पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/५७७

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निरुपति (त्रिपति) विरुपरंगा गज चोडी है । मन्दिरमें चतुर्भुज विष्णुमूर्ति बड़ी है, उत्तरमें कहा-"कलियुग में चोल राजपुत्र चक्रवर्ती कारा जिनके दाहिने हाथमें चक्र, दूसरा नाथ भूमिकी तरफ प्रतिष्ठित हो कर मैं वहाँ रहंगा।" यहाँका प्रधाम और बायें हाथमें शह, दूसरमें पन्न है। हम मूर्ति के उत्सव पाखिन मासमें १० दिन तक होता है। उत्सवके साथ शक्ति न होने के कारण लोग अनुमान करते है, कि पाँचवें दिन गाड़ोत्सव और दसवें दिन नारायणवनमें पना- पहले यहाँ केवल शिवमूर्ति हो थो, गमानुजके प्रयनसे बतोके साथ वात्सरिक कल्याणोत्सब हुपा करता है। उसी मूत्ति में गा और चक्रसे शोभित टो सोनेके हाथ व्याटेवरखामोके मन्दिर के बाहर खामो पुष्करिणो. लगा दिये गये हैं। प्रवाद है, कि कुलोत्तचोलके पुत्र के किनारे एक सामान्य मन्दिर है, जिसमें राखामीको तोगडमन चक्रवर्ती ने इस प्रसिद्ध मन्दिरको प्रतिष्ठा मूर्ति है। गिसो मतसे, कोई यत्रवरा विचरण की थी। करते हुए उक्त स्थानमें पाये थे. इसलिए ये उम को इम मन्दिरमें देवदर्शन करने पर कुछ दर्शनी देनी अधिष्ठाता देवता है । सभोसे यहां वराहखामी प्रतिष्ठित पड़तों है। देवका दुग्धवान देखनसे १७) रुपये और है। याविगण व्यकटेश स्वामोसे पहले इनकी पूजा करते कर्पूगलोक में देवदर्शन करनेसे १) २० देना पड़ता है। व्याटेश स्वामोके मन्दिरके समोप गोगर्भतो. दिनके १२ बजेमे २ बजे तक पूजा प्रादि होतो है। और उनके पास हो क्षेत्र वलिगुण्डि नामक एक प्रस्तर. साधारण के दर्शन के लिए पाठ घण्टे तक हार खुला मय स्तम्भ है। इस स्तम्भके पास कोई भी मिया वचन रहता है। अरूकाड़, प्रदेश अबसे ग्रेजोंके शामनाधीन कहनेका साहस नहीं करना । जिन विषयोंकी सत्यताका हुआ है, तबसे १८४७ ई. तक यह मन्दिर अग्रेजोको निर्णय करना विचारकोंको पशिसे बाहर के विषय देख-रेखमें था। पोछे इसका भार महन्तके ऊपर मोपा भो यहां सुलझ जाति है। बादो पोर प्रतिबादो गोगर्भ- गया। अब भी महन्त पर ही दमका भार है। इस तोथ में खानपूर्वक भोगो धोतो पहने स्तम्भके पास जा देवालयको वार्षिक आय करोब २१ हजार रुपये कर जो कुछ कहते है, वह सत्य समझा जाता है। इस और व्यय १५ हजार रुपये है। अन्यान्य देवालयोंकी प्रकार शपथ करनेके लिए बादो और प्रतिवादोको सात भांति इममें देवाङ्गनाएं नहीं हैं। पहले यहां सात रुपये जमा करने पड़ते हैं। उसके बाद खिचड़ी, कोईभी कुलटा प्रवेश न कर सकती थो, किन्त अब वह पूड़ा, अब पारदधिमण्डोका भोग होता वैरागियों- बात नहीं रहो उमका बहुत कुछ व्यतिक्रम हो चुका है। को उस भोगका प्रसाद मिलता है। जिन महात्माओंने इम मन्दिरको उति को थो, उनका तिरुपतूर-मन्द्राज प्रदेशके सलेम जिलेका एक तालुक नाम अब भी मन्त्रपुष्प के माथ उच्चारित होता है। देवा. और उस तालुकका प्रधान नगर। यह पार पक्षा लयको नालिपिम उमका एम प्रकार विवरण मिलना २०२८४००७० मोर देशा• ७८३६३० पूर्ण पव. है,-'पगैक्षितन प्राङ्गाको दूसरो प्राचार और उनके पुत्र स्थित है। लाकसंख्या लगभग १६४८८है, जिसमें जनमेजयने बाहरको प्राचार बनवाई थी। पोछे विक्रम अधिकांश हिन्दू और कुछ मुसलमान है। यहां समस्त नामके किसी दूसरे राजाने इस मन्दिरका मस्कार कराया राजकीय कार्यामाय है। जिलमें रस स्थानसे चारों पोर था। कोई कोई कहते हैं, कि, तगहमन चक्रवर्ती रास्त गये हैं। जिस कारण यहां पनाजको पामदनी महाराजने वतमान मूलमन्दिर बनवाया था। ब्रह्मपुरा- अधिक होतो है। यहां चमड़े का व्यवसाय भी होता णीय व्याटेश-माहात्मा स्पष्ट लिखा है कि -- "किमी है। इस शहरमें एक बहुत बड़ा तालाब है जिसको ममय नारद पृथिवी पर्यटन करके भगवान् वैकुण्ठनाथ- मुकाबिलेका पोर दूसरा तालाब जिस भरमें नहीं देखा के दर्शन करने गये थे, उन्होंने यह कहा था कि जाता है। 'गङ्गासे एक हजार कोस दक्षिण और पूर्व मागरमे २५ तिरुपरङ्गाड़, एक प्राचोन ग्राम । . यह दक्षिण आर्कट कोम पश्चिममें एक मनोहर पर्वत है।" विशुने इसके मिलो मन्तगत पाकट शहरसे दश कोस पूर्व में पव. .Vol. IX. 144