पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/४५४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

४५. तामूपादी-तामयोग "जलावन्तु ताम्रस्त तदभावे मृतोहितम् ।" (भावप्र.) १ अोठ वृक्ष, टेरा, ढेरा। (वि०) २ रतफलयुक्त २ तामणामन, तांबे की चद्दरका एक टुकड़ा जिम वृक्ष मात्र, जिसमें लाल फन लगते हों। (को०) साघ्र' पर प्राचीन काल में अत्तर खुदवा कर भूमि इत्यादि का फन कर्मधा । ३ गत फल । दानपत्र लिवत । ताम फनक ( म क्लो. ) ताम्रनिर्मित फलक मध्यलो. साम्रान कुल लेलय शासनानि बहनि च। कम धा। ताम्रनिर्मित पट्ट, तॉवको चहरका एक एनेभ्यो दत्तवान् पूर्व कलौ बबालसेनक: " ट,कड़ा। तामपट्ट देखो। (हरिमिश्र कारिका ) ताम मुख (स० वि०) ताम, मखौं यस्य बहुबो० । अरुण नामगाटा । म स्त्रो.) ईमपदो लता. लाल गका बदन, जिमका मुख लाल हो । नजाल । ताम मूला (म० स्त्री०) नाम मूल यस्याः बहुव्री० अजा- तमपष्य म० ए० ) ताम्रवर्ण पुष्य यम्य बहतो! रक- देराकतिगणत्वात् टाप । १ दुगनभा, जबामा, धमासा । जन पुष्पवत, लाल लका के चकार । इमके मम्कन २ लज्जाल, छुईमुई। ३ कच्छ रा वृक्ष, किर्वोच, कौंच । पर्याय--कोविटार, चमरिक. कहान. यगपत्रक कुगडलो. ४ मनिष्ठा, मजोठ । ५ रक्तमूलक वृक्षमात्र, वह वृक्ष म्मन्तक और म्पल्पकेशगे। २ भूमिरम्पक । दि०) जिसको जड़ लास हो। (क्लो ) ताम्र मून कम धा । 3 रकपुष्पयुक्त मात्र, जिम्में लाल फल लगत हो । (क्लो' ५ रक्तमूल, लाल जड़। ताम्र १ष्य कम धा० । ४ रजा पुष्प, लान्न फन्न। ताम्रमृग ( स० पु० ) ताम्र: रक्तवण : मृगः कम धा० । नामयिका (म. स्त्री०) ताम्रवर्ण पुष्य यम्याः बहुव्री। लोहितवर्ग हरिण, लाल रंग का हिरन। कप, टापि अतहत्व । रक्तत्रित, लालफ नका निमोथ। ताम्रयोग (म'. पु०) ताम्रम्य योगः, ६-तत् । चक्रदत्तोता ताम्रपथ्यो (म' स्त्रो०। ताम्रपुष्य यस्याः बहवो. स्त्रियां औषधविशेष. एक देशो टवा। प्रस्तुत प्रणालो-पारद १ डोष । २ धातको पुष्प, धवका पेड़। पर्याय - धातु, मासा पोर १ मामा गन्धक, इनका यथाविधि शोधन और पुष्पो, कुम्नग, सभिक्षा, बहुपुष्पो और वहिज्वाला । मदन करके कज्जनी बनावें, पीछे उस कज्जलीको एक ( भावप्र. ) दृढ़ और न तन मृत्पात्र में रख कर, उसमें चौलाईको २ पाटनावृत्त, पाढर का पंट। ३ नागरग वृक्ष, जडका चर्ण २ मामा डालें, बाद में उमको १५ मामे नारङ्गोका पेड । ४ श्यामात्रिवित् । कण्टकवेध-योग्य नेपालदेशीय साम्रपत्रको अमरोलीके नाम्रप्रयाग--प्रोपविशेष, एक प्रकारको दवा। दमको रममें शोधित करके पात्रम्थ औषध पर ढक दें तथा लेई प्रस्तुतप्रणालो ८ तोले परिमित ताम्रपत्रको दग्ध कर बना कर ताम्रपत्रको मृत्तिका पात्रके माथ इस तरह यथाक्रमम आकन्दके गोंद मम्हान, रस, गोक्षुरके जोड़ दें कि जिसमे उसको भेद कर नोचे बाल आदि र पार मोजके गौंदसे तीन चार प्रक्षिप्त कर उमे न घुमने पावे। फिर उम पात्रको बाल से भर देवें । गोन करना पड़ता है। बाद पाग ४ तोला और गन्धक तत्पश्चात् उस पात्रके नीचे एक घण्टे तक भाग जलावें, ८ तोला इन दोनांको कज्जलो करते हैं और कज्जल के फिर पात्रको उतार लें। ग्रहभागको जम्बोरो नोबके रममें इ.वो कर उसे पूर्वोक्त शीतल होने पर पात्रके उपरिस्थित बाल को निकाल ताम्रपान निन्न करते हैं। बाद अन्धमूषामं रुह कर ५ फुट ल और निमस्थ ताम पात्र, कज्जलो प्रादिको उठा कर देना चाहिये। एकत्र खलमें घोट ले। इस प्रांतादन २ रत्तो मधु और घृतके साथ सेवन उता पेषितचूण १ रत्तो, त्रिफलाचूर्ण, विकट चूर्ण करना चाहिये। इससे सब प्रकारके भगन्दर और क्षत और विडङ्गचूर्ण एक एक रत्तो, इनको एकत्र मिला नाग हो जाते हैं। ( भैषज्याना० भगन्दराधिकार ) कर धो और मधुके साथ चाट कर जपरसे ठण्डा पानी ताम्रफल (सं० पु.) ताम' रतवर्ष फल यस्य बहुव्री०। पीना चाहिये । उक्त द्रव्यांको १ रत्तोसे ले कर १२ रत्तो