पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/६३

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हो पर उनको लिये हुए भांग पखा। परन्तु टोडरमल नियम विवा। इस समवले राजा टोडरमल नामसे इससे तनिक भी इतोन्साहन हुए, पर पाश्चर्य समानित होने लगे। साहसके साथ शव पोको पराजय किया। इसके गदये जब सम्माट को मालूम एषा कि सुजफ्फरको मृत्यु, वा पोर पड़ोसाका गजल प्रवन्ध कर सबाट के दर हो गई। परन्तु विद्रोहियोंने वा पोर बिहार पर पधि. बारम जा पहुँ। फिर भो रन्होंने खाजहान सहकारी कार जमा लिया तो उन्होंने दोडरमल पोर, मादिक- रूपमें वादेशको जा कर पहलेको नाई दादखाको खाँको फतहपुर-सिकरोसे विहारको प्रश्नान करने के लिये पराजित किया। १५७५ की ३री मार्च को मुमल- एक पत्र लिख भेजा । मुहिम कसी और मापद मसुम- मारो बुद्धमें भी टोडरमलने अपनी क्षमताका पूरा परि खाँ उनको.मदद देने के लिये नियुक्त हुए। महमद चय दिया था। जब टोडरमलने सुना कि दासदने सम्राट मसुमखाने ३००. सुशिक्षित प्रभारोती सैन्य से कर अकबरका यामन पनाच कर परिपुर नामक स्थानमें टोडरमलको मददमें गये. लेकिन इनके मन में विद्रोहानि- सैन्यावाब खापन किया है, तो वे शीघ्र हो वर्षमानसे धधकतो थी। राजाने यह जान कर मसुमखाँको किसी छित्त.पा परगमाको पल दिये। मुनीमखाँ यहां पा सरह पपने अधीनमें रख लिया सही किन्तु यह सम्बाद कर उनसे मिले। दाउदने इच्छा की थी कि सम्राट: इन्होंने सम्माट को जमा दिया। . . . को सेना जिमसे उड़ीसा प्रवेश न कर सके वैसा ही वादेशके विद्रोहिंगल मुरके निकट एक किला कार्य करना चाहिए, परन्तु इलियामखाँ सङ्गा नामक स्थापन कर रहने लगे। राजा टोडरमसने अपने दुर्ग में एक मुसलमामने मबाट सैन्यको एक सहज रास्ता विश्वासघातकताको पाशन समझ कर प्रकाश्यभावसे दिखला दिया था। इसो गहसे मुनीमखो गन्तव्य युहम करके मुझरके दुर्गमे पात्रय लिया। दुर्म के धेरै स्थानको जाममें समर्थ हुए। लड़ाई में दाउद पराजित जानेके समय घुमायूं फरमिली और तरखानदिवाना हो कर भाग गया। टोडरमल उसका पीछा करते हुए मामक दो सेनापति विद्रोहियोंके साथ मिल गये। भद्रकको जा पहुंचे। दाउद कटकके निकट सैन्य पधिक दिन पवरोध किये जाने पर दुर्ग में रसदका संग्रह करके फिर भी लड़ने के लिए प्रस्तुत हुए। जब प्रभाव होने लगा। टोडरमल इमसे तनिक भी सहित टोडरमलको यह खबर मिली तो गन्होंने मुनीमखाँको न हो कर साहसके साथ दुर्ग की रक्षा करने लगे। शीघ्र ही उनसे मिलनेके लिए एक पत्र लिख भेजा। शीघ्रको राज्यको सहायताके लिये बहुतसो मेनाएँ पा यथासमय मुनोम भी पहुंच गये। दोनोंकी मेना एकवित पहुंचो। विद्रोहिंगण शिव भिव हो गये। ममम.. हो कर कटकको और आगे बढ़ी। यहां पर दाउदकं काबुलो दक्षिण बिहार और परवबहादुर पटनाखो पोर मात्र एक सन्धि हुई। १५७७ ई में टोडरमल दूसरी बार भाग गये। टोडरमल पौर यादिवाखाँ मसमका पोश · गुजरातको भेजे गये। जब ये अहमदाबाद नामक करते हुए बिहार पहुंचे। मसुम एक सड़ाई में परा- खानम बजीरखांक साथ सम्राट के कार्यका प्रबन्ध जित हो कर उड़ीसाकी भोर भाग चले। सो सरह कर रहे थे. तब मुजफ्फर हुसेनको उत्तेजनामे मोर. टोडरमलने दक्षिण बिहारको दिनी सामान्य अन्तर्गत पली गुलाबो इनके विरुण हो उठे। बजीरखाँ टोडर कर लिया। मलको दुर्ग में प्रायबहण करनेका पादेश किया। जिरीमें टोडरमल दीवानके पद पर नियुक्त किन्तु टोडरमलने रस प्रादेशक अनुसार काम न करके हुए। इस वर्ष में इन्होंने राजखसम्बन्ध में एक नया . मामदाबादसे १२ कोस दूर धोलकोया नामक स्थान पर नियम निकाला। एसो नये नियमके लिये राजा टोडर- बाबर विद्रोहीके परामर्शदाता और प्रधान सहायक मलने ऐसी प्रसिधि पासपी है। इस समय टोडरमलन मुत्रपारको पच्छो तरस परास्त किया । सवा सम्बन्ध में भी बहुत रिफर किया था। किमि ' सोव, सम्बाही डोडरमसको बजीरके पद पर चार प्रकारको मोहरें प्रचलित की। इन चार प्रकार: