पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/४२६

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१२५ तापमानयन्त्र फकोरमें बदलने के लिए फके पासे १२ घटागो. होते हैं पसलिए वे साधारण वावहारमें नौ पाते। जो बाको बचे उसे ! मे गुना करो। किन्तु यदि अच्छी तरह बना मकै, तो पोर तापमानोंको २१२फ- (२१२-३२) - १८०x१-८०र. अपेक्षा सूक्ष्मतम रूपसे तापक्रम जाना जा मकता है। दूसरा नियम । मको फया रमें परिणत करना हो रनको छोड़ कर एक भेदसूचक तापमान-यन्न होता तो- है। किसी एक जगहके तापक्रममें और उसके निकटवर्ती फ-3xe+३२. स्थानके तापक्रममें कितना पन्तर है, यह जानने के लिए इमका वावहार होता है। तीसरा नियम । रको स या फमें बदलना हो सो- दो वतुं लाकार नलियाँ वायु-हारा पूर्ण पोर नोचेक स- +५ हिस्से में एक वक्र नलो-हारा जुड़ी रहता है। यह वक्र फ- रxe+३२. नम्तो किमी रंगोन तरल पदार्थ से पूर्ण रहता है। मोचे. रको समें लाने लिये मे गंगा किया जाता है; को इस वक्र नलीका तरल पदार्थ दोनों ओर एक सम. वथा..८०-८०.४५=१००'म । तनमें रहता है। अब यदि एक पोरका वतु लाकार मुख रको फ बनामके लिए: के माथ गुणा करो और दूमरी पोरके व लाकार मुखको अपेक्षा अधिक उत्तप्त हो गुणनफलमें ३२ जोरदो। तो उस प्रो.को वायुके विस्तारकै कारण पेषण अधिक- यथा-८०-८०+:-१८० + ३२-२१२ फ। तर होगा । सुतरा एक पोरको नलीका तरल पदार्थ उस पारदको छोड़ कर स्पिरिट और वायुके भो तापमान पेषणा कारण दूमरेमें चढ़ जायगा और इसी तरह यदि एषा करते है। एक पिरिटका तापमान (.ileohol- टूमगे मोर अधिक उत्तल हो तो प्रथम नलोमें यही क्रिया thermometer ) अत्यन्त मिनतम ताप बता देखने में आयेगो । मचमुच इस तरहके यन्त्र हारा साप- देता है क्योंकि पलकोरम कभी जमता नहीं। क्रमका सूक्ष्क्षसे सूक्ष्म भेद जाना जा सकता है। लेकिन पारा धनीभूतविन्दुके ४० अंश नोचे जम जाता यद्यपि परिका तापमानयन्त्र अच्छी तरह और जहाँ है। इसलिए इससे भी नीचेका तापक्रम जानने के लिए तक उत्कृष्ट को सके वहाँ तक उत्कष्ट ताके साथ बनाया पलकोहल हो काममें लाया जाता है। पर इस प्रकारके जाता है, तथापि समय समय पर उसमें भी संशोधनको सापमामसे पधिकतर सापकम नहीं जाना जाता: पावशाकता होती है। क्योंकि शांशिक तापमानके ७८ अंश गर्मों लगते हो । शन्यविन्दू-परिवर्तन-धनोभावबिन्दु भो.महीनेमें पलकोहल उबलने लगता है। तापक्रमको विशेष बारो शून्यविन्दुसे १०-उठ जाता है। मभो तापमानोंको कियाँ जानने के लिये वायुका तापमान काममें लाया __विशेषतः पापात निर्मित समस्त सापमानोंको यहो दश जाता है। इसे सय्यार करनेके लिए. तापमानका वतुला है। इसका कारण यह है कि तापमानयन्त्रमें पारद भर कार भाग पौर दण्डाकार भागका कुछ अंश बायुसे पूर्ण देने के बाद वर्तलाकार भाग सहसा शीतल हो कर संकु- करनेके बाद नलका वाको हिस्सा किसो तरल पदार्थ के चित होता है, किन्तु वहीं संकोचनको चरमसीमा नहीं हारा पूर्ण कर दिया जाता है। नमोका मुख उस पदार्थ । हो जातो, उस समय भी थोड़ा थोड़ा संकुचित होता मजित रहता है। उमो तरल पदार्थ का प्रसरण और रहता है एवं इमोलिए उसका पारद मलमें उठता समोचन हो तापमानको शासषिका बोध कराता है। जाता है। किन्तु यह संकोचनति ग्रामया कम पवणा हो जब यह तापमान व्यवहार में पाया जाता है, तो जातो है। और इसीलिए पापात-निर्मित ताप. सवसका व साकार भाग अपरको पोर रहता है। मानों में यह विशेषरूपसे लक्षित होता है। मुतरी ताप- वायुके तापमान कई प्रकारके होते है. किन्तु उनको मानमें तापक्रम पहले जहां तक निर्धारित था, उसको निर्माण विधि पसल बम और अवयव पतिपय दोर्ष पपेक्षा तनिक अपर अपर उठने लगेगा। इस दोषक