पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/७४

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कर दिया जाता था। ठगों के दसमें हिन्दु मुसलमान उन भागोंको गले फासी देकर मार डालते थे। दोनो ही रहते थे, हिन्दी की उपास्यदेवो कालो थो। अनन्तर उसका मर्वस्व लूट कर उसको साथको ऐसोजगह ठगों में प्रवाद है कि-ये दिसौके निकटस्व प्रदेश. गाड़ देते थे कि, उसका किसी तरह पता नहीं चल वासी मुसलमान-धर्मावलम्बी समजातिसे उत्पन्न है। मकता था। जिन लोगों को मारनेसे उनको जल्दी खोज कालक्रमसे ये मुसलमानधर्म को छोड़ कर कालिका- होनेको सम्भावना नहीं वा जिनके न मिलनेसे लोग उनको देवीकी उपासना करने लगे। इनको प्रथम-उत्पत्तिके भागाहा समझे', ऐसे लोग सहजहोम ठगोंके चरम पड़ विषयमें वभपरम्परागत ऐमा प्रवाद चला पा रहा है कर जान खो बैठते थे। अवकाशप्रान सैनिक वा प्रभुका कि,-किमो समय एक दुर्धर्ष प्रसुरके साथ कालिका- अर्थादिवाहक भृत्व या ठगोंके कवल में पड़ते थे। किन्तु देवीका युद्ध हुआ। युद्ध में कालीन खडाघातसे असुरके ठग लोग स्त्रो, कवि गङ्गाजलबाहक, धोबी, तेली, झाड़. ट कड़े कर डाले । किन्तु असुर रायोज था, इस वान, नट आदि नीच जातिवालों को अथवा मजर, फकोर लिए उसके भूतल पतित प्रत्येक रबिन्दुसे तुल्य वल- पोर मिखौंको कभी नहीं मारते थे । रनको एक प्रकार शाली एक एक असुर उत्पन्न होने लगा। कालोन उन साडेतिक भाषा थो जिसे दूसरा कोई नहीं समझता था । मब असुरोको भी काट डाला; फिर उनके रक्षासे असंख्य दलके ठगोंमेंसे उपयोगितानुसार काई नेता होता था, दानव उत्पन्न होने लगे। पन्तम कालोने सोचा कि, इस कोई राहगीरको भुलावा देकर अभिप्रेत स्थानपर ले पाता तरह जितने काटे जायगे उतने ही अधिक दानवोंको था, कोई गलेमें फॉसी नगा कर मारता था, कोई उत्पत्ति होगी। उन्होंने दो वीरों की सृष्टि करके उनको गुम्न चरका काम करता और कोई गड़हा खोद कर उत्तरीय-निर्मित फाम प्रदान की। उन फॉसोंके जरिये, लाशको गाड़ता था। दक्ष भोर साहसो ठग लुण्ठित दोनो वीर असुरोको मारने लगे। इससे रक्त न गिरनक द्रव्यका बश पाते थे। कारण असुरों का उत्पन्न होना बंद हो गया, धीरे धीरे। ठगीमें साधारण दस्य की तरह सिर्फ दस्युत्तिक ममस्त पसर मारे गये। कालोदवीन दोनो वोरों पर हारा ही पारस्परिक सम्बन्ध नहीं था। ये भलीभांति सन्तुष्ट हो कर वे फॉमें उन्ह हो दे दो पौर पुत्रपौत्रादि समाजमङ्गठन करके भिन्न भिन्न जातियों के साथ एकत्र क्रमसे उसीके जरिये जाविकानिर्वाह करेंगे-ऐसा वास करते तथा पुरुषानुक्रमिक नरहत्या और चौय हारा वर दिया। उक्त दोनी वोर हो ठगौके पादिपुरुष थे। ओविकानिर्वाह करते थे। इनका विश्वास था, कि प्रधादानुसार ठग लोग वंशानुक्रमसे नरहत्या-व्यवसायो इसमें उनको पाप नहीं लगता, वरन् नरहत्या व्यवसाय हो गये पौर मध्यभारतसे लगा कर दाक्षिणात्यके कुछ दूर ही उनका मूलकर्म है। इसलिये जो जितना निष्ठ, तक फैल गये। ये नाना स्थानों में भिन्न भित्र सम्प्रदायमें राचरण करके निराश्रय पथिकोंको मारता था, वह निरीह प्रजाकी तरह कषि प्रादि जीविका अवलम्बन उतना ही प्रशसनीय और कालिकादेवीका प्रियपात्र करके रहते थे। किन्तु सर्वदा चारो तरफ इनके गुप्तचर समझा जाता था। वास्तवमें इन पाखणी मार- रहते थे, जो कहां निराश्रय पधिक जा रहा है, इसको कियोंके उदयमें जरा भो धर्मभय वा अनुताप नहीं था। खोज रखते थे । ठगों में एक साधारण सकस था, जिससे इसलिये इस सरहको निर्दय भोषण नरहत्या करनेम वे परस्सरको पहिचान लिया करते थे। बहुत समय ये इनके दयमें तनिक चोट भो न लगती थो। किन्तु लोग दल बांध कर पल्पाधिक संख्या में निकलते थे पाचय, ये नरपिशाच लोग भी इस तरह वोमरस चौर छावेशमें रह कर मौका देख पधिकोंका सवनाश कार्य के लिए निकलते समय अपनी उपास्यदेवी भवा. करते थे। प्रथमतः ये लोग पथिकोंसे इस ढंगसे पेय भाते मोको पूजा कर उनकी प्रीति और पायोसको कामना 'धे कि, जिससे पथिक किमो भो तरह इनको परिधान करते थे। इस प्रकारके वैशाचिक कार्य में भी पर्थ . नहीं सकते थे। पीछे मौका पात हो पसावधानी दमाम लोभसे उनको प्रोत्साहित करने तथा कालीदेवीको पूजा