पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/६९९

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तुलसीदास अनुमित होता है नितरो पाम हो रनवी जमभूमि है।। घरंगी थी, वे भी रामचनीको मति परती थी। बाल्यावस्थाम रहो ने शूकारक्षेत्र में ( वर्तमान गोर यथासमय रजावली पपने पतिको घर पा कर सने नामक स्थानमें) विद्याभ्यास किया था। परन्तु यहाँ वे लगो। उनके एक पुत्र एषा । तुलसीदास खोको छोड़ संस्कत भाषामें विशेष पाण्डित्व माल न कर सके थे। कर बषभर भो नस मक्ते थे। वे सन्त को साधु को छपासे यथासमय पिटरहमें रह कर रहोंने गये थे। एक दिन तुलसीक्षसकी पहो पतिले बिना मामूली हिन्दो पौर उर्दू सीख लो यो। इनके बनाये पूछे हो अपने मायके चल दी। इससे तुमसौदासको हुए रामायण में उत्तरकाण्डके मङ्गलाचरणके शोकको बड़ी चिन्ता वे तुरन्त ही पलोक पोहे पोछे दौड़े गये पढ़नेसे मालूम होता है कि स्वतभाषामें रमका विशेष और रास्ते में उन पर लिया। इस पर रखावलोन दखल न था। . तुलसोदासके उपदेष्ठाका नाम था नरहरि । रामा- साजन कामत आपुकों धोरे बाये । नन्दने जिस प्रकार रामानुजके विशिष्टातमतका प्रचार . विकधिक ऐसे प्रेमकों कहा कही मैं नाव। .. किया था, तुलसीदास इस परतिके बहुत कुछ पर अस्थिवर्षमय देह मम तामाँ जैसी प्रीति । पातो थे। ये कार वैरागी वैष्णवों की तरहदको तैसी गैबीराम माँ होत न तो मामीति ॥".... नौं मानते थे। अयोध्या में इनको 'स्मात माणके जीको मौठो भन्न नामे तुलसीदासको चास नामसे प्रसिदिनोंने शराचार्य प्रवलित वेदान- गई। उनोंने फिर सोको सरफ ताका मा बहीं। के पाहतवादका निविशेषाईत नामसे सब किया रखावलो नौं जामती यौं, किस जरासा बातमी है। इनके रामायण में कई जगह शाराचार्यका मत खामोदयम गहरी चोट परेको । सनीसमो. ग्रहण किया गया है। शहराचार्य के ब्रमको को न दासको वारा कर उनसे पाहारादिवसियत 'राम के नामसे प्रसिद्ध किया। कुछ प्रार्थना को। परन्तु कुछ पल को शहराचार्य के अनुयायो प्रसिद्ध मधुसूदन सरस्वतो समय तुलसीदास राम नामको पात्रय मानवासी तुलमोदासक एक मित्र थे। हो गये। ___ रामानुजसे जो गुरुपरम्पराएं प्रचलित है, उनमे ये पहले तो पयोधाम पोर फिर बायोमै त । दो सालिकामों में तुलसीदासका नाम पाया जाता है। दिनों तक रहे। इसी बीचमें वे मधुरा, बहावमा कुर- यथा- क्षेत्र प्रयाग पोर पुरुषोत्तम दर्षन कर पाये। . १ रामानुजस्वामी, २ शटकोपाचार्य, ३ कुरेशाचार्य, बाबखोने यहसावस्था छोड़ीके बाद अपने पति ४ लोकाचार्य, ५ पराशराचार्य, ६ वामाचार्य, लोका. तुलसीदासको एक पत्र लिखा- ..:.:. चार्य, देवाधिदेव, ६ चैलेशाचार्य, १० पुरुषोत्तमाचार्य. "कटिकी खीनी कनक-सी, रहत अखिन संग सोड। .. ११ गङ्गाधराचार्य, १२ राम खरानन्द, १५ हागमाद, १४ ___मोहि फठेका डर नही, अमत कटे डरोह" . . . देवानन्द, १५ श्वामानन्द १६ वृतानन्द. १७ नित्यानन्द, पर्थात्- कनकवरी चौचकटि में, सखियों माय १८ पूर्वानन्द, १८ र्यानन्द, २० अर्यानन्द, २१ हरिवः रहती। मेरीहशतो फटे इसका समरीडर नन्द, २२, राघवानन्द, २३ रामानन्द, २४ सुरसुरानाद, इसी बार २५ माधवानन्द, २६ गरिवानन्द, २७ लक्ष्मीदास, २८ मतमाल और भक्तिमाहात्म्य नामक संसात अन्य जिला गोस्वामोदास, २८ नरहरिदास और ३. तुलसीदास। है-तुलसीदासकी पत्नी पालकीमें बैठ कर पा रही थी, तुलसीदासके सार दोमबन्धु श्रीरामचन्द्रजीक मार्गमें उन्होंने पतिको पीछे पीछे भाते देख यह पात कही थी। उपासक थे। इनकी बालिका कन्या, तुलसीदासक परंतु अयोध्यामें ऐसी किस्पदन्ती बसीदास सुसराल साथ विवाहोनिक बाद भी बहुत दिनों तक पिताके पहुंचने पर उनकी भी उस दोहर