पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/७४२

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नितिन सिवराणमें एक प्रथा व्यक्ति समझ जाने लगे । मेरठः बार अपने सरदारकी कूटनीति देशवर मी बासो में उसका पादि निवाम था । वाम उन्होंने नजगमको वीरता दिखलाती पा रही थी, वह पत्यन्त, प्रसनीय सिख-दरबारमें बुलावा भेजा। १७३१ में तेजगमने यो! ' जहाँ गरीजीको जीतको कुछ भो पायावी. मिखधर्म अवलम्बन कर अपना नाम जमिह रखा। तेजसिंहको विम्वासपातकतासे वहां उनहोंने बहतोकी अपने चचाको तरह ये भी धोरे धीरे मिग्व-दरबारम गण्य- खूनखराबी कर जय प्राप्त कर लो। जिस फिरोजशाहक मान्यहोछठे। युधमें सिख सेनाको सम्पर्य रूपसे हार हुई थी, जिस १८४५०को २१ मितम्बरको जाहिरासिंहको विख्यात घुमि चंगरेजो सेनानायकोंने खदेष में सम्मान हत्या के बाद मागनी भिन्दन लालमिरको प्रधान वजोर प्रात्र किया था, वह युद्ध केवल इसी दुत तेजसिंहको पोर तजमिको प्रधान सेनापति बना कर राज्य चलामे विश्वासघातशता समाल हुपा था। उस युधम तेजसिंह नगौं। किन्तु मानसिक और तेजमिह पर खालमा बोस हजार पदाति और पांच हजार प्रवारोही मेनापों- सेना बहुत विरत थी। अनेक कारणों से वह विरति- के साथ उपस्थित थे। भाव क्रमशः वामन होने लगा। इस समय खालसा. उन्होंने अपनी पाखमि लालसिहको पराजय देखो मेनाबी समता भी कुछ बढ़ गई घो। सभो राजपुरुष थी, लेकिन वे कुछ भी मदत न पहुँचाई। वे परिवान्त उसडरा करते थे । म कारण तेजसिंह खालसा-मेना. पोर निरुपाय घटिगसेनाको अवस्था भी अच्छी के पराक्रमको खर्व कर डालने के लिये नाना प्रकारको तरह जानवार थे। उनके सभो योचा बुध करने प्रसार करने लगे। लालमिने भी रम पडयन्त्र में हाथ लिये उत्तेजित हो गए थे, लेकिन कापुरुष सेजसिर दिया। मोने यह स्थिर कर लिया कि हटिश सेनाके विश्वघातकतामे उन्हें भुलावेमें डाल पर मतद सिवा खालमा मेना किसोमे भो विदलित नहीं हो मढोके पांग लोटा लाये । अन्तमें जब उन्हें तेजसिंहको सकसो। उन्होंने दरबार में यह घोषणा कर दी किग- चालबाजो पच्छो तरह मालम हो गई, तब वे दाँत रेजी मेना शताष्ट्र नदी पार कर सिख गन्च पर पाक्रमण पोस कर रह गये । प्रथम मिखयुद्ध के बाद तेजसिंहने करनेको पा रही है। इस समय सद"भो हटिगराज्य वृटिश-शिविरमें जा कर गवनर जनरलसे मुलाकात की पर धावा मारना उचित है । एक दिन दरबार में प्रधान और सन्धि करने को कहा, किन्तु बड़े लाटमे उनका प्रधान मिखु-योगायों के सामने दौवाम दीननाथने कर प्रस्ताव नाम जर कर दिया। अन्तमें सिखसेमाके भयमे एक मिष्या पत्र पढ़ कर यह कहा कि मावभूमिकी तेजसिंह दहल उठे। कड कौम पा कर उनका प्राण से रक्षाके लिये भी सभोको पखधारण करना उचित है। लेगा, बस पाथकामे उन्हें रातको गोंद नहीं पाती महाराणीको रछा , कि राजा सालसिबजोर पोर थी। उन्होंने किसो ज्योतिषों के कहनेसे निरापद रहनके तेजसिंह प्रधान सेनापति हो। लिए एक प्रत दुर्ग बनवाना विचारा था। जो कुछ खदेवानुरागी खालसा मेना यह सुन कर जित हो, पन्तिम दयामें वे मानसिक दुःखसे ही पचवको प्राप्त हुए थे। हो उठी। म समय राजा मानसिंहको बजोर पोर तेजसिंहको सरदार बनाने किमीने पापत्ति न को। यदि सरदार तेजसिंह पदपदमें विश्वासघातकता नीचाथय तेजमिहने प्रभो खालसा सेनाके अपर अपना नहीं करते .तो सिख युद्ध का इतिहास भिवरूपसे लिखा जाता। सिखयुर दे। प्राधिपाच पा कर उन्हें 'स करना चाहा। बिना किसी तेजसिह-१ प्रोग्वाटव सोय एक सामन्त । इनके पिताका बारपके सिम्खयु छिड़ गया। जहां जहां खालसा सेनाकै नाम विजयसिंह मोर पितामहका माम विक्रम था। साबटियसेनाका मसर्ग था, वहां दुमति तेजमिडने बन्होंने देवनालानि नाम एक ज्योतिन्य रचा है। विलासचातबाता करनेमें कोई कसर उठा न रहो, किन्तु २ बुन्दलखण्डवासी एक कवि । ये जातिक कायल सिनेमानस पोर तनिक भो धान न दिया।. पार थे। ये दफतरनामा बन्न बना गये . . .. .