पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/४८

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४४ टीपू सुलतान टीपू भी महोत्साहमे उनके प्रतिरोध विशेष यत्नवान् इसके बाद ४५ वर्ष तक विशेष काम गड़बड़ी नहीं हुए। उन्होंने अपने प्रधान प्रधान सेनापगियों को राज्य हुई। टोपूने राज्यको उवाति और प्रजाकी मुखमरिक पोर मन्मानको रक्षाक लिये उत्तेजित करके उपस्थित लिये अनेक प्रयत्न किया था। इस समय सहीने नाना वीरव्रतमें नियुक्त किया। देशों से बहुत अर्थ व्यय करके प्रमस्थ फारसी, सस्वात इधर माई कनवालिसने असीम सारससे नन्दोदर्ग, और दाक्षिणात्यकी स्थानीय भागमें लिखित बहुत प्रकार- सवर्ण दुर्ग, रायकोट आदि दुर्गाको जय किया। को हस्तलिपि संग्रह को थी। १७८२ ई०के जनवरी महोनिमें कर्म वालिम निजाम १७८८ में निजाम तथा महाराष्ट्रके सेनापति- और महाराष्ट्रसेना के साथ मिन्ने और ५ फरवरीको औरण गण गुणभावसे टोपूके माथ षड्यन्त्र करने लगे। टीपूने पत्तनमें उपस्थित हुए। ६ फरवगैको बम्बईके ग्रेज भी पूर्वोक्त सन्धिसे अपना प्रत्यम अपमान समझा था। मेनापति जनरल पामरक्रम्बोने पा कर उनका साथ अब तक वे मौका दूंढ़ रहे थे, किन्तु अब उक्त मनापति- दिया। इतने दिन बाद टोपू विचलित हुए , उनके यों की प्ररोचनामे उत्तेजित हो गये। . . 'पतान कहा था "टोपू राज्यको रक्षा न कर सकेगा।" अंग्रेजों को इस षड्यन्त्रका हाल मालम हो गया। अब वह वात रमको याद पाई। इस समय टोपून १७८८. १७ मई को लार्ड मर्निटन गवर्नर जन- अपने एक मित्र का था कि, “म अग्रेजोको देख रल हो कर पाये। टो। सुलतानको गतिविधि पर कर नहीं डरते, पर मारी होनहारको मोच कर हमें उनको पहले दृष्टि पड़ी। उस समय य रं'पमें ग्रेज डर लगता है।" और फरासियों में भोरतर युद्ध हो रहा था। इसलिये २४ फरवरीको सुलतान लेफ.टेनाण्ट चामारम् टपू भारतमें पायो नई फरासोसो सेनाको मान ही नामक एक बन्दी अंग्रेज-मेमापतिके जरिये समिका हस्तगत करने लगे । फरामोमो कर्मचाग्गिण टोपूको प्रस्ताव करा कर लार्ड कर्नवालिमके पास भेजा । परम्ने देशीय सेनाको अच्छी तरह युधको शिक्षा देने लगे। बड़े लोट मन्धिके प्रस्ताव पर महमत न हुए। अन्तम टोपून अपने नो-सेनादलको माहाय्यार्थ मरिचशहरम कोड़गके गजाका सुभीता सोच कर महमत हुए । कौड़ग फरासोसो शामनकर्ता जमरन्त मलारटिकको ३०,००० के राजाने जमरम्म पावर कम्बोको काफी सहायता दो सेनाके लिये लिख भेगा। हैद्राबादमें फरामोसी सेना- थी। तथा वे टोपूको प्रतिनिधामा छत्तिसे भी पत्यन्त नायक मूमो रेमगड १५.०० मेना ले कर ठहरे हुए थे, डरत थे । कुछ भी हो, उस समय कोड़गके राजा के लिए वे भो कार्यकालमें टीपूको सहायता करने की सहमत को सन्धि हुई । २६ तारीखको टोपून अपमे दो पुत्रोंको हुए। इधर मिन्धिया-राज्यमें फरासोसी वौर डो-बदन अंग्रेज शिविरमें भेजा। अंग्रेज पक्षक सभी लोगोंने ४०,००० मेना भार ४५० तोपं लं कर अपेक्षा कर रहे मराममादन और सम्मानके माथ सुलतानके पुत्रौंका थे। वे भी जातोय गोरक्को रक्षार्थ अंग्रेजों के विका पभिनन्दन किया। सन्धिपत्रक अनुसार टीपूके दोनों वस्त्रधारण करने के लिये उद्यत थे। पुत्र ग्रंज शिविरमें हो रहे । १८ मार्चको सन्धिपत्र लार्ड मर्णि टन्ने गरेजोका विपद मजदीक पाता पर हस्ताक्षर हुए। टीपूर्न अपना आधा राज्य छोड़ देख मन्द्राजके प्रधान अगरेज सेनापति लाभारिसको दिगा, जिसमेसे मलवार, कीड़ग और बारमहल अंग्रेजोंक हुका दिया कि वे बहुत जल्द सेनाको ले कर औरणा- किस्म में पाया। इसके सिवा युधष्ययके हिसाब टोपून पत्तनको पोर रवाना हो जाय। २३ लाख रुपया देना मजूर किया, जिसमें पाधा नगद सस समय मन्द्राजमे केवल ८००० सेनायें थी। पौर पाधा एक वर्ष के भीतर देने का वायदा हुआ। वहांका कोषागार भी बिलकुल खालो था। पतः माज- मिजाम और महाराष्ट्रो में अपने अपने राज्यका निकट- के अफसरों के इस समय टीपूसे बुद्ध ठान देना उचित वर्ती भाग लिए । - समझा । किन्तु बड़े बाट म सबनेकी युतिनसुन