पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/६४२

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हरनामकर्म-शीर्वमृत्युयोग इनसे रम तोहर बोऋषभनाथ भगवान् कैलाश तोयं तम ( सं को.) अयमेषामतिपयेन तो तोच- पर्वतसे, १२वें श्रीवासुपूज्य चम्पापुरीमे, २२वें श्रोनेमिः तमप । बेड तो, तो राज । नाथ गिरनार पर्व तसे, २४३ श्रीमहावोरखामो पावा- तोथ देव (सं० पु०) तो मिव श्रेष्डः । शिव, महादेव । पुरमे और शेष वीस तोर्थ र श्रीसम्मेदशिखर वा पाखं. तो ध्याइ (स० पु०) तीर्थे वा इव : तीर्थकाक देगे। नाथ पहाड़मे मोक्ष वा निर्वाषप्राप्त हुए हैं। तोध पति (म. पु. ) तीर्थराज देगे। ___ भविषमें होनेवाले २४ तोशजारो को मवराचर तोर्थ पद (म पु०) तोर्थ पादौ यस्य; बहुब्रो समासे पाद "अनागत चौबीसो" कहते है। जिनके नाम इस प्रकार शब्दस्य पदादेशः। हरि, विष्णु । ___तोर्थ पादोय (सं• पु. ) वणव । (१) श्रीमहापन, (२) सुरदेव, (३) सपाख, (४) स्वयंप्रभु, तीर्थ भूत (म. वि. ) सोध भु-त । तोर्थ स्वरूप । (५) मर्वात्भूत, (६) श्रोदेव. ! ७) कुल-पुत्र-देव, (८) तोथ महाद में पु० ) तोथ रूपो महादः । खनाम- उदादेव, (८) प्रोष्ठिलदेव, (१०) जयकोति, (११) ख्यात तोयं भेद। मुनिसुव्रत, (१२ ) अरर (अमम). ( १३) निष्पाप. (१४) तोर्थ मृत्युयोग ( स० पु. ) तोय मृत्युविषयकः योगः । निःकषाय, (१५) विपुग्न, ( १६) निर्मल, (१७) चित्र. योगविशेष, इस योगके रहनेसे मनुष्यको मृत्यु तीर्थ में गुप्ल, ( १८ ) ममाधिगुष, (१८ ) स्वयंभू, ( २० अमि होती है। इसका विषय ज्योतिष में इस प्रकार लिखा वृत्त, (२१) जयनाथ, (२२ ) श्रोविमान, ( २३ देवपात है। जन्म कालोन चन्द्रमा यदि उस स्थानमें रहे तथा भोर (२४) अन्तवोय। दशम स्थानमें वहस्पतिको दृष्टि रहे, पथवा मष्टम स्थान- इनके सिवा जैनग्रन्थों में यह भी वर्णन है कि सम्प्रति में प्रक और हितोय स्थानमें स्पति रहे तो जात मनुष्य- विदेशविक विभिन्न स्थानों वा क्षेत्रों में २० सोथर अब को तोथं मृत्य, होतो है । भी विद्यमान हैं, जिनके नाम इस प्रकार है-(१) वृष राशिमें रवि, नवम स्थानमें वृहस्पनि, लग्नमें सोमन्धर, (२) युगन्धर, (३) बाहु, (४) सुबाहु, शुक्र रहे और अष्टम स्थानमें वुधको दृष्टि पड़तो हो तो (५) सुजात, (६) स्वयंप्रभु. (७) वृषभानन, (८) मनुथको मृत्य, गङ्गाजलमें होती है। अनन्तवीय, (८) सुरप्रभु, (१०) विशालकोप्ति (११) लग्नमें शुक्र और वृहस्पति रहे, अष्टम स्थानमें चन्द्रमा पच्चधर, (१२) चन्द्रानन, (१३) चन्द्रबाहु, (१४) भुज- रहे चोर उसके प्रति लग्नाधिपतिको दृष्टि पड़तो ही जम, (१५) ईखर, (१६) नेमप्रभ. (१७) वीरसेन तो मनुष्य को मृयु कागोमें होतो है। (१८) महाभद्र, (१८ देवयश, पोर (२ ) अजितवार्य । जिस मनुष्यका जन्म सिंहलग्न में हुआ हो और उसके विशेष विवरण के लिये 'जैनधर्म शब्द तथा जैन-पुराण प्रन्थ बष्ट स्थान में शनि, मिथ नमें वृहस्पति तथा प्रष्टम स्थान देखना चाहिये। में लग्नाधिपतिको दृष्टि पड़तो हो, तो उस मनुषको लोरमामकर्म (# क्लो) जैनधर्मानुसार वह एभ मृत्यु तोथ स्थानमें होतो है। कम प्रति जिसके उदय में पचिम्य विभूति संयुक्त जिसके जन्मकालम तोन ग्रह राशि भोर लग्नसे भिव तौरवको प्राधि हो। दर्शनविधि, विनयसम्मना किसी भी हमें रहे तो वह मनुष्य विविध सुख सम्पद पादि षोड़श भावनापोंका पूर्णतया पनुयोसन करनेसे भोग कर जाडवो जल में प्राण परित्याग करता है। भव्य पुरुष ( प्रात्मा ) जन्मान्तरमें तोथ पर हो सकता यदि लग्नक चतुर्थ, षष्ठ, सप्तम, अष्टम या दशम स्थान है। अतीतकालमें जिसने भी नौथर हुए हैं तथा में वृहस्पति रहे और वर हस्पति यदि उच्च स्थान में हो भविष्यमें जितने भी हों यगे, सबमें यही कम प्रति तथा जात बालकका लम्ब यदि मोन हो, तो उसकी कारण है । मगण इन पवित्रपावन षोड़गभावमापको तोर्थ मृत्यु होती है और वह पन्तमें मोक्ष पाता है। जादि करतापोशकारण और जैनधर्म देखो। (ज्योतिष)