पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/३८३

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ताड़ित. प्रतिविम्ब कटा हुआ सा जान पड़ता है। स्फ लिङ्गके काठिन्यविषयमें इस्पात भो इसमे पराजित होता है। मध्य ताडितका आन्दोलन हो इस प्रकार दोखानेका वह पाकाश जड़पदाथोंके पत्रोंके स्तम्ततः कम्पन कारण है। और पान्दोलनजात धक्कोको लहरोंकी बहन करता है। ताडिसकी तरंगे ।-परिचालकके विभिन्न अंगों में ये तरङ्ग आकाशके भीतरसे सेकेण्ड में एक लाख छियाको ताडितको उद्दति विभिन्न नहीं हो मकतो। परिचाल- मोल तक चलतो है। कका यही धर्म है । इस स्वधम के प्रभावसे परिचालकमें मम्भवतः ताड़ितप्रवाह हो चतुःपाखस्थ पाकाशमें ताडितप्रवाह पैदा होता है । प्रताह फनमे परिचान # ___इम चाम्बकाधम को देता है। माइकेल फारादेने, चुम्ब. गरम हो जाता है और उसका पार्वधता समग्र प्रदेश के माथ पालोकके कुछ मम्बन्धोका आविष्कार किया चौम्बक धर्माकान्त भोता है। प्रवाह मिफ परिचानक के था । आलोक भाकाशका स्पन्दन मात्र है। म स्पन्द- भोतर हो जाता हो, ऐमा नहीं। हो, अपरिचालकके नको निर्दिष्ट एक दिया है। नौम्बक प्रदेश इस स्पन्द: भीतर प्रवाह सहजमें आता नहीं; जब जाप्ता है, तब एक नकी दिशाको घुमा मकता है। इससे तथा पन्यान्य कारगम यह अनुमित होता है, कि चौम्बकधर्म पाका. उग्र प्रचगड धक्का दे कर अपरिचालकको फाड कर जाता शका हो धम है। है। धक्का भो एक तरफ नहीं लगता; एक धक्का लगनमे चाम्बक-धर्म यदि आकाशका हो धर्म हो, तो जिस हो माधारगातः कुछ देर तक उमका इतस्तत: अान्दोलन स्थानमें ताड़ितप्रवाह इकतरफा न बह कर बार बार चलता है। हम आन्दोलन में रहते हुए स्फ लिङ्गका आन्दोलित हो रहा है, वहाँ इस पाकाशम भी एक अन्तर्बान और मवत्र उड़,ति ममान हो जातो हैं । परि अन्दोलन उपस्थित होगा। जड़ पदार्थ के अणुओं के चालक और अपरिचानकम यही प्रभेद है। परिचालक , कम्पनर्म तरङ्ग उत्पन्न हो कर जम चारा ओर आका- भीतरसे ही प्रवाह जाता है, ऐमा मब ममय नहीं शमें व्याप्त होतों और आलोक उत्पन्न करतो है, ताड़ि- कहा जा मकता । परिचानक लिफ प्रवाह का रास्ता तका आन्दोलनसे उसो प्रकार तरङ्ग उत्पब हो कर दिखला देता है। ताड़ित-स्रोत उम के ऊपरमे चालता है। नाग और प्राकाशमें प्रसारित होती हैं । इन तरङ्गों को शरोरके भीतर घुमने की कोशिश करता है और घुस । ताड़ितार्मि वा चोम्बकोमि कह सकते हैं । वस्तुत: किसो नेके बाद तापरूपमें परिणत होता है। प्रवाह जिस स्थान पर ताडितको एक तरङ्ग उत्पन्न होने पर उसके रास्ते से चलता है, उमक चारों तरफ चौम्बक प्रदेश है। साथ चुम्बकत्वको भी तरङ्ग उत्पन्न होतो है, दोनों सहः चारों तरफका प्रदेश बिल्क ल वायुशून्य होने पर भी वर्ती वा सहचरो हैं, क्योंकि जहाँ ताडितका प्रवाह उसका चुम्बकत्व नष्ट नहीं होना । अनुमान होता है, कि होता है, उसके पाख महो चुम्बकत्वका आविर्भाव होता शून्य स्थानमें भी ऐसे पदार्थ विद्यमान हैं जिनसे उक्त ताडितके प्रवाहको तुलना स्रोतके साथ और चुम्ब. चुम्बकत्व मौजूद रहता है। वास्तवमै जिम स्थानको शून्य को तलना भावतं वा घुर्गो माथ हो सकती है। कहते हैं, वह बिल्कु ल शून्य नहीं है। आलोकविज्ञान तथा इस प्रवाहक साथ घुर्णीका अविच्छेद्य सम्बन्ध देख. 'कहता है, कि शून्य स्थानमें भो पदाथ विशेष ओतप्रोत नमें पाता है। मनस्वी क्लार्क मक्सवेलक मनमें ऐसा प्रश्न को भावसे व्याल है । उक्त पदार्थ का अंग्रेजामें ईथर कहते । उपस्थित हुआ कि जिस आकाशमै पालोक विकशित है। हिन्दों में पाकाश वा आसमान कहेंगे। यहां प्राका होता है, उसी आकाशमै ताडितको तरङ्ग क्यों न शका अर्थ शून्च नहीं, बल्कि शून्यव्यापी पदार्थ विशेष चलेंगी? यदि ऐसा ही हो पर्थात् यदि एक पाक है। यह थर वा प्राकाश सूक्ष्म, अदृश्य और अनुभवसे दोनों प्रकारको लहरों को वहन करे, तो पालोक और प्रतीत होने पर भी अत्यन्त कठिन स्थितिस्थापक पदार्थ ताडितको तरङ्ग दोनों हो एक ही वेगसे आकाशपथ वाथुकण और लोष्ट्रखइसे लगा कर ग्रह नक्षत्र तक इसके पर धावित होगा। विविध युखियों हारा मक्सयलन मोतरसे बिना वापा ले जाते हैं, पाव है, तो भो अपने मतका समर्थन किया था।