पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/४७९

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तलं धागे यथा-१चञ्चत्पुट, २ चाचपुट, ३ षपितापुत्रक, ४ उत्- तेरह मावापोंका होता है, इसमें सोन थपको लगा कर घटक, ५ मविपात, ६ कङ्कण, ७ कोकिलारव, ८ एक बार विराम होता है। गजकोलाहल, ८ रङ्गविद्याधर, १० प्राचीप्रिय, ११ पार्वती- ठेका- लोचन, १२ राजचूड़ामणि, १३ जयश्री, १४ वादिकाकुल, + । । । । । १५ कन्दर्प, १६ नलकुवर, १ . दर्पणा, १८ रतिलीन, १८ धागे कंटे घेने धागे धागे मोक्षपति, २० पोरङ्ग, २१ मि हविक्रम, २२ टीपक, २३ मलिकामोदक, २४ गजलील, चर्चगे, २६ कुरुक, २७ विज- यानन्द, २८ वोगविक्रम, २८ टेनिक ३० रङ्गाभरण, ३१ नं : श्रीकोर्ति, ३२ वनमाली. ३३ चतुर्मुख, ३४ सिहनन्दन, पाड़ा चौताला-यह वर्तमानमें प्रचलित है। इसमें ३५ नन्दोश, ३६ चन्द्रविम्ब, ३७ हितोयक, २८ जयमङ्गल, माताएं होती हैं : चार ताल पौर तीन खाली। २८ गन्धर्व, ४० मकरन्द, ४१ त्रिभङ्गि, ४२ रतिताल, ४३ ठेका- वसन्त, ४४ जगझम्य, ४५ गारुणि, ४६ कविशेखर, ४७ घोष, ४८ हरवलभ, ४८ भैरव, ५० गतप्रत्यागत, ५१ धागे धादा दिस्ता कत्ति नाधा बेकेट धा दिस्ता :: मलतालो, ५२ भैरवमस्तक, ५३ मरस्वतीकण्ठाभरण, इसका दूसरा नाम छोटा चौताला है। ५४ कोड़ा, ५५ निःसारु, ५६ मुक्तावलो, ५७ रङ्गराज, ५८ पाड़ा ठेका-यह ताल प्रचलित है इसमें मात्राए भरतानन्द, ५८ अादिताल के और ६ सम्पर्कष्टाक मो हैं; तीन ताल और एक खालो छोड़ना पड़ता है। प्रकार १२० देशी ताल बताये गये हैं। भिन्न भिन्न मतके ठेका- प्राचीन ग्रन्थों में भिन्न भिन्न प्रकारके तालों के नाम और + । । + १ । ।+ ।+ संख्याओं में भो पार्थक्य पाया जाता है। इन तान्नों में से आजकल बहुत हो थोड़े प्रचलित हैं। किन्तु उनमें आदिताल-(।) मात्रा आदिक नियम नहीं मिलते । उनके नाम और इसमें एक लघुतान होता है। मात्राका विवरण नीचे प्रकारादिक्रमसे दिया जाता है। उड़ावान्-(। ) चिह्नोंका परिचय इस प्रकार है-इस्खमात्राका चित्र उत्सव-(.) (1!, दीघ्रमात्राका चिन ( ॥ ), नतका चित्र (m), उदीक्षण-() द्रुतका चिह्न (). अनुद्रुतका चिह्न (+), विराम उघड-(MR) चित्र (,), विभिन्नताका चिह्न १।२ इत्यादि। उहण्ड-।(1)-२।(।) . अदताली-१।।।।)-२ ) एक ताली वा एकतालिका- अनङ्गताल--१(1 ।।।। 1)- २ । ( ।।।) १। रामा (*), २। चन्द्रिका (1,॥), ३। प्रमिता अन्तरकोड़ा-(१) (11), ४. विपुला--(x ), ५(), अभङ्गः-१॥ ( ॥m)-२ (।।।।) अभिनन्द-(।। ॥) प्रचलित एकतालमें ६ दोघ मात्रएं पाई जाती है। पर्जनताल-(।।.. ) यह बारह मावाका ताल है। कोई कोई इसकी सोन भष्टताली-(x x।) और कोई चार पदोमें विभत करते हैं। जो तीन पदोंमें असम ( कङ्गाल)- ॥) विभक्त करते हैं, वे कहते है कि इसमें खाम्लो ताल नहीं पाड़ खेमटा-यह अब भो प्रचलित है, इसमें १२ है। पौर जो चार पदोम विभक्त करते है, वे इसमें खालो मावाएं होती है। किसो विसोके मतसे, यह तानसाई , ऐसा बताते हैं।