जिस मार्ग में प्रतिबन्धकता अधिक अर्थात् कोषक दोनों प्रान्तोस पाये हुए दोनों तारीका है, उम मार्ग में प्रवाह क्षोण हो जाता है ; और जिस मुह पानोम डूबो दो। पानीमें दो-चार बुंद गन्धक- मार्ग में प्रतिबन्धकता कम है, उसमें प्रबल हो जाता है। द्रावक छोड. दो। प्रवाह जितना चलेगा, पानो उतना हो विनिष्ट होता जायगा। जो तार जस्त मे मिला इमा चौर मागं जहाँ पर जा कर एकत्र होते हैं, ताड़ित है, उसके मुंह पर हाइड्रोजन पोर जो ताँबे या प्राटिनम- प्रवाह भी वहां जा कर मिलता है। इस विषयमें नदी से मंलग्न है, उसमें अम्लजन उहत होगा। जलके सिवा के माथ ताड़ित प्रवाहका पूरा सादृश्य है । अन्य पदार्य में भी इस तरहका विश्लेषण हो सकता है। प्रवाहके धर्म । -प्रवाहके विविध धौमसे तोन हो ____साधारणतः द्रावक पद थ, नार पदार्थ तथा द्रावक प्रधान और हम लोगों के बहुत काममें पाते हैं- और क्षारके समवायसे उत्पन लावणिक पदार्थ मात्र ही (१) जिस धातु के भीतर प्रवाह चलता है, वह गरम यदि सरल अवस्था में हो तो ताडित प्रवाहके द्वारा उनमें होजाती है। कोषके भीतर कितने जस्तकाचय हमा, रामायनिक विशेषण हुमा करता है। किसी किसो वाय. वह देख कर कुल कितना ताप नत्पब हुमा, मका वीय और कठिन पदार्थ में भी विशेषण होता है, यह हिसाब लगाया जा सकता है। प्रवारके मार्गमें विशेष लक्षित हुआ है। लावणिक पदार्थ का एक भाग जहाँ प्रतिबन्धकता अधिक है, वहाँ ताप भी अधिक धातुमय और अन्य भाग उपधातुमय (Non-metallic) उत्पन होता है। प्राटिनम् धातुमें परिचालकता कम होता है, धातुभाग जस्ते से सलम्ब तारके मुखमें पोर है, प्राटिनमके पतले तारमें प्रवाह चलानेसे वह तापसे उपधातु भाग ताम्रलग्न तारक मुखमें मक्षित होता है। बहोत हो जाता है। कांच वत्त लके भीतर प्राटिनम् बहुससे मूल पदार्थ जो अन्य रामायनिक उपायसे यौगिक या कोयलेका बारीक तार लगा कर साधारण ताड़ित के भीतरसे बाहर निकाला नहीं जा सका है, वह इस प्रदोष (बिजली बत्ती ) बनाये जाते हैं। उस तारमें उपायसे विश्व षित और पाविष्क्षत हुमा है । १८वीं प्रवाह चलनेसे वह उत्पात्र हो कर प्रकाश देने लगता है। यताब्दो प्रारम्भमें सर हमफ्रो डेभोमे इसी तरह पटासि- यदि कोयनेका तार दिया जाय तो, वसको वायुशून्ध यम (पत्रक), सोडियम (सर्जिक), कालसियम् (खटिक) Vol. Ix.94